गेहूं की पत्तियों और डंठल का पीला होना ही रतुआ रोग नहीं, एक्सपर्ट से जानिए काम की बात

गेहूं की पत्तियों और डंठल का पीला होना ही रतुआ रोग नहीं, एक्सपर्ट से जानिए काम की बात

इस बार गेहूं (wheat crop) की बंपर पैदावार होने की उम्मीद है. लेकिन किसानों को सावधान रहने की भी सलाह है. करनाल स्थित IIWBR के वैज्ञानिक कहते हैं कि गेहूं की पत्तियों और डंठल के पीला होने का अर्थ हमेशा रतुआ रोग नहीं होता. यह ठंड और नाइट्रोजन की कमी से भी हो सकता है.

इस बार गेहूं (rabi wheat) की बंपर पैदावार होने की उम्मीद हैइस बार गेहूं (rabi wheat) की बंपर पैदावार होने की उम्मीद है
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 16, 2023,
  • Updated Jan 16, 2023, 11:29 AM IST

रबी गेहूं का सीजन (rabi wheat) चल रहा है. इस बार पूरे देश में गेहूं की बंपर पैदावार मिलने की उम्मीद है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि गेहूं के हिसाब से मौसम उपयुक्त है. ठंड अधिक होने से गेहूं की पैदावार अच्छी मिलने की उम्मीद है. देश का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र गेहूं के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है जहां इस बार गेहूं की बंपर बुआई (wheat crop) हुई है. करनाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ली (IIWBR) के वैज्ञानिक बताते हैं कि मौसम का हाल देखते हुए इस बार गेहूं का उत्पादन बेहद अच्छा होने का अनुमान है. वैज्ञानिक गेहूं में लगने वाले रतुआ रोग को लेकर किसानों को सावधान रहने की अपील करते हैं.

IIWBR के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अनुज कुमार ने किसानों से अपील की है कि बिना सोचे समझे या एक्सपर्ट से राय लिए बिना गेहूं पर किसी तरह के केमिकल का छिड़काव न करें. इससे स्वस्थ फसल को नुकसान हो सकता है. डॉ. कुमार बताते हैं कि गेहूं की पत्तियों या डंठल का पीला होना हमेशा रतुआ रोग (yellow rust) नहीं होता. इसकी और भी वजहें हो सकती हैं. इसलिए पीली पत्ती या पीला डंठल देखते ही गेहूं पर केमिकल का छिड़काव करने से बचना चाहिए.

डॉ. अनुज कुमार ने कहा, पत्तियों और डंठल का पीला होना रतुआ रोग और नाइट्रोजन की कमी नहीं मान सकते. इस तरह का पीलापन अधिक ठंड की वजह से हो सकता है. इसलिए, बिना वैज्ञानिक या कृषि एक्सपर्ट से सलाह लिए किसानों को फसल पर खाद का छिड़काव करने से बचना चाहिए. बिना वजह फसलों पर कीटनाशक या किसी अन्य केमिकल का छिड़काव बेहद नुकसानदेह हो सकता है.

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अभी ठंड का मौसम चल रहा है और इसमें गेहूं की बढ़वार (wheat crop) अच्छी है. कुछ दिनों बाद गेहूं में फूल आने शुरू होंगे. ऐसे में फसल को बीमारी से बचाना जरूरी होता है. किसान इसके लिए फसलों पर छिड़काव करते हैं. लेकिन यह छिड़काव तभी होना चाहिए जब फसल में रतुआ रोग (yellow rust) या कोई अन्य रोग पता चले. रोग के बारे में किसी एक्सपर्ट से सलाह लेकर ही दवा का छिड़काव किया जाना चाहिए.

गेहूं में कुछ दिनों में फूल खिलना शुरू होगा, फूल आगे चलकर फल में तब्दील होंगे. हल्की गर्मी बढ़ने के बाद फल पकना शुरू होगा और फसल तैयार होगी. वैज्ञानिक बताते हैं कि मौजूदा मौसम गेहूं के लिए मुफीद है और भविष्य में अच्छी पैदावार (wheat production) मिलने की संभावना है. पिछले साल मार्च-अप्रैल में अचानक गर्मी बढ़ने से गेहूं की फसल मारी गई थी और पैदावार गिर गई थी. इस बार ऐसा होता नहीं दिखता. 

पिछले साल 1120 लाख मीट्रिक टन गेहूं होने का अनुमान था, लेकिन मार्च-अप्रैल में लू चलने से गेहूं की पैदावार मारी गई. पिछले साल 106.84 मिलियन मीट्रिक टन ही गेहूं का उत्पादन (wheat production) हो सका. इस बार वैज्ञानिक 1120 लाख मीट्रिक टन गेहूं का उत्पादन होने का अनुमान जता रहे हैं. हरियाणा, पंजाब, यूपी और राजस्थान में गेहूं का सबसे अच्छा उत्पादन होता है और इन राज्यों में मौसम अभी उपयुक्त चल रहा है. अच्छी बात ये है कि इन राज्यों में कहीं से भी रतुआ रोग की सूचना नहीं है. यानी फसलें स्वस्थ चल रही हैं.

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गेहूं पैदा करने वाले राज्यों में बारिश की संभावना जताई जा रही है. अगर बारिश होती है तो इससे सिंचाई का पानी बचेगा, सिंचाई पर होने वाला खर्च बचेगा. साथ ही फसलों का उत्पादन (wheat crop) भी बढ़ेगा. किसानों ने इस बार वैज्ञानिकों की सुझाई गई नई वेरायटी जैसे कि डीवीडब्ल्यू-187, डीबीडब्ल्यू-303, डीबीडब्ल्यू-222 और एचडी-3226 की खेती की है जिससे बंपर पैदावार मिलने की उम्मीद है. इस बार देश में 1120 लाख मीट्रिक टन गेहूं (rabi wheat) की पैदावार होने की उम्मीद है.

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