देश की कुल जरूरत का 50 फीसद आलू आगरा में पैदा होता है. इतना ही नहीं टू-इन-वन आलू भी आगरा में ही होता है. विदेश में खासतौर से अरब देशों में आगरा के इस खास वैराइटी के टू-इन-वन आलू को बहुत पसंद किया जाता है. इस आलू को कुफरी संगम के नाम से जाना जाता है. हालांकि डिमांड के मुकाबले इसकी पैदावार कम है. इस आलू को टू-इन-वन इसलिए भी कहा जाता है कि यह ऐसी वैराइटी है जो बाजार से जुड़ी आलू की अलग-अलग जरूरत को पूरा करती है.
कुफरी संगम आलू की फसल 100 दिन में तैयार हो जाती है. यह पैदावार भी अच्छी देती है. पोटेटो रिसर्च सेंटर ने कुफरी संगम को यूपी के साथ ही हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड के साथ ही मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की मिट्टी के हिसाब से अच्छा बताया था. लेकिन आज यह सबसे ज्यादा यूपी के आगरा शहर में हो रहा है.
आलू एक्सपोर्टर और किसान युवराज परिहार टू-इन-वन आलू के बारे में बताते हैं कि आलू की कुफरी संगम वैराइटी को टू-इन-वन नाम विदेशियों ने ही दिया है. ऐसा इसलिए हुआ है कि अभी तक खाने के लिए आलू की किस्म दूसरी होती थी और चिप्स के साथ ही प्रोसेसिंग के लिए दूसरी किस्म का आलू. लेकिन कुफरी संगम वो वैराइटी है जो खाने में तो स्वादिष्ट है ही, साथ में प्रोसेसिंग के लिए भी विदेशी इसे बेहद उन्नत किस्म का आलू मानते हैं. खासतौर पर अरब देशों जैसे कतर और बहरीन, कुवैत, ओमान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात में कुफरी संगम की बहुत डिमांड है.
आलू उत्पादक किसान समिति आगरा मंडल के अध्यक्ष आमिर चौधरी बताते हैं कि आलू की कुफरी संगम वैराइटी अच्छी पैदावार देती है. इसके साथ ही आगरा की मिट्टी में यह आलू खूब फलता-फूलता है. और जगहों के मुकाबले आगरा के कुफरी संगम आलू में स्वाद भी बहुत होता है. बड़ी संख्या में किसान इसकी खेती करना चाहते हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि जरूरत के हिसाब किसानों को कुफरी संगम का बीज नहीं मिलता है. जितना बीज मिलता है वो ना के बराबर है. कई बार पोटेटो सेंटर के साथ ही राज्य सरकार से भी मांग कर चुके हैं, लेकिन बीज की मात्रा आज तक नहीं बढ़ी है. दूसरा यह कि इसमे रोग सहने की क्षमता ज्यादा होती है. आलू का मुख्य रोग पछेता (झुलसा) भी नहीं लगता है.