गेहूं के लिए मार्च महीना बेहद अहम, मौसम और तापमान से तय होगी पैदावार

गेहूं के लिए मार्च महीना बेहद अहम, मौसम और तापमान से तय होगी पैदावार

गेहूं (wheat crop) के लिए मार्च का महीना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. मार्च के दूसरे हफ्ते में तापमान सही हो तो गेहूं की पैदावार (wheat yield) बढ़ जाती है. अगर रबी सीजन (rabi season) में मार्च का तापमान अधिक हुआ तो पिछले साल की तरह इस बार भी उपज कम हो सकती है.

मार्च महीने का तापमान तय करेगा गेहूं की पैदावारमार्च महीने का तापमान तय करेगा गेहूं की पैदावार
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 12, 2023,
  • Updated Jan 12, 2023, 11:28 AM IST

इस साल गेहूं की बंपर पैदावार (wheat yield) होने की उम्मीद है. एक अनुमान के मुताबिक, इस साल रबी सीजन (rabi season) में गेहूं की उपज 1120 लाख टन तक पहुंच सकती है. इस साल गेहूं का रकबा बढ़ा है, इसलिए उत्पादन बढ़ने की भी उम्मीद है. हालांकि मार्च महीना गेहूं के लिए बेहद अहम होगा. मार्च महीने का तापमान ही तय करेगा कि इस साल गेहूं की उपज (wheat production) कितनी होगी. अगर मार्च में तापमान में कुछ ऊंच-नीच होती है, जैसा कि पिछले साल हुआ था, तो इस बार भी गेहूं (wheat crop) की उपज कम रह सकती है. 

करनाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ली रिसर्च (IIWBR) के डायरेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि मार्च का तापमान ही इस रबी सीजन के गेहूं की उपज को निर्धारित करेगा. मौजूदा सीजन में 5 जनवरी तक देश में 332.16 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुआई की गई है जो पिछले साल की तुलना में 0.69 परसेंट अधिक है.

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उत्तर-पश्चिम हिस्से में अच्छी पैदावार

ज्ञानेंद्र सिंह ने 'बिजनेसलाइन' से कहा, अभी तक गेहूं की स्थिति (wheat crop) अच्छी चल रही है. पिछले साल की तुलना में इस बार बुआई में हल्की बढ़त देखी जा रही है. मौसम भी साथ दे रहा है. देश के उत्तर-पश्चिम इलाके में अगर एक-दो बार बारिश हो जाए तो गेहूं की बढ़वार अच्छी रहेगी. हालांकि देश का अधिकांश गेहूं क्षेत्र सिंचित है जहां बारिश का बहुत अधिक असर नहीं देखा जाता. उत्तर-पश्चिम के सभी इलाके-जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गेहूं की बुआई समय से चल रही है.

गेहूं की नई किस्मों का फायदा

इन इलाकों में गेहूं की दो नई किस्में बोई जा रही हैं जिनमें डीबीडब्ल्यू 187 और डीबीडब्ल्यू 303 शामिल हैं. अभी हाल में दो और नई किस्में जारी हुई हैं जिनमें डीबीडबल्यू 327 और डीबीडब्ल्यू 332 के नाम हैं. इन दोनों किस्मों को गेहूं के किसान अपना रहे हैं. जिन इलाकों में देर से गेहूं की बुआई हुई है या हो रही है, वहां नई किस्मों से प्रति हेक्टेयर 35-40 कुंटल गेहूं की पैदावार (wheat yeild) मिल सकती है. कृषि विशेषज्ञों की बताई गई वेरायटी की खेती किसान करते हैं, तो उन्हें जरूर ही अच्छी उपज (wheat production) मिलेगी.

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रतुआ रोग का असर नहीं

हरियाणा के यमुनागर में खुशी की बात ये है कि अभी तक पीला रतुआ रोग लगने की कोई खबर नहीं है. यहां से इस रोग की अक्सर शिकायत मिलती है, लेकिन सरकारी एजेंसियों की रोकथाम की वजह से इसमें सुधार देखा जा रहा है. कृषि विशेषज्ञों की टीम लगातार इस इलाके में दौरा कर रही है और गेहूं का निरीक्षण कर रही है. अभी तक गेहूं पर कीटों का कोई प्रकोप देखने में नहीं आ रहा है. पंजाब के कुछ इलाकों में पिंक वर्म की शिकायत मिली थी, जो अभी नियंत्रण में है.

भारत दूर करेगा खाद्य संकट!

गेहूं की फसल के लिए तापमान बहुत मायने रखता है. उसमें भी मार्च का महीना सबसे अहम है. अप्रैल का तापमान उपज (wheat yeild) पर बहुत अधिक असर नहीं डालता. मार्च के दूसरे हफ्ते से तापमान का महत्व सबसे अधिक बढ़ जाता है. पिछले साल की तरह इस बार परिस्थितियां बनने की संभावना कम है. पिछले साल मार्च में ही गर्मी शुरू हो गई थी जिससे गेहूं की पैदावार (wheat crop) मारी गई थी. हाल में सरकार ने कहा कि यूक्रेन युद्ध के बाद पूरी दुनिया में जिस तरह गेहूं का संकट पैदा हुआ है, उसे भारत में गेहूं की बंपर पैदावार से मदद मिलेगी. इससे देश की खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सकेगी.

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