इस साल बढ़िया मॉनसून के बीच देशभर में धान का रकबा तेजी से कवर हो रहा है. वहीं, इस खरीफ सीजन में बड़ी संख्या में किसान हाइब्रिड धान की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. किसान बेहतर पैदावार, अधिक आय और मौसम के उतार-चढ़ाव को झेलने की क्षमता के चलते हाइब्रिड धान की खेती पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं. बीज कंपनियों बायर क्रॉपसाइंस (Bayer CropScience) और सीडवर्क्स (SeedWorks) ने इस बार हाइब्रिड धान के बीजों की बिक्री में अच्छी बढ़त दर्ज की है.
‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका में बायर के फसल विज्ञान डिवीजन के कंट्री डिवीजनल हेड साइमन वीबुश ने कहा, “खरीफ 2025 के शुरुआती आंकड़ों से पता चलता है कि इस बार हाइब्रिड धान की बुआई में 6 से 8 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है. किसानों की पसंद में बदलाव, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में सुधार और बेहतर रिटर्न इस ट्रेंड को आगे बढ़ा रहे हैं.”
रिपोर्ट के मुताबिक, 1 अगस्त तक धान की बुआई 31.94 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच चुकी है, जो पिछले साल की तुलना में 17% ज्यादा है. देश में कुल 43 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती होती है, जिसमें से सिर्फ 6 प्रतिशत क्षेत्रफल में ही हाइब्रिड धान बोया जाता है. हालांकि, पूर्वी भारत के राज्यों में यह आंकड़ा 15 प्रतिशत तक पहुंच चुका है.
सीडवर्क्स इंटरनेशनल लिमिटेड के एमडी और सीईओ वेंकटराम वसंतवदा ने कहा, "हाइब्रिड धान के लिहाज से यह साल हमारे लिए काफी हद तक अच्छा रहा है. हालांकि, उत्तर प्रदेश और बिहार ने उद्योग की अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया. वहीं, उन्होंंने कहा कि हाइब्रिड धान की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण इसकी 15-20 प्रतिशत ज्यादा पैदावार है.
साथ ही यह विपरीत मौसम, कीट और बीमारियों से बेहतर तरीके से लड़ता है. बीज उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकारों को हाइब्रिड धान को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन योजनाएं लानी चाहिए. हाइब्रिड किस्में कम पानी की जरूरत के साथ ज्यादा उत्पादन देती हैं, जो टिकाऊ खेती की दिशा में अहम कदम हो सकता है.
बायर के साइमन वीबुश ने कहा कि हाइब्रिड धान पारंपरिक किस्मों के मुकाबले 10-25 फीसदी ज्यादा उत्पादन हासिल होता है. इसके अलावा यह कई तरह के जैविक और अजैविक तनावों से भी बेहतर तरीके से निपटता है. हाइब्रिड किस्मों की एक और खास बात है कि इनका जीवनचक्र यानी फसल अवधि छोटी होती है, जिससे किसान एक ही खेत में कई फसलें ले सकते हैं. साथ ही, ये बीज ‘डायरेक्ट सीडिंग’ के लिए भी उपयुक्त हैं, जिससे मजदूरी कम लगती है और पानी की बचत होती है.