आज के समय में किसान अपनी आय बढ़ाने के लिए खेती के साथ-साथ कई सहायक व्यवसाय अपना रहे हैं. ये व्यवसाय उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करने में मदद करते हैं. हम आपको मछली के साथ बत्तख पालन के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बहुत से लोगों के लिए नया व्यवसाय हो सकता है, लेकिन मछली पालन करने वालों के लिए यह काफी लाभदायक साबित हो सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, खेती इनमें डक विथ फिश फार्मिंग भी शामिल है, जिसे अपनाकर मछली पालक दोहरा लाभ कमा सकते हैं. आपने अक्सर देखा होगा कि तालाबों या जहां भी पानी उपलब्ध होता है, वहां आपको बत्तखों का झुंड मिल जाएगा. लेकिन अगर मछली पालन के साथ बत्तख पालन किया जाए, तो दोनों एक-दूसरे को सहयोग करते हैं और उत्पादन लागत में काफी कमी आती है.
मछली के आहार पर आपका खर्च लगभग 75 परसेंट तक कम हो जाएगा. दूसरी तरफ, बत्तख तालाब की गंदगी को खाकर उसकी साफ-सफाई करते हैं. बत्तखों के पानी में तैरने से तालाब का ऑक्सीजन स्तर भी बढ़ता है, जिससे मछलियों की अच्छी वृद्धि होती है.
अगर आप मछली पालन के साथ बत्तख पालन करना चाहते हैं, तो इसके लिए बारहमासी तालाबों का चुनाव करें, जिनकी गहराई कम से कम 1.5 मीटर से 2 मीटर होनी चाहिए. आप 2 स्क्वायर फीट प्रति बत्तख की जगह के अनुसार तालाब के ऊपर या किसी किनारे आवास बना सकते हैं. बत्तख दिन में तालाबों में घूमते हैं, रात में उन्हें घर की जरूरत होती है. तालाब पर बांस, लकड़ी से बत्तख का बाड़ा बनाना चाहिए. बाड़ा हवादार और सुरक्षित होना चाहिए. बत्तखों में इंडियन रनर एक अच्छी प्रजाति मानी जाती है. अंडों के लिए खाकी कैम्पबेल सबसे अच्छी प्रजाति मानी जाती है, जिनसे साल भर में लगभग 250 तक अंडे मिल जाते हैं.
आमतौर पर बत्तखें 24 सप्ताह की उम्र में अंडे देना शुरू कर देती हैं और 2 साल तक अंडे देती हैं. एक एकड़ के तालाब में आसानी से 250 से 300 बत्तख पाले जा सकते हैं. इस तकनीक से आहार में लगभग 30 परसेंट कम खर्च आएगा. बत्तख को 120 ग्राम दाना रोज देना जरूरी होता है, लेकिन बत्तख सह मछली पालन में यह पूर्ति आप मात्र 60-70 ग्राम देकर पूरी कर सकते हैं. इसके अलावा, बत्तख के पानी में तैरने से पानी का ऑक्सीजन लेवल बना रहता है, जो मछलियों के लिए बहुत जरूरी है. साथ ही, बत्तख के बीट से मछलियों को कुछ भोजन मिल जाता है, यानी उनके आहार पर भी खर्च कम होता है.
जब मछली पालन के साथ बत्तख पालन करना हो, तो तालाब में मछली के स्पान नहीं डालने चाहिए, क्योंकि बत्तख उन्हें खा सकते हैं, जिससे आपको नुकसान होगा. इसलिए, एक एकड़ तालाब में 4 से 5 हजार फिंगरलिंग (छोटी मछलियां) डालना चाहिए. इसमें अलग-अलग प्रजाति की मछलियां शामिल होनी चाहिए, क्योंकि अलग-अलग प्रजाति की मछलियां तालाब के अंदर अलग-अलग स्तरों पर मौजूद भोजन पर पलती हैं. इससे आपको ज्यादा फायदा मिल सकता है.
मछलियों के भोजन में सरसों की खली, धान की भूसी, मिनरल मिक्सचर और बाजार में तैयार फीड देनी चाहिए. इन सबको आप बोरे में बंडल बनाकर आधा तालाब में डुबोकर लटका सकते हैं. 6 से 9 महीने के अंदर एक किलो तक की मछलियां हो जाएंगी. एक एकड़ तालाब से ऐसे में 18-20 क्विंटल से ऊपर मछली का उत्पादन संभव है, जिससे अधिक मुनाफा होगा.
बत्तखों के भोजन में घास, बरसीम, जई, सब्जी का छिलका, धान की भूसी, मिनरल मिक्सचर और बाजार में तैयार फीड देनी चाहिए. बत्तख लगभग साढ़े चार महीने में अंडे देना शुरू कर देते हैं. वहीं, तालाब में 6 से 9 महीने के अंदर 1 से 1.5 किलो तक की मछलियां हो जाती हैं. एक एकड़ तालाब से किसानों को 20 से 25 क्विंटल मछली का उत्पादन मिलता है, जिससे 5 से 6 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा होता है. वहीं, दूसरी तरफ बत्तख पालन से सालाना 3 से 4 लाख रुपये का मुनाफा होता है. हमारे देश में बत्तख पालन अंडा और मांस के लिए पूर्वी भारत के पूरे इलाके में काफी प्रचलित व्यवसाय है. इससे बत्तख पालने वाले किसान बत्तख के अंडे पूर्वी भारत के राज्यों में भेजकर अच्छा लाभ कमा सकते हैं.