फल और सब्जी का नाम अक्सर हम एक साथ लेते हैं. हालांकि दोनों की खेती का तौर-तरीका बिल्कुल अलग होता है. कमाई की मात्रा भी दोनों की अलग-अलग होती है. ऐसे में एक सवाल उठता है कि फल या सब्जी, किसकी खेती से किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं. सब्जी में भी हम बेमौसमी सब्जी की बात उठाएंगे क्योंकि मौसमी सब्जी की खेती तो हर कोई करता है जबकि बेमौसमी सब्जी की खेती से बहुत लोग अनजान हैं. तो आइए जानते हैं कि फल या बेमौसमी सब्जी की खेती करें तो किसमें कितनी कमाई मिलेगी.
ICAR की एक रिपोर्ट बताती है, औसतन, बेमौसमी सब्जी उत्पादन में साल में 2-3 फसलें 3-4 लाख रुपये का लाभ दे सकती हैं जबकि, एक अच्छी तरह से प्रबंधित फल के बाग से एक साल में 1-2 लाख रुपये का लाभ ही मिल पाता है. इसलिए बेमौसमी सब्जी उत्पादन से किसानों की कमाई में वृद्धि और जीवन स्तर में सुधार की अपार संभावनाएं हैं.
बेमौसमी सब्जियां क्षेत्रफल और समय की प्रति इकाई में अधिक उपज देती हैं, क्योंकि ये सब्जियां बहुत तेजी से बढ़ती हैं और किसानों को कम समय में अधिक आय दिलाती हैं. बेमौसमी सब्जी की खेती के कारण, अधिक सब्जी उत्पादन से न केवल लोगों के स्वास्थ्य में सुधार होता है बल्कि इससे खाने की चीजों की समस्या को भी हल करने में मदद मिलती है.
आईसीएआर ने एक रिपोर्ट में बताया है, पहाड़ी क्षेत्र बेमौसमी सब्जी उत्पादन के लिए उपयुक्त माने जाते हैं. जैसे कि मध्य पहाड़ी और तराई क्षेत्रों में बैंगन, टमाटर, शिमला मिर्च और खीरा जैसी सब्जियां सर्दियों और वसंत ऋतु में उगाई जा सकती हैं. इनकी मैदानी इलाकों, मध्य और उच्च पहाड़ी क्षेत्रों के बाजारों में आपूर्ति की जा सकती है. जबकि, उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मी के मौसम में आलू, फूलगोभी, बंदगोभी, मूली, मटर और पत्तेदार सब्जियों का उत्पादन कर सकते हैं और मध्य पहाड़ी और मैदानी इलाकों के बाजारों में सप्लाई कर सकते हैं.
पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई गई बेमौसमी सब्जियां अपने स्वाद, सुगंध और पौष्टिक प्रकृति के कारण एक विशेष महत्व रखती हैं. पहाड़ की कृषि जलवायु, गर्मी और बरसात के मौसम में भी खेती के लिए अनुकूल होती है, जबकि अधिक तापमान (गर्मी) और अधिक बारिश (बरसात) के कारण ये सब्जियां भारत के मैदानी इलाकों में अच्छी तरह से उगाई नहीं जा सकती और मार्च से अक्टूबर महीनों में इन क्षेत्रों में सब्जियों की सप्लाई कम हो जाने से पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई गई बेमौसमी सब्जियों की मांग मैदानी क्षेत्रों में अधिक होती है. इसलिए किसानों को अपनी सब्जियों की अधिक कीमत मिलती है.
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में विदेशी सब्जियों जैसे ब्रोकोली, यूरोपीय गाजर, चाइनीज गोभी, लेटस, सेलेरी, लीक और सतवारी की बेमौसमी खेती भी आसानी से की जा सकती है. इनकी देश और विदेश में काफी मांग है. लिहाजा इससे किसानों को अधिक दाम भी मिल सकता है.