पंजाब सरकार की सब्सिडी योजना के जरिये से खरीफ मक्का को औद्योगिक फसल के तौर पर बढ़ावा देने की पहल को किसानों से ठंडी प्रतिक्रिया मिली. छह जिलों में 12,000 हेक्टेयर (30,000 एकड़) के निर्धारित लक्ष्य का सिर्फ 59 फीसदी ही हासिल हो सका है. फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने और जल संरक्षण के मकसद से पंजाब सरकार की पहल के तहत छह जिलों- बठिंडा, संगरूर, पठानकोट, गुरदासपुर, जालंधर और कपूरथला में धान से मक्का विविधीकरण योजना के तहत 12,000 हेक्टेयर भूमि पर इसे उगाने का लक्ष्य था. अब ऐसा लगता है कि किसान सरकार की इस पहल का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं.
अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार मक्का की खेती अपनाने वाले किसानों को प्रति हेक्टेयर 17,500 रुपये की आर्थिक मदद का ऐलान भी किया गया था. सरकार के इस कदम का उद्देश्य कृषि विविधीकरण के अलावा बायो-फ्यूल के तौर पर मक्का की खेती को बढ़ावा देना है. मक्का की बुवाई का तय समय 15 जुलाई को खत्म हो चुका है. राज्य कृषि विभाग अब मक्का की बुवाई करने वाले किसानों को प्रति एकड़ 7,000 रुपये की सब्सिडी देने के लिए खेतों का फिजिकल वैरीफिकेशन करने में जुट गया है.
कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, खरीफ मक्का 7,000 हेक्टेयर या करीब 19,500 एकड़ में बोया गया था. जानकारी के अनुसार, पठानकोट में 4,100 एकड़ दर्ज किया गया, जो 2025-26 के लिए मक्का सब्सिडी योजना के तहत सबसे अधिक आंकड़ा है. इसके बाद संगरूर में 3,700, बठिंडा में 3,200, जालंधर में 3,100, कपूरथला में 2,800 और गुरदासपुर में 2,600 हेक्टेयर पर ही इसकी बुवाई हुई है.
कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया है कि कुल मिलाकर, यह किसानों के लिए फायदेमंद स्थिति है. उन्हें सब्सिडी मिलेगी और मक्के की मांग पहले से ही है जबकि सरकार अपने फसल विविधीकरण लक्ष्यों को हासिल कर सकती है. हम अभी भी फील्ड के आंकड़ें इकट्ठा करने में लगे हैं और रिपोर्ट तैयार की जा रही है. डेटा का विश्लेषण करने के बाद, हम कारणों का पता लगा सकते हैं और आवश्यक बदलाव कर सकते हैं. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार राज्य में 18 इथेनॉल प्लांट हैं, और रिन्यूबल फ्यूल बनाने के लिए मक्के की भारी मांग है. इसे पेट्रोल में मिलाया जाता है क्योंकि हाल ही में 20 फीसदी तक मिश्रण करने पर जोर दिया गया है.
बठिंडा के एक किसान, बलदेव सिंह ने कहा कि सरकारी एजेंसियों द्वारा गैर-बासमती चावल की सुनिश्चित खरीद से किसान गेहूं-धान के चक्र पर ही टिके रहते हैं. उन्होंने आगे कहा, 'फसल विविधीकरण योजना तभी सफल होगी जब किसानों को खरीफ मक्का या किसी और फसल की खरीद का भरोसा दिलाया जाएगा. बढ़ती लागत और कृषि ऋण के कारण, किसान जोखिम लेने की स्थिति में नहीं हैं.
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