जुलाई और अगस्त में आई भयंकर बाढ़ की वजह से पंजाब का बड़ा हिस्सा पानी में डूबा हुआ था. तब यह अनुमान लगाया गया कि इस साल धान का उत्पादन काफी कम हो जाएगा और किसानों को बड़ा नुकसान होगा. लेकिन इस तरह के नकारात्मक अनुमानों पर तब विराम लग गया जब पंजाब में धान की खरीद 180 लाख मीट्रिक टन के लक्ष्य को पार कर गई. जिसका श्रेय इस वर्ष धान की कम अवधि वाली किस्म (पीआर 126) को दिया जा रहा है. क्योंकि बाढ़ का पानी उतरते ही दोबारा धान रोपाई की गई. बाढ़ से परेशान किसानों के लिए यही मैजिक वैराइटी सहारा बनी. क्योंकि यह चार महीने से कम समय में ही तैयार हो जाती है. राज्य के कृषि अधिकारियों का दावा है कि इस किस्म की बदौलत ही पंजाब में कुल धान उत्पादन 206 लाख मीट्रिक टन को पार करने की उम्मीद है.
पंजाब के कृषि निदेशक जसवन्त सिंह के मुताबिक पिछले वर्ष धान की औसत उपज 68.12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, जो इस वर्ष बढ़कर 75 क्विंटल हो गई है. विभिन्न जिलों में धान की पैदावार 69 से 81 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के बीच रही है. जुलाई-अगस्त के दौरान राज्य में बाढ़ आने के बाद कई किसानों ने बुआई के लिए गैर-बासमती धान की पीआर-126 किस्म का विकल्प चुना. पीआर 126 के तहत क्षेत्र इस वर्ष 29 प्रतिशत क्षेत्र था और 17 प्रतिशत पूसा 44 के तहत था. पीआर 126 की उपज पूसा 44 की उपज के बराबर थी, जिससे उच्च उत्पादन संभव हुआ.
इसे भी पढ़ें: साठ साल से पैदा की गई नीतिगत बीमारी है पराली, सरकार की नाकामी के लिए किसानों को दंड क्यों?
इस वैराइटी में एक साथ कई समस्याओं का समाधान करने की क्षमता है. चूंकि यह चार महीने से कम समय ही तैयार हो जाती है. इसलिए इसकी बुवाई करने वालों को पराली मैनेजमेंट के लिए एक महीने का अतिरिक्त समय मिलेगा. बार-बार इसी समय की बात होती थी. क्योंकि अब तक पंजाब में सबसे लोकप्रिय गैर बासमती धान की किस्म रही पूसा-44 को तैयार होने में करीब पांच महीने का वक्त लगता था. अब चूंकि पीआर-126 की बुवाई करने वालों को एक महीने का अतिरिक्त समय मिलेगा तो वो या तो पूसा डीकंपोजर से पराली का मैनेजमेंट कर लेंगे या फिर अगेती बुवाई करेंगे तो अक्टूबर के अंत तक उनका धान कटकर मंडी में बिकने पहुंच जाएगा. इस तरह दिल्ली वालों की वायु प्रदूषण की समस्या खत्म हो सकती है.
पंजाब की समसे लोकप्रिय गैर बासमती किस्म पूसा-44 है. जिसे तैयार होने में 145 से 150 दिन का वक्त लगता है. इसलिए इसमें पानी की खपत ज्यादा होती है. इसी को ध्यान में रखते हुए अगले साल से इसे बैन कर दिया गया है. किसानों को इसके विकल्प के तौर पर पीआर-126 मिल गया है. जो धान की ऐसी किस्म है इसे तैयार होने में 115 से 120 दिन लगेगा. इसमें नर्सरी से लेकर कटाई तक का वक्त शामिल होता है. इसलिए पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की यह वैराइटी पूसा-44 का विकल्प बनकर उभर रही है. अगले साल इसका एरिया 40 फीसदी तक हो सकता है. इस साल 29 फीसदी है. यह वैराइटी समय, पानी और पैसे की बचत करेगी.
पीआर-126 किस्म पूसा-44 से एक महीना कम और अन्य किस्मों की तुलना में तीन सप्ताह कम समय लेती है. कम वक्त में तैयार होने की खूबी के कारण ही इस वर्ष जुलाई और अगस्त में बाढ़ से बेहाल रहे पंजाब के किसानों के लिए यह किस्म सहारा बनकर उभरी है. पूसा-44 वैराइटी को लंबी अवधि के बावजूद किसान इसलिए अपनाते थे क्योंकि इसमें पैदावार बहुत अच्छी है. करीब 35 से 40 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन की वजह से ही इस वैराइटी का पंजाब में जलवा था. उत्पादन का ऐसा ही जलवा पीआर-126 भी कायम किए हुए है. इसकी उपज भी प्रति एकड़ 25 से 37 क्विंटल के बीच है.
इसे भी पढ़ें: यूरिया-डीएपी खाद को लेकर इफको और कृभको पर गंभीर आरोप, मंत्रालय को लिखा गया पत्र
पंजाब में गैर बासमती धान की खेती सवालों के घेरे में है. क्योंकि इससे जल संकट बढ़ रहा है. अब किसानों पर उन किस्मों का चुनाव करने का दबाव बन रहा है जो कम अवधि की हों. इससे पराली की समस्या का भी काफी हद तक समाधान होगा और पानी के बढ़ते संकट पर भी कंट्रोल होगा. पूसा-44 की खेती में इसलिए पानी ज्यादा लगता था क्योंकि इसे पकने में 150 दिन लगता है. जबकि पीआर-126 में इसलिए पानी कम लगेगा क्योंकि यह सिर्फ 120 में तैयार हो जाएगी. जो वैराइटी जितने अधिक दिन में तैयार होती है उसमें पानी उतना ही ज्यादा लगता है.