केंद्र सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 में गेहूं खरीद के लिए तय किए गए टारगेट का लगभग आधा हिस्सा खरीद लिया है. यानी इस वर्ष पिछले साल के मुकाबले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर गेहूं की खरीद अच्छी मानी जा सकती है. पिछले साल सरकार टारगेट का आधा गेहूं भी नहीं खरीद पाई थी. भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई के मुताबिक एक से 24 अप्रैल तक देश भर में एमएसपी पर 171 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा जा चुका है. जबकि इस बार 341.50 लाख मीट्रिक टन का लक्ष्य रखा गया है. एक मीट्रिक टन में 10 क्विंटल होता है. जिस गति से खरीद चल रही है उसे देखकर ऐसा लगता है कि लक्ष्य पूरा हो जाएगा. क्योंकि कई सूबों में जून तक खरीद जारी रहेगी.
यह खरीद पूरी होती है तो केंद्र के पास गेहूं का पर्याप्त भंडार होगा. इस साल जनवरी में ओपन मार्केट सेल लाकर एफसीआई द्वारा रियायती दर पर 33 लाख टन गेहूं बेचने के बावजूद एक अप्रैल को 83.45 लाख मीट्रिक टन का स्टॉक था, जो कि बफर स्टॉक नॉर्म्स से अधिक है. एक अप्रैल को गेहूं का बफर स्टॉक 74.60 लाख टन ही चाहिए होता है. गेहूं की सरकारी खरीद की अच्छी रफ्तार से सरकार ने तो राहत की सांस ली है, लेकिन जिस तरह से गेहूं का दाम गिराने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी लगी उससे निश्चित तौर पर किसानों भारी नुकसान हुआ है. ऐसे में यह सवाल बना हुआ है कि क्या गेहूं का दाम घटाकर किसानों की इनकम बढ़ाई जाएगी? किसानों की तरक्की का यह कौन सा फार्मूला है.
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फिलहाल, हम गेहूं की सरकारी खरीद के आंकड़ों पर आते हैं. इस मामले में पहले नंबर पर पंजाब और दूसरे नंबर पर हरियाणा है. रबी मार्केटिंग सीजन 2020-21 को छोड़ दें तो पंजाब ही गेहूं खरीदने के मामले में नंबर वन रहा है. हरियाणा और पंजाब दोनों राज्य सेंट्रल पूल यानी बफर स्टॉक में सबसे ज्यादा गेहूं देते हैं. बफर स्टॉक में इनका योगदान 55 फीसदी का होता है. इस बार अब तक पंजाब ने सबसे अधिक 76,26,178 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा है. जबकि हरियाणा में 50,55,405 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा जा चुका है.
हरियाणा और पंजाब के ओपन मार्केट में गेहूं का एमएसपी से कम दाम मिल रहा है और फसल की गुणवत्ता भी खराब हो गई है. इस वजह से ज्यादातर किसान सरकारी सेंटरों पर गेहूं बेचने जा रहे हैं. कम दाम की एक एक बड़ी वजह नई फसल आने से ठीक पहले ओपन मार्केट सेल स्कीम लाना और मई 2022 से अब तक गेहूं एक्सपोर्ट पर लगा प्रतिबंध भी है. कृषि विशेषज्ञ पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि अगर गेहूं एक्सपोर्ट पर लगी रोक हट जाए तो इसका दाम 3500 प्रति क्विंटल के पार हो जाएगा. हालांकि, ऐसी सूरत में सरकार बफर स्टॉक के लिए गेहूं नहीं खरीद पाएगी. इसलिए उसने एक्सपोर्ट पर रोक जारी रखी हुई है.
सरकार के इस कदम से किसानों का प्रति क्विंटल हजार रुपए से अधिक का नुकसान हो रहा है. सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस में देने के लिए गेहूं की खरीद करनी पड़ती है. जनवरी तक गेहूं का दाम 3000 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल था. ऐसा लग रहा था कि रेट कम नहीं होगा. ऐसे में गरीबों को बांटने के लिए सरकार गेहूं कहां से खरीदेगी. इसलिए पूरी सरकारी मशीनरी दाम गिराने में जुट गई ताकि ओपन मार्केट में इसका दाम एमएसपी के स्तर तक आ जाए और बफर स्टॉक के लिए बिना बोनस दिए आसानी से खरीद हो सके. सरकार अपने मिशन में कामयाब रही लेकिन, इससे किसानों को बड़ा नुकसान हुआ है.
फिलहाल हम सरकारी खरीद के आंकड़ों पर लौटते हैं. एमएसपी पर गेहूं खरीद के मामले में तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है. यहां अब तक 42,88,926 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा जा चुका है. इस मामले में चौथे नंबर पर उत्तर प्रदेश है, जहां अब तक 86,030 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया है. हालांकि यूपी के हिसाब से यह बहुत ही कम है. क्योंकि यह देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक प्रदेश है. जिसकी कुल उत्पादन में हिस्सेदारी करीब 35 परसेंट है. खरीद के मामले में पांचवें नंबर पर राजस्थान है. यहां अब तक 25073 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया है.
कुछ राज्यों के किसान सिर्फ खराब क्वालिटी का गेहूं सरकार को बेच रहे हैं. जबकि कुछ किसान खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई के लिए होने वाले खर्च को देखते हुए अपने गेहूं उत्पादन का कुछ हिस्सा बेच रहे हैं. अभी काफी गेहूं किसानों के पास स्टोर है. क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि पिछले साल की तरह इस साल भी गेहूं का दाम बढ़ेगा. जून में गेहूं की सरकारी खरीद पूरी होने के बाद दाम बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है. रबी फसल सीजन 2022-23 में सरकार ने 1121.82 लाख मीट्रिक टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया है. भारत में हर साल करीब 1050 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खपत होती है. यानी हर रोज 2.87 लाख टन की जरूरत होती है.
गेहूं की कटाई से ठीक पहले मार्च के अंतिम और अप्रैल के पहले सप्ताह में बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और आंधी से बड़े पैमाने पर फसल खराब हुई है, इसलिए सरकार ने हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और यूपी को एमएसपी पर खरीद के नियमों में ढील दी हुई है. ऐसे में कुछ किसानों के पास खराब गेहूं भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने का एक अच्छा अवसर है. वो इसका फायदा उठा रहे हैं. पंजाब और हरियाणा ऐसे राज्यों में शामिल हैं जहां पर गेहूं की फसल को काफी नुकसान पहुंचा है. इसलिए इन दोनों राज्यों में गेहूं की सरकारी खरीद का आंकड़ा सबसे ऊपर है. इन दोनों राज्यों में खराब गेहूं के लिए एमएसपी पर होने वाली कटौती राज्य सरकार वहन कर रही है.
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