केंद्र सरकार ने आखिरकार बासमती चावल के निर्यातकों को बड़ी राहत देने का एलान कर दिया है. सरकार अब इसका मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (MEP-Minimum Export Price) 1200 यूएस डॉलर प्रति टन से घटाकर 950 डॉलर करेगी. सोमवार देर शाम बासमती चावल के एक्सपोर्टरों और वाजिज्य मंत्री पीयूष गोयल के बीच हुई एक वर्चुअल बैठक में इस बात का फैसला हुआ है. गोयल ने मंगलवार को इस निर्णय का नोटिफिकेशन निकलवाने का भरोसा दिलाया गया है. मंत्री और एक्सपोर्टरों ने बैठक में एमईपी को लेकर अपने-अपने तर्क रखे. एक्सपोर्टरों का कहना है कि इतना भारी भरकम एमईपी लगने से भारत का बासमती एक्सपोर्ट कम हो गया है. पाकिस्तान हमारे इंटरनेशनल बाजार पर कब्जा कर रहा है, क्योंकि उसका दाम भारत के बासमती चावल से कम है.
सरकार के 1200 डॉलर वाले फैसले के बाद इसका सीधा असर किसानों की आय पर पड़ रहा था. क्योंकि एक्सपोर्ट कम होने की वजह से बासमती धान की खरीद कम हो गई थी. इससे उसका दाम गिर गया था. एक्सपोर्टरों ने पांच दिन तक बासमती धान की खरीद का बहिष्कार भी कर रखा था. इसकी वजह से हरियाणा और पंजाब के किसानों में सरकार के खिलाफ गुस्सा पनप रहा था. इसीलिए कई किसान संगठनों ने भी बासमती का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस घटाने की मांग उठाई थी. बहरहाल, सरकार के वादे के बाद अब एक्सपोर्टरों को उम्मीद है कि अब सबकुछ सामान्य होगा. धान की खरीद होगी और किसानों को अच्छा दाम मिलेगा.
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सरकार ने 25 अगस्त को बासमती का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1200 डॉलर प्रति टन फिक्स कर दिया था. इससे एक्सपोर्टर काफी परेशान थे, क्योंकि निर्यात पर बुरा असर पड़ रहा था. इसके बाद एक्सपोर्टरों के साथ जूम मीटिंग में 25 सितंबर को वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने एमईपी कम करके 850 डॉलर प्रति टन करने के लिए एक्सपोर्टरों को भरोसा दिलाया था. लेकिन सरकार ने 14 अक्टूबर को एक बार फिर एक्सपोर्टरों की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए 1200 डॉलर वाला फैसला आगे भी जारी रखने का फैसला ले लिया.
हालांकि, सोमवार 23 अक्टूबर एक्सपोर्टरों के लिए राहत की खबर लेकर आया. मंत्रालय ने फिर बैठक बुलाई और पीयूष गोयल ने एमईपी को कम करके 950 डॉलर करने का एलान कर दिया. बैठक में ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया, एक्सपोर्टर राजीव सेतिया, अरविंदर पाल सिंह, रमनीक सिंह, अशोक सेठी और सुशील जैन मौजूद थे. विजय सेतिया ने कहा कि सरकार के इस फैसले से किसानों की आय में सुधार होगा. देश से निर्यात बढ़ेगा.
सरकार चाहती है कि घरेलू बाजार में चावल की कीमतें नियंत्रण में रहें. उपभोक्ताओं के लिहाज से यह मंशा बहुत अच्छी है. लेकिन घरेलू मोर्चे पर महंगाई बढ़ाने में बासमती का कोई खास योगदान नहीं है. क्योंकि बासमती का 80 फीसदी हिस्सा एक्सपोर्ट हो जाता है. मुश्किल से 60 लाख टन बासमती चावल की पैदावार होती है. यानी कुल चावल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी सिर्फ 4.5 फीसदी के आसपास ही है. बासमती चावल आम आदमी नहीं बल्कि खास लोग ही खाते हैं. बासमती चावल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में भी नहीं जाता. ऐसे में घरेलू मोर्चे पर महंगाई बढ़ाने के लिए इसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. इस तर्क को एक्सपोर्टरों ने सरकार के समक्ष रखा है.
बासमती धान की खेती तो वैसे देश के सात राज्यों में होती है, जहां इसके लिए जीआई टैग मिला हुआ है. लेकिन उनमें से हरियाणा और पंजाब दो प्रमुख सूबे हैं जहां इसका सर्वाधिक उत्पादन होता है. दोनों राज्यों की इकोनॉमी में इसका अहम योगदान है. ऐसे में बासमती एक्सपोर्ट कम होने और उसके परिणाम स्वरूप बासमती धान की खरीद कम होने से किसान दबाव में थे. इस मुद्दे को किसान संगठनों ने उठाना शुरू कर दिया था. जिससे सरकार पर किसानों के एंगल से भी सोचने का दबाव बन रहा था.
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इस समय पूसा बासमती-1509 किस्म का धान मंडियों में आ रहा है. इस विवाद के चलते उसका दाम पिछले साल के मुकाबले 800 रुपये प्रति क्विंटल तक कम चल रहा है. पिछले साल किसानों को 3800 रुपये तक का भाव मिल रहा था तो इस साल 3000 रुपये का दाम चल रहा है. दाम कम होने में 1200 डॉलर वाले फैसले का अहम योगदान माना जा रहा है. उधर, अभी पूसा बासमती-1121 की आवक होनी है. बासमती की यह सबसे लोकप्रिय किस्म है और इस किस्म का धान मंडियों में नवंबर के पहले सप्ताह में आना शुरू होगा.
जानकारों का कहना है कि अभी 70 फीसदी बासमती धान मार्केट में आना बाकी है. ऐसे में एक्सपोर्ट प्रभावित होगा तो किसानों का बड़ा नुकसान होगा. ऐसे में सरकार ने समय रहते किसानों को नुकसान से बचाने के लिए एमईपी घटाकर 950 डॉलर प्रति टन करने का फैसला ले लिया. प्रीमियम राइस होने की वजह से बासमती की खरीद एमएसपी के तहत नहीं होती. इसलिए इसके किसान पूरी तरह से निजी क्षेत्र पर निभर्र हैं. इसीलिए एक्सपोर्ट प्रभावित होने की असली मार दरअसल, किसानों पर ही पड़ रही थी.
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