Mustard Farming: सरसों की खेती के ल‍िए क्यों जरूरी है सल्फर, समझ‍िए फायदे-नुकसान का पूरा गण‍ित

Mustard Farming: सरसों की खेती के ल‍िए क्यों जरूरी है सल्फर, समझ‍िए फायदे-नुकसान का पूरा गण‍ित

भारत की जमीन में सल्फर की करीब 41 फीसदी की कमी है, जबक‍ि अगर खेत में सल्फर की कमी हो जाए तो पौधा नाइट्रोजन का सही उपयोग नहीं कर पाता. इसील‍िए अब सरकार ने यूरिया गोल्ड के नाम से सल्फर कोटेड यूरिया की शुरुआत की है. सरसों की खेती में इसका क‍ितना करें इस्तेमाल?   

सरसों की खेती में सल्फर की क‍ितनी जरूरत? सरसों की खेती में सल्फर की क‍ितनी जरूरत?
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Nov 05, 2024,
  • Updated Nov 05, 2024, 10:36 AM IST

खाद्य तेलों के आयात पर खर्च हो रही करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये की भारी-भरकम रकम को बचाने के ल‍िए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन को मंजूरी दी है. इसके तहत अगले सात वर्ष में तिलहन उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया है. लेक‍िन, यह लक्ष्य तब पूरा होगा जब क‍िसान खेती का तौर-तरीका बदलेंगे, बाजार में सही दाम म‍िलेगा और बंपर उत्पादन के ल‍िए अच्छे बीज म‍िलेंगे. बहरहाल, प्रमुख त‍िलहन फसल सरसों की बुवाई चल रही है. कृष‍ि वैज्ञान‍िक क‍िसानों को सलाह दे रहे हैं क‍ि वो कोई ऐसी गलती न करें क‍ि उनकी मेहनत पर पानी फ‍िरे. खासतौर पर ज‍िस खेत में सरसों की बुवाई करनी है उसमें सल्फर की मात्रा की जांच जरूर करवा लें. क्योंक‍ि अगर सल्फर की कमी है तो बड़ा नुकसान होगा.

सल्फर बीजों में तेल की मात्रा बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए सरसों की खेती में इसका इस्तेमाल जरूरी है. सरसों में पर्याप्त तेल न‍िकलेगा तो क‍िसानों को उसका फायदा होगा. अच्छी सरसों में 42 फीसदी तेल न‍िकलता है. अगर आपके सरसों वाले खेत में सल्फर की मात्रा कम है तो आप इसे उर्वरक के रूप में दे सकते हैं. सल्फर पौधों के हरे पदार्थ क्लोरोफिल के निर्माण के ल‍िए जरूरी तत्व है. अगर खेत में सल्फर की कमी है तो पौधा नाइट्रोजन का सही उपयोग नहीं कर पाता. भारत की जमीन में सल्फर की करीब 41 फीसदी की कमी है. इसील‍िए अब सरकार ने यूरिया गोल्ड के नाम से सल्फर कोटेड यूरिया की शुरुआत की है, ज‍िसके इस्तेमाल से पौधों में नाइट्रोजन इस्तेमाल करने की क्षमता बढ़ने का दावा क‍िया गया है.  

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क‍ितना सल्फर डालें 

पूसा के कृष‍ि वैज्ञान‍िकों के अनुसार मिट्टी जांच के बाद यदि उसमें गंधक यानी सल्फर की कमी हो तो 20 क‍िलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई पर डालें. बुवाई से पहले म‍िट्टी में उचित नमी का ध्यान जरूर रखें, ज‍िससे क‍ि अंकुरण ठीक हो. बीज क‍िसी प्रमाण‍िक सोर्स से ही खरीदें. सरसों की उन्नत किस्में-पूसा विजय, पूसा सरसों-29, पूसा सरसों-30, पूसा सरसों-31 और पूसा सरसों-32 हैं. बीज दर अगर 1.5 से 2 क‍िलोग्राम प्रति एकड़ है तो बेहतर रहेगा. 

पौधे से पौधे की दूरी क‍ितनी हो? 

वैज्ञान‍िकों ने कहा है क‍ि तापमान को ध्यान में रखते हुए किसान सरसों की बुवाई में अब और अधिक देरी न करें. म‍िट्टी की जांच के बाद ही बुवाई करें. ज‍िन पोषक तत्वों की कमी है उन्हें पूरा करें. बुवाई से पहले बीजों को केप्टान @ 2.5 ग्राम प्रति क‍िलोग्राम बीज की दर से उपचार करें. बुवाई कतारों में करना अधिक लाभकारी रहेगा. कम फैलने वाली किस्मों की बुवाई 30 सेंमी और अधिक फैलने वाली किस्मों की बुवाई 45-50 सेंमी दूरी पर बनी पंक्तियों में करें.  विरलीकरण द्वारा पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सेंमी कर लें तो अच्छा रहेगा.

टारगेट कैसे पूरा होगा

फसल वर्ष 2023-24 में पहली बार देश के क‍िसानों ने 100 लाख हेक्टेयर से अध‍िक एर‍िया में सरसों की बुवाई की थी. र‍िकॉर्ड बुवाई की वजह से उत्पादन ने भी र‍िकॉर्ड तोड़ा और इसका आंकड़ा पहली बार 132.59 लाख टन तक पहुंच गया. रबी सीजन 2024-25 के ल‍िए केंद्र सरकार ने 138 लाख मीट्र‍िक टन सरसों उत्पादन का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हास‍िल करना है तो न स‍िर्फ इसकी खेती का दायरा बढ़ाना होगा बल्क‍ि वैज्ञान‍िक तौर-तरीके से काम करना होगा. 

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