हरियाणा में सरसों की सरकारी खरीद बंद हो गई है. इसकी वजह से किसान परेशान हैं और अब वो सड़क पर उतरने की तैयारी में जुट गए हैं. भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) ने हरियाणा के खाद्य-आपूर्ति निदेशक को पत्र लिखकर खरीद फिर से शुरू करने की मांग की है, ताकि किसानों को राहत मिल सके. दरअसल, इस साल ओपन मार्केट में सरसों का दाम सिर्फ 4000 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है इसलिए ज्यादातर किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर उसे सरकार को बेचना चाहते हैं. क्योंकि, रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 में इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है, जो मार्केट रेट से अधिक है. इसलिए फिलहाल यही किसानों के लिए फायदे वाला रास्ता है. ऐसे में अगर एमएसपी पर खरीद बंद हो जाएगी तो किसानों को बहुत नुकसान होगा.
हरियाणा देश का तीसरा सबसे बड़ा सरसों उत्पादक प्रदेश है. जहां देश का 13.1 फीसदी सरसों पैदा किया जाता है. दरअसल, सरसों खरीद का एक नियम है, जिसकी वजह से उतनी सरकारी खरीद नहीं हो पाती जितनी कि किसान चाहते हैं. कई बार राज्य सरकारें चाहकर भी खरीद को नहीं बढ़ा पातीं. एमएसपी पर होने वाली खरीद की पॉलिसी के अनुसार तिलहन फसलों की अधिकतम सरकारी खरीद कुल उत्पादन की सिर्फ 25 फीसदी ही हो सकती है. इसलिए कुल सरसों उत्पादन में से 75 फीसदी उपज सरकारी खरीद के दायरे से बाहर हो जाती है. यही नहीं एक दिन में एक किसान से 25 क्विंटल से अधिक खरीद नहीं करने के प्रावधान से भी किसानों को नुकसान हो रहा है.
इसे भी पढ़ें: कृषि क्षेत्र में कार्बन क्रेडिट कारोबार की एंट्री, कमाई के साथ-साथ अब ग्लोबल वार्मिंग भी कम करेंगे किसान
फिलहाल, हरियाणा में 3,24,008.79 मीट्रिक टन सरसों की खरीद हुई है. जो देश में सबसे ज्यादा है. यहां के किसानों को इसके बदले एमएसपी के तौर पर 1765.85 करोड़ रुपये मिलेंगे. तीन और राज्यों में सरसों खरीदा जा रहा है, जिनमें राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश शामिल हैं. इन सभी की खरीद हरियाणा से कम ही है.
राजस्थान देश का सबसे बड़ा सरसों उत्पादक है. करीब 48 फीसदी उत्पादन अकेले यहीं होता है. नाफेड के मुताबिक यहां अब तक सिर्फ 22312.55 मीट्रिक टन की ही खरीद हुई है. जबकि, यहां 15,19,318 मीट्रिक टन सरसों की खरीद का लक्ष्य है.
सरसों का दूसरा बड़ा उत्पादक मध्य प्रदेश है. कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 13.3 फीसदी है. यहां अब तक एमएसपी पर सिर्फ 43,645 मीट्रिक टन सरसों की ही खरीद हो सकी है.
इस हिसाब से हरियाणा की खरीद को बेकार नहीं माना जा सकता. बताया जा रहा है कि नियमों के तहत यहां कुल उत्पादन की 25 फीसदी खरीद पूरी हो चुकी है. ऐसे में इसे रोक दिया गया है. कई राज्यों में कुल उत्पादन का 25 फीसदी भी सरसों नहीं खरीदा जाता. जबकि हरियाणा में अक्सर इस लिमिट के आसपास की खरीद एमएसपी पर हो जाती है. इस बार यहां 15 मार्च से सरसों खरीद हो रही थी.
भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के मीडिया प्रभारी राकेश कुमार बैंस ने कहा कि सीएम मनोहर लाल और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला कई बार घोषणा कर चुके हैं कि किसानों की फसल का दाना-दाना खरीदा जाएगा. फिर सरसों की खरीद क्यों बंद की गई? इस बार खुले बाजार में सरसों के रेट काफी कम हैं. इसलिए किसानों के हित को देखते हुए राज्य सरकार ने सरसों की सरकारी खरीद शुरू की थी. लेकिन, 1 मई को खरीद अचानक बंद कर दी गई. सरकारी खरीद का समय काफी कम दिया गया. इस वजह से सभी किसान अपनी पूरी फसल बेच नहीं पाए.
बैंस का कहना है कि जब सरसों की सरकारी खरीद शुरू की गई थी, उसी समय गेंहू कटाई का सीजन भी शुरू हो गया था. यही नहीं इस बार मौसम भी ठीक नहीं रहा. इस वजह से प्रदेश के काफी किसान एमएसपी पर सरसों बेचने से वंचित रह गए. ऐसे में यूनियन ने सरकार से अपील की है कि खरीद फिर से बहाल करके इसकी अंतिम तारीख 15 मई कर दी जाए.
सवाल यह भी है कि लगातार दो साल से सरसों का दाम 7500 से 8000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल रहा था तो फिर इस बार यानी रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 में क्यों एमएसपी से भी नीचे आ गया. इसका जवाब हमें किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने दिया. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से सरसों उत्पादक किसानों की जेब पर इस बार झटका लगा है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार खाद्य तेल आयात को प्रमोट करने वाली पॉलिसी पर काम कर रही है.
साल 2020 तक खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी 45 फीसदी थी. पाम आयल पर अतिरिक्त 5 फीसदी सुरक्षा शुल्क भी था, जिसे अक्टूबर 2021 के बाद जीरो कर दिया गया. इसलिए आयात सस्ता हो गया. व्यापारियों ने आयात पर जोर दिया और उसकी मार अब भारतीय किसानों पर पड़ रही है. जो पैसा अपने देश के किसानों को मिलना चाहिए वह इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस-यूक्रेन और अर्जेंटीना जैसे देशों के किसानों को मिल रहा है. ऐसी पॉलिसी रहेगी तो भारत कभी खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन पाएगा.
ये भी पढ़ें: विकसित देशों को क्यों खटक रही भारत में किसानों को मिलने वाली सरकारी सहायता और एमएसपी?