Green Leafhopper: उत्तर भारत के खेतों में लौटा यह खतरनाक कीट, कपास की फसल हुई चौपट 

Green Leafhopper: उत्तर भारत के खेतों में लौटा यह खतरनाक कीट, कपास की फसल हुई चौपट 

उत्तर भारत के कपास क्षेत्र के कई गांवों में हरे लीफहॉपर का गंभीर प्रकोप देखा गया जिससे हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में कपास की फसल को गंभीर खतरा पैदा हो गया है. जैसिड की आबादी में यह वृद्धि कई वर्षों के बाद हुई है और इसका मुख्य कारण इस वर्ष लंबे समय तक गीला और नमी वाला मौसम रहा है, औसत से ज्‍यादा बारिश, ज्‍यादा नमी और बादलों से घिरा आसमान है.

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क‍िसान तक
  • New Delhi,
  • Aug 03, 2025,
  • Updated Aug 03, 2025, 1:36 PM IST

ग्रीन लीफहॉपर, जिसे इंडियन कॉटन जैसिड और स्थानीय तौर पर हरे रंग का फुदका या कहीं-कहीं पर हरा तेला भी कहा जाता है, उसने कई सालों के बाद इस मौसम में उत्तर भारत के कपास के खेतों में एंट्री कर ली है. भारी तादाद में इन्‍हें खेतों में देखा गया है और कई जगहों पर फसल को बड़ा नुकसान पहुंचा है. इससे किसानों की चिंताएं बढ़ गई हैं. एक्‍सपर्ट्स की मानें तो हरे फुदके की आबादी में अचानक इजाफा होने की वजह अनुकूल मौसम होता है. औसत से ज्‍यादा बारिश, लगातार नमी, बारिश के दिनों में इजाफा होना और लगातार बादल छाए रहना, ये सभी वजहें इस कीट के लिए एक आदर्श प्रजनन वातावरण बनाती हैं. इसकी वजह से उपज में 30 प्रतिशत तक की संभावित हानि हो सकती है. 

कपास की फसल चौपट 

इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मानसा जिले के साहनेवाली गांव के किसान हरजिंदर सिंह ने कहा कि ग्रीन लीफहॉपर ने उनकी पूरी 4 एकड़ कपास की फसल पर हमला कर दिया है. उन्हें इस साल उपज में 20-25 प्रतिशत का नुकसान होने का डर सता रहा है. उन्होंने आगे कहा कि उनके पूरे गांव में सिर्फ कपास की खेती होती है और इस मौसम में एक भी किसान का खेत इससे नहीं बचा है. हरजिंदर ने कहा कि कृषि विभाग का कोई भी अधिकारी अभी तक फसल के नुकसान का आकलन करने के लिए गांव नहीं आया है. 

अब कुछ ही पौधों में सुधार 

वहीं पंजाब के कृषि निदेशक जसवंत सिंह ने इस पूरे मामले पर सवाल पूछे जाने पर चुप्‍पी साध ली. हरियाणा के सिरसा जिले के चोरमार गांव के किसान मनप्रीत सिंह भी ऐसी ही स्थिति का सामना कर रहे हैं. उनकी पूरी 17 एकड़ की कपास की फसल प्रभावित हुई है और उन्हें भी उपज में 20-25 प्रतिशत नुकसान की आशंका है. उन्होंने बताया कि उनके गांव में भी सिर्फ कपास की ही खेती होती है, और इस साल एक भी खेत इससे अछूता नहीं रहा है. उसी गांव के बिट्टू सिंह ने कहा कि उन्होंने शुरुआत में पत्तियों के पीले पड़ने और मुड़ने को बारिश से हुए नुकसान के रूप में समझा, लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि यह हरा तेला के कारण था. उन्होंने दावा किया, 'हमने अनुशंसित कीटनाशकों का छिड़काव करने में देरी की और अब केवल कुछ पौधों में ही सुधार के संकेत दिख रहे हैं.' 

कैसी बचेगी फसल 

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की संगरिया तहसील के चक हीरा सिंघवाली गांव के जगजीत सिंह ने बताया कि कीड़े ने उनकी पूरी 45 बीघा कपास की फसल पर हमला कर दिया है. उन्होंने कहा, 'यह संक्रमण सिर्फ मेरे गांव तक सीमित नहीं है बल्कि पूरी तहसील में फैल गया है. हमें समझ नहीं आ रहा कि अपनी फसल कैसे बचाएं.'  सिंहपुरा गांव (सिरसा) के किसान गुरमीत सिंह, मानसा के मक्खन सिंह और कई और किसानों ने भी इसी तरह के हमलों की सूचना दी है. हरा तेला के हमले पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कई गांवों में देखे गए हैं और ये सभी उत्तर भारत के महत्‍वपूर्ण कपास उत्‍पादक क्षेत्र हैं. 

पत्तियों को हुआ बड़ा नुकसान 

साउथ एशिया बायो टेक्‍नोलॉजी सेंटर (एसएबीसी), जोधपुर की तरफ से प्रोजेक्‍ट बंधन के तहत किए गए एक क्षेत्र सर्वे ने हरियाणा (हिसार, फतेहाबाद, सिरसा), पंजाब (मानसा, बठिंडा, अबोहर, फाजिल्‍का) और राजस्थान (हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर) के प्रमुख कपास उत्पादक जिलों में जैसिड की उपस्थिति में खासा इजाफा होने की पुष्टि की है. हर पत्ती 12-15 लीफहॉपर का इनफेक्‍शन लेवल दर्ज किया गया है - जो आर्थिक सीमा स्तर (ईटीएल) से कहीं ज्‍यादा है. साथ ही पत्तियों को ग्रेड III और IV की गंभीरता तक पहुंचने वाला साफ नुकसान भी देखा गया है. 

इस बार अच्‍छी थी फसल 

वहीं हरियाणा के सिरसा स्थित एसएबीसी के हाई-टेक आरएंडडी स्टेशन के फाउंडर और डायरेक्‍टर डॉक्‍टर भागीरथ चौधरी ने अखबार से कहा, 'हमारे सर्वे में उत्तर भारत के कपास क्षेत्र के कई गांवों में हरे लीफहॉपर का गंभीर प्रकोप देखा गया जिससे हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में कपास की फसल को गंभीर खतरा पैदा हो गया है. जैसिड की आबादी में यह वृद्धि कई वर्षों के बाद हुई है और इसका मुख्य कारण इस वर्ष लंबे समय तक गीला और नमी वाला मौसम रहा है, औसत से ज्‍यादा बारिश, ज्‍यादा नमी और बादलों से घिरा आसमान है. उन्होंने आगे बताया कि यह कीट कई सालों के बाद खेतों में वापस आ गया है. उनका कहना था कि लीफहॉपर का संक्रमण ऐसे समय में सामने आया है जब पिछले 3-4 वर्षों की तुलना में कपास की फसल अच्छी स्थिति में थी. 

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