Wheat Price: ओपन मार्केट सेल के खेल में प‍िसे क‍िसान, गेहूं उत्पादकों को 45 हजार करोड़ रुपये का नुकसान

Wheat Price: ओपन मार्केट सेल के खेल में प‍िसे क‍िसान, गेहूं उत्पादकों को 45 हजार करोड़ रुपये का नुकसान

महंगाई कम करने की ज‍िम्मेदारी रोजाना स‍िर्फ 28 रुपये कमाने वाले क‍िसानों के कंधे पर ही क्यों होनी चाहिए? जबक‍ि सरकार का ही दावा है क‍ि 80 करोड़ से अध‍िक लोगों को फ्री या फ‍िर दो-तीन रुपये क‍िलो के भाव पर अनाज उपलब्ध करवाया जा रहा है. जान‍िए ओएमएसएस की वजह से क‍िसानों को क‍ितना नुकसान हुआ.

ओपन मार्केट सेल स्कीम से क‍िसे म‍िला फायदा?   ओपन मार्केट सेल स्कीम से क‍िसे म‍िला फायदा?
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Oct 24, 2023,
  • Updated Oct 24, 2023, 1:29 PM IST

उपभोक्ताओं को खुश रखने की कीमत भारत के क‍िसान चुका रहे हैं. वो क‍िसान ज‍िनकी सरकारी आंकड़ों में रोजाना की शुद्ध औसत आय स‍िर्फ 28 रुपये है. उपभोक्ताओं को सस्ता आटा उपलब्ध करवाने नाम पर इस साल की शुरुआत में लाई गई ओपन मार्केट सेल स्कीम से (OMSS-Open Market Sale Scheme) से क‍िसानों को करीब 45,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. यह अनुमान इंड‍ियन काउंस‍िल फॉर र‍िसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉम‍िक र‍िलेशंस के एक र‍िसर्च पेपर में लगाया गया है. ज‍िसे जानमाने अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, राया दास, संचित गुप्ता और मनीष कुमार प्रसाद ने तैयार क‍िया है. इसमें कहा गया है क‍ि अगर हम फरवरी में गेहूं के अखिल भारतीय औसत थोक बिक्री मूल्य को भी लें, तो भी किसानों को ओएमएसएस की वजह से करीब 39,829 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. 

दरअसल, जब अप्रैल में गेहूं की नई फसल आई थी, उससे पहले सरकार ने एमएसपी पर अपने खरीद टारगेट को पूरा करने और महंगाई पर कंट्रोल पाने के ल‍िए ओपन मार्केट सेल स्कीम को एक बड़े हथियार के तौर पर इस्तेमाल क‍िया. भारतीय खाद्य न‍िगम (FCI) ने इस स्कीम के तहत बाजार भाव से बहुत कम कीमत पर 33 लाख टन सस्ता गेहूं डंप करके दाम घटा द‍िया था. वरना क‍िसानों की जेब में ज्यादा पैसे जाते. 

इसे भी पढ़ें: बासमती का एमईपी घटाकर 950 डॉलर प्रत‍ि टन करेगी सरकार, क‍िसानों-एक्सपोर्टरों को बड़ी राहत 

क‍िस दाम पर हुई थी ब‍िक्री

गेहूं की घरेलू कीमतों को स्थिर करने के लिए सरकार ने फरवरी में ओएमएसएस के तहत बाजार भाव से काफी कम कीमत पर गेहूं बेचा था. ओएमएसएस के तहत ब‍िक्री 2350 रुपये प्रति क्विंटल से शुरू हुई थी और बाद में इससे भी कम कीमत पर 2150 के भाव पर ब‍िक्री की गई, जो गेहूं की आर्थिक लागत से कम थी. इस र‍िपोर्ट में कहा गया है क‍ि इस बाजार हस्तक्षेप के बिना, किसान संभावित रूप से प्रति क्विंटल 548 रुपये अत‍िर‍िक्त कमा सकते थे.

ओएमएसएस का फायदा क‍िसे म‍िला?

महंगाई कम करने के नाम पर इस साल तीसरी बार ओएमएसएस के तहत र‍ियायती दर पर गेहूं बेचने का एलान क‍िया गया है. लेक‍िन, क्या महंगाई पर इसका कोई असर पड़ा है? क्या गेहूं और आटा का दाम कम हो गया है? क्या आपको पहले से सस्ता आटा म‍िलने लगा है? गेहूं और आटा के दाम को लेकर खुद केंद्र सरकार के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं क‍ि महंगाई के मोर्चे पर ओएमएसएस का कोई खास असर नहीं है. दरअसल, ओएमएसएस के तहत सरकार आम उपभोक्ताओं को तो सस्ता गेहूं देती नहीं है. सस्ता गेहूं म‍िलता है बड़े म‍िलर्स और कुछ सरकारी एजेंस‍ियों को. यही लोग ओएमएसएस के नाम पर मौज काट रहे हैं.

जब सरकार से मार्केट के मुकाबले काफी सस्ता गेहूं ल‍िया जा रहा है तो उसका फायदा उपभोक्ताओं तक आख‍िर क्यों नहीं पहुंच रहा. क्या इसका मतलब यह समझा जाए क‍ि कुछ लोग महंगाई कम करने के नाम पर ओएमएसएस के जर‍िए मुनाफे की मलाई खा रहे हैं या फ‍िर र‍ियायती दर पर खरीदे गए गेहूं की जमाखोरी हो रही है? क्या इसील‍िए अब सरकार ने गेहूं की स्टॉक ल‍िम‍िट 3000 टन से कम करके 2000 टन कर द‍िया इै.  

गेहूंं की एमएसपी और उत्पादन.

क‍िसानों के कंधे पर ही ज‍िम्मेदारी क्यों?

यह बात भी सच है कि गेहूं का मूल्य (Wheat Price) बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी, लेकिन महंगाई कम करने की ज‍िम्मेदारी स‍िर्फ क‍िसानों के कंधे पर ही क्यों होनी चाहिए? जबक‍ि सरकार का ही दावा है क‍ि 80 करोड़ से अध‍िक लोगों को फ्री या फ‍िर दो-तीन रुपये क‍िलो के नाम मात्र के शुल्क पर अनाज उपलब्ध करवाया जा रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है क‍ि फ‍िर गेहूं का दाम क‍िसके ल‍िए कम क‍िया जा रहा है. अगर सरकार सस्ता आटा देना चाहती है तो बहुत अच्छी बात है. क‍िसानों का हक मारने की जगह वो सब्स‍िडी पर आटा उपलब्ध करवाए. क्या दाम कम करके क‍िसानों की आय बढ़ जाएगी? 

ऐसे हुआ डबल नुकसान

क‍िसानों को दोहरी मार पड़ी. जब उन्हें गेहूं का अच्छा दाम म‍िल रहा था तो पहले 13 मई 2022 से इसका एक्सपोर्ट बैन क‍िया गया जो अब तक नहीं खोला गया है. इससे क‍िसानों को आर्थ‍िक चोट पहुंची. इसके बाद भी दाम नहीं कम हुआ तो ओएमएसएस की चोट पहुंची. क‍िसानों का सवाल है क‍ि जब गेहूं की बंपर पैदावार हुई है तो फ‍िर ओएमएसएस के तहत बड़े म‍िलर्स को र‍ियायती दर पर गेहूं क्यों द‍िया जा रहा है. क्या वो उपभोक्ताओं को र‍ियायती दर पर आटा बेच रहे हैं?  

उच‍ित दाम न म‍िलने से क‍ितना नुकसान 

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है क‍ि आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD)  की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2016-17 के बीच भारतीय किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम न मिलने की वजह से लगभग 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. यह नुकसान ऐसी ही नीत‍ियों की वजह से हुआ है. जब क‍िसानों को अच्छा दाम म‍िलने की बारी आती है तब पूरी व्यवस्था उसके ख‍िलाफ खड़ी हो जाती है. क‍िसानों को उनके हक का यह पैसा म‍िलता तो वह स्व‍िस बैंक में नहीं जाता. वह बाजार में खर्च होता और हमारी इकोनॉमी के ल‍िए बूस्टर डोज का काम करता. 

क्या उपभोक्ताओं को सस्ता आटा म‍िला?  

इस साल का पहला ओएमएसएस लाने से पहले एक जनवरी को आटा का औसत भाव 36.81 रुपये और अध‍िकतम दाम 63 रुपये क‍िलो था. इसी तरह न्यूनतम दाम 23 और मॉडल प्राइस 34 रुपये था. जबक‍ि अब 23 अक्टूबर को आटा का औसत दाम 35.62, अध‍िकतम भाव 70, न्यूनतम 27 और मॉडल प्राइस 35 रुपये क‍िलो है. अब आप ही अंदाजा लगाईए क‍ि ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत सरकार ने म‍िलर्स को जो सस्ता गेहूं द‍िया क्या उसका फायदा सस्ते आटे के रूप में उपभोक्ताओं को म‍िला? अगर नहीं म‍िला तो फ‍िर जाह‍िर है क‍ि महंगाई कम करने के नाम पर लाई गई इस योजना की मलाई क‍िसने खाई. 

इसे भी पढ़ें: क‍िसानों के ल‍िए बड़ी खुशखबरी, एक्सपोर्ट से होने वाले फायदे में 50 फीसदी ह‍िस्सेदारी देगी सरकार

कैसे स‍िर्फ 28 रुपये है क‍िसानों की शुद्ध आय

क‍िसानों की इनकम को लेकर नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन ने जो सबसे ताजा र‍िपोर्ट तैयार की है उसके अनुसार भारत के क‍िसान पर‍िवारों की औसत मास‍िक आय 10,218 रुपये प्रत‍ि माह है. लेक‍िन, इसमें फसलों से होने वाली आय का योगदान मात्र 3,798 रुपये ही है. इसमें से भी 2,959 रुपये वो फसल उत्पादन पर खर्च कर देता है. यानी खेती से उसकी शुद्ध आय स‍िर्फ 839 रुपये प्रत‍िमाह है. प्रत‍िद‍िन का ह‍िसाब लगाएं तो लगभग 28 रुपये. कुछ बड़े क‍िसान फायदे में हो सकते हैं, लेक‍िन 86 फीसदी छोटे क‍िसानों की आर्थ‍िक स्थ‍िति बहुत खराब है. उनकी आय सरकारी चपरासी ज‍ितनी भी नहीं है. क्योंक‍ि उनकी फसलों का उच‍ित दाम नहीं म‍िल पाता. 


 

MORE NEWS

Read more!