बुंदेलखंड के क‍िसानों को पसंद आ रही सिंचाई में 75 फीसदी पानी बचाने वाली ड्रिप तकनीक

बुंदेलखंड के क‍िसानों को पसंद आ रही सिंचाई में 75 फीसदी पानी बचाने वाली ड्रिप तकनीक

विश्व जल दिवस पर जल संरक्षण को लेकर छिड़ी बहस के बीच सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल सिंचाई में होने की वजह से किसानों पर पानी बर्बाद करने का आरोप लगाया जाता है. ऐसे में पानी बचाने वाली सिंचाई की ड्रिप तकनीक को अपनाकर, किसान भी पानी के पहरेदार बन रहे हैं.

ड्रिप प्रणाली से सिंचाई, फोटो साभार: Freepik
न‍िर्मल यादव
  • Lalitpur,
  • Mar 24, 2023,
  • Updated Mar 24, 2023, 7:00 AM IST

यूपी में जल संकट का सबसे ज्यादा सामना कर रहे बुंदेलखंड जैसे इलाकों में किसानों के लिए ड्रिप तकनीक जल संरक्षण का कारगर उपाय साबित हो रही है. खेती में पानी के इस्तेमाल से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि पानी की सबसे ज्यादा खपत सिंचाई में ही होती है. मसलन, किसानों को एक किलोग्राम धान उपजाने में 2500 से 3000 हजार लीटर पानी जरूरत होती है. इस एक किलो धान से सिर्फ 600 ग्राम चावल ही मिल पाता है. इससे अंदाजा लगाना आसान है कि खेती में पानी की बचत के उपाय करके जल संरक्षण के प्रयासों को कारगर बनाया जा सकता है. इस काम में किसानों ने 90 फीसदी तक पानी की बचत करने वाली तकनीक टपक पद्धति यानी 'ड्रिप इरिगेशन' को हथियार बनाया है.

इस तकनीक की मदद से पानी की कमी वाले बुंदेलखंड इलाके के किसान न केवल जल संरक्षण कर रहे हैं, बल्कि सिंचाई में गैर जरूरी पानी की खपत पर होने वाले खर्च को भी बचा कर खेती की लागत काे कम कर रहे हैं.

यूपी के बुंदेलखंड इलाके में पानी की कमी को देखते हुए ड्रिप और स्प्रिंकलर की मदद से सिंचाई के दोहरे लाभ किसानों को मिल रहे हैं. बुंदेलखंड में ललितपुर के जिला कृष‍ि अधिकारी परवेज खान ने 'किसान तक' को बताया कि इस क्षेत्र के सभी 7 जिलों को पानी की कम उपलब्धता वाले इलाके के रूप में चिन्हित किया गया है. प्रदेश के अन्य इलाकों की तरह बुंदेलखंड के किसानों को केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कृष‍ि सिंचाई योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम लगाया जाता है.

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खान ने बताया कि इससे किसानों को दोहरा लाभ होता है. पहला लाभ सरकारी अनुदान के कारण बहुत कम कीमत में ड्रिप सिस्टम किसान के खेत में लग जाता है. दूसरा लाभ इसकी मदद से पानी की खपत में 65 से 90 फीसदी तक कमी आने से किसान की कृष‍ि लागत में 30 फीसदी तक कमी आ जाती है.

खेती में शुद्ध मुनाफा 4 गुना तक

परवेज खान ने बताया कि किसानों को फसल में लगने वाले रोग एवं उर्वरक आदि देने के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ता है. ड्रिप सिस्टम से खेती करने पर फसलों में दवा का छिड़काव भी ड्रिप एवं स्प्रिंकलर से हो जाता है. इससे किसान की कृष‍ि लागत में होने वाली बचत बढ़कर 60 फीसदी तक हो जाती है. उन्होंने कहा कि टपक पद्धति से सिंचाई करने पर फसल को बिल्कुल उचित मात्रा में ही खाद पानी मिलने के कारण उपज में 30 फीसदी तक इजाफा हो जाता है.

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जिला कृष‍ि अधिकारी खान ने बताया कि ड्रिप के माध्यम से सिंचाई और दवाओं के छिड़काव होने से  खेती में लागत खर्च में भारी बचत , पैदावार में इजाफा  और उपज की गुणवत्ता में सुधार होने के कारण किसान को फसल की कीमत भी ज्यादा मिलती है. इस लिहाज से देखा जाए तो किसान को खेती में टपक पद्धति अपनाने पर  शुद्ध लाभ 4 गुना तक बढ़ जाता है.

ड्रिप का दायरा दो गुना हुआ

खान ने बताया कि प्रधानमंत्री कृष‍ि सिंचाई योजना लागू होने से पहले किसानों को सिर्फ स्प्रिंकलर सिस्टम दिया जाता था. इसमें किसानों को पाइप भी मिलते थे. पाइप मिलने के लालच में किसान इस स्प्रिंकलर सिस्टम खरीद लेते थे, मगर इसके साथ मिलने वाली पाइप से सीधी सिंचाई करते थे, स्प्रिंकलर का इस्तेमाल ही नहीं करते थे. इस योजना के तहत सरकार ने किसानों को ड्रिप के साथ मिनी और माइक्रो स्प्रिंकलर देना शुरू कर दिया है. इसमें मोटे पाइप के बजाय पतले पाइप खेत में स्थाई रूप से लग जाते हैं और किसान इस सिस्टम से ही सिंचाई करते हैं.

उन्होंने बताया कि ललितपुर जिले में पहले बमुश्किल 100 हेक्टेयर में किसान स्प्रिंकलर का इस्तेमाल करते थे, मगर बीते दो सालों में ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर का दायरा बढ़कर 250 हेक्टेयर तक पहुंच गया है. खान ने इसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि किसानों में टपक पद्धति से सिंचाई करने के प्रति रुझान बढ़ना बेहतर भविष्य का संकेत है.

90 फीसदी तक मिलती है छूट

खान ने बताया कि किसानों को ड्रिप सिस्टम लगवाने के लिए उद्यान विभाग की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करना होता है. किसान खुद या गांवों में स्थित सहायता केंद्रों से आवेदन करा सकते हैं. इसके अलावा उद्यान विभाग में भी ऑनलाइन आवेदन करने में किसानों को तकनीकी सहायता दी जाती है.

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उन्होंने बताया कि आवेदन मिलने पर विभाग द्वारा सत्यापन कराकर एक से दो सप्ताह के भीतर सरकार द्वारा सूचीबद्ध कंपनियों की मदद से किसान के खेत पर ड्रिप सिस्टम लगाया जाता है. इसमें 5 हेक्टेयर तक की जोत वाले छोटे और सीमांत किसानों को कुल लागत का 90 फीसदी और सामान्य किसानों को 80 फीसदी अनुदान मिलता है. किसान को लागत का अपना अंश, खेत पर ड्रिप सिस्टम लगने के बाद देना होता है.

3 साल तक रखरखाव की भी सुविधा

खान ने बताया कि किसानों के खेत पर जिस कंपनी से ड्रिप सिस्टम लगाया जाता है, उसी कंपनी की जिम्मेदारी होती है कि अगले 3 साल तक इस सिस्टम का रखरखाव करेगी. इसमें टूट फूट या तकनीकी खराबी आने पर संबंधित कंपनी को ही इसे दुरुस्त करना होता है. अगर सिस्टम में कोई टूट फूट किसान की गलती से होती है, तो कल पुर्जा बदलने का खर्च किसान को वहन करना पड़ता है. टूट फूट को कंपनी ही दुरुस्त करके देती है.

सिस्टम में कोई खराबी आने पर अगर कंपनी किसान की कॉल पर ध्यान नहीं देती है, तो किसान इसकी ऑनलाइन या उद्यान विभाग को पत्र लिखकर शिकायत कर सकता है. जांच में शिकायत सही पाए जाने पर उक्त कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने का प्रावधान है.

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