केसर बाउल के नाम से मशहूर कश्मीर में केसर का उत्पादन घट रहा है. लगातार उत्पादन घटने से कश्मीर में अब सिर्फ करीब 50 फीसद ही केसर बची है. यही वजह है कि कश्मी री केसर के दाम बहुत ज्यादा हैं. वहीं बाजार में मौजूद ईरानी केसर सस्ती बिक रही है. इतना ही नहीं देश की जरूरत के मुताबिक लगभग 90 फीसद केसर इम्पोर्ट की जा रही है. हालांकि उत्पातदन घटने के बाद भी भारत केसर उत्पादन में दूसरे नंबर पर है. जबकि पहले नंबर पर ईरान है.
पूर्व एग्रीकल्चर डायरेक्टर बताते हैं कि कश्मींर में कुछ इलाके अभी भी ऐसे हैं जहां मौसम और जमीन केसर की खेती के अनुकूल है. अगर यहां केसर की खेती शुरू की जाए तो इससे केसर का रकबा भी बढ़ेगा और उत्पादन भी. इस बारे में एक रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंपी जा चुकी है. देश में सालाना 100 टन केसर की जरूरत है. इस जरूरत को पूरा करने के लिए 90 फीसद से ज्यादा केसर हमे इम्पोर्ट करनी पड़ती है.
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सैय्यद अलताफ जम्मू-कश्मीर एग्रीकल्चर विभाग के डायरेक्टर रहे हैं. किसान तक से फोन पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि अगस्त-सितम्बर में केसर को बारिश की बहुत जरूरत होती है. वहीं दिसम्बर और जनवरी में बर्फवारी केसर की ग्रोथ को बढ़ाती है. लेकिन अफसोस की बात है कि क्लाइमेट चेंज के चलते बहुत बदलाव आ गया है. अब न तो बारिश के बारे में ठीक-ठीक पता है कि कब होगी और न ही बर्फवारी के बारे में की कब गिरेगी. केसर की सिंचाई ज्यादातर प्रकृति के भरोसे हैं.
कुछ साल पहले तक कश्मीर के पुलवामा समेत कुछ इलाकों में हर साल 15 टन तक केसर का उत्पादन होता था. 5 हजार हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती की जाती थी. लेकिन अब जमीन घटकर करीब 3715 हेक्टेयर रह गई है. वहीं केसर का उत्पादन भी 8-9 टन के आसपास ही सिमटकर रह गया है. जबकि ईरान में करीब 50 हजार हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती होती है.
पंपोर के पत्तलघर गांव में रहने वाले केसर किसान इरशाद बताते हैं कि केसर की खेती पूरी तरह से ऑर्गनिक तरीके से होती है. किसी भी तरह के पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. यहां तक की अगर केसर के पौधे में कोई बीमारी भी लगती है तो केमिकल का स्प्रे भी नहीं किया जाता है. ऑर्गनिक तरीके से ही बीमारियों का इलाज किया जाता है. कई बार तो बीमारी काबू में ही नहीं आती है. तब भी केमिकल नहीं छिड़का जाता है. क्योंकि इससे मिट्टी खराब होने का डर भी बना रहता है. ऐसे में पूरी फसल खराब हो जाती है.
बावजूद इसके कई बार केसर के वाजिब दाम भी नहीं मिल पाते हैं. यही वजह है कि कुछ किसान केसर की खेती छोड़कर सब्जियां उगा रहे हैं. जबकि उस जमीन पर केसर की अच्छी खेती हो सकती है.
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