काला जीरा (बूनियम पर्सिकम बायोस) एक उच्च मूल्य वाला हर्बेसियस मसाला है, जिसका व्यापक रूप से पाक, फूल, इत्र और कार्मिनेटिव उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है. यह अपने औषधीय महत्व के लिए दुनियाभर में जाना जाता है और अलग-अलग नामों से जाना जाता है. हिमाचली काला जीरा या किन्नौरी काला जीरा चिकित्सा और मसाले के लिए उपयोग किया जाता है और यह एक छोटा घास और बारहमासी पौधा है. इसकी खेती बड़े पैमाने पर नकदी फसल के रूप में की जाती है. स्वाद में हल्की सी कड़वाहट वाला काला जीरा मसालों के तौर पर उपयोग किया जाता है. तासीर में गर्म होने के कारण सर्दियों में इसका इस्तेमाल अधिक और फायदेमंद होता है.
ICAR के वैज्ञानिक दुर्गा प्रसाद भंडारी', इंद्र देव, अशोक कुमार ठाकुर और अरुण नेगी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि काला जीरा का खाने में इस्तेमाल करने के अतिरिक्त औषधि की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है. आम जीरे की तुलना में इसकी महक अधिक होती है. इसका उपयोग नमकीन चाय में मसाले के तौर पर भी किया जाता है. जीरे की कई किस्में होती हैं जैसे मोटा जीरा, भूरा जीरा, हल्का सफेद जीरा, लेकिन सबसे उच्चतम गुणवत्ता माको जीरा की होती है, जिसे काला जीरा भी कहा जाता है. माको जीरे के दाने अन्य किस्मों से पतले या बारीक और काले होते हैं और अन्य किस्मों से इसकी सुगंध भी अधिक होती है. माको जीरा देश के गिने-चुने हिस्सों में ही पाया जाता है और यही वजह है कि यह अन्य जीरे की किस्मों से महंगा होता है.
काला जीरा पाकिस्तान के हिंदू-कुश क्षेत्र अफगानिस्तान और हिमालय के उत्तर-पश्चिमी वन क्षेत्रों में पाया जाता है. काला जीरा किन्नौर, कुल्लू, चंबा, शिमला, सिरमौर, लाहौल-स्पीति, पांगी और भरमौर के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में 1850-3100 मीटर की ऊंचाई पर प्राकृतिक रूप से उगता है. हिमाचल के लाहौल स्पीति जिले में भी कुछ किसान इसकी खेती कर रहे हैं. काला जीरा किन्नौर के शौंग और बुरुआ गांव में सेब के नीचे उगाया जा रहा है. इस क्षेत्रों में यह अत्यधिक लोकप्रिय नकदी फसल है, जिसे लगभग दो साल तक फसल की देखभाल करनी पड़ती है. इसकी खेती से प्रति इकाई क्षेत्र में उच्च आय मिलती है, इसलिए यह किसानों द्वारा खेती के लिए अत्यधिक उपयुक्त है.
काला जीरा कभी जंगलों में उगता था, लेकिन आज किसान खेतों में उगा रहे हैं. किन्नौर के कुछ गांवों में काला जीरा किसानों की आर्थिकी मजबूत करने में संजीवनी का काम कर रहा है. हिमाचली काला जीरा एक कृषि उत्पाद है, जिसका जीआई टैग (432) के लिए आवेदन भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत 4 मार्च, 2019 को पंजीकृत किया गया था. इसे काला जीरा उत्पादक संघ द्वारा 17 जुलाई, 2017 को पंजीकृत किया गया. काला जीरा आर्थिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण औषधीय पौधे और मसालों में से एक है जो बड़े पैमाने पर हिमाचल प्रदेश में उगाया जाता है. काला जीरा किन्नौर के वन क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से भी उगता है और किसान परिपक्व होने पर बीज को इकट्ठा करते हैं और इसे बेचते हैं. किन्नौर जिले के शौंग गांव में काला जीरा की खेती बड़े पैमाने पर नकदी फसल के रूप में की जा रही है. इस बेशकीमती मसाले की मांग बहुत अधिक है, क्योंकि फसल कटाई के एक महीने बाद भी काला जीरा मिलना मुश्किल होता है.
वर्तमान में, किन्नौर जिले में काला जीरा की कीमत जुलाई-अगस्त के महीने में लगभग 1500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है, लेकिन इसे दिल्ली के बाजार में 3000 से 5000 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर बेचा जा रहा है. बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत किन्नौरी काला जीरा को संरक्षण करके इसकी रक्षा करना, काला जीरा को खेती में शामिल करना किसानों के लिए बेहद फायदा प्रदान कर सकता है. किन्नौर जिले के शौंग गांव के किसानों ने काला जीरा की खेती के लिए वर्ष 2021-22 के लिए प्रतिष्ठित 'प्लांट जीनोम सेवियर कम्युनिटी अवार्ड' जीता है. शौंग गांव में कुल 51 हेक्टेयर भूमि में काला जीरा उगाया जा रहा है.