श्रीअन्न फसलों में शामिल ज्वार की खेती इस बार किसानों ने जमकर की है, जिसके चलते ज्वार की बंपर पैदावार की उम्मीद है. लेकिन, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में किसान ज्वार फसल में भूरा फफूंद (ग्रे मोल्ड) रोग के प्रकोप से प्रभावित हैं. यह रोग बालियों को सड़ा देता है, जिससे दाना खराब हो जाता है और उपज कम होने के साथ गुणवत्ता भी गिर जाती है. यूपी कृषि विभाग की ओर से किसानों को इस रोग से फसल बचाने का तरीका बताया गया है.
खरीफ फसलों में इस बार किसानों ने श्रीअन्न फसलों में ज्वार, बाजरा, रागी, छोटा बाजरा और मक्का की जमकर बुवाई की है, जिसके चलते 6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अधिक बुवाई की गई है. पिछली बार श्रीअन्न फसलों की 186.07 लाख हेक्टेयर बुवाई की गई थी, जबकि इस बार 192.55 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में श्रीअन्न फसलों की खेती की गई है.
श्रीअन्न फसलों में ज्वार का रकबा करीब 2 लाख हेक्टेयर बढ़ा है, जिसके चलते उत्पादन में बढ़ोत्तरी की संभावना जताई गई है. खरीफ सीजन में ज्वार की खेती 16.13 लाख हेक्टेयर में की गई हो जो बीते साल 14.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल की तुलना में अधिक है. जबकि, केंद्र ने ज्वार के एमएसपी में भी बढ़ोत्तरी की है. ज्वार की हाइब्रिड वैरायटी के लिए 3371 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी तय किया गया है. जबकि, ज्वार की मालदंडी किस्म के लिए 3421 रुपये प्रति क्विंटल दाम तय है.
इस सब के बीच ज्वार उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में किसान ज्वार फसल में ग्रे मोल्ड रोग के प्रकोप से प्रभावित हैं. उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के प्रसार एवं प्रशिक्षण ब्यूरो ने किसानों को बताया है कि यह भूरा फफूंद (ग्रे मोल्ड) रोग ज्वार की संकर एवं शीघ्र पकने वाली प्रजातियों में पाया जाती है. शुरुआती समय में यह बीमारी सफेद रंग की फफूंद बालियों पर दिखाई देती है. इससे ज्वार की बाली में जो दाने बनते वह भद्दे और उनका रंग हल्का गुलाबी या काला हो जाता है. फंफूद की वजह से ये दाने हल्के और भुरभुरे होते है और इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है.
कृषि विभाग के प्रसार एवं प्रशिक्षण ब्यूरो के अनुसार भूरा फफूंद (ग्रे मोल्ड) रोग से ज्वार फसल को बचाने के लिए किसान मैंकोजेब 75% WP 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
भूरा फफूंद (ग्रे मोल्ड) रोग के अलावा किसानों को तना छेदक इल्ली से फसल बचाने की भी सलाह दी गई है. इस कीट की वयस्क मादा मक्खी पत्तों की निचली सतह पर 10 से लेकर 80 के गुच्छों में अंडे देती है जिनसे 4 से 5 दिनों में कीट निकलकर पत्तों में और तनों में जगह बना लेते हैं, जिससे तने और पत्तियों में छेद हो जाते हैं और पौधे का विकसा रुक जाता है.तना छेदक इल्ली से फसल सुरक्षा के लिए पौधे जब 25 से 35 दिनों के हों तब पत्तों में कार्बोफ्युरान 3 फीसदी दानेदार कीटनाशक के 5 से 6 दाने प्रति पौधे की मात्रा में डालें. लगभग 8 से 10 किलोग्राम कीटनाशक एक हेक्टर के लिए किसान इस्तेमाल करें.