India-Pakistan Basmati Rice Dispute: चावल की दुनिया के बादशाह भारतीय बासमती को लेकर पाकिस्तान ने एक बड़ा भ्रम फैलाने की कोशिश की है. लेकिन, अब उसके झूठ का पर्दाफाश हो गया है. पाकिस्तानी मीडिया कह रहा है कि भारत के दावों को खारिज करके ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने पाकिस्तानी बासमती को जीआई टैग (GI-Geographical indication) दे दिया है. जबकि यह सच नहीं है. सच तो यह है कि ट्रेड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ पाकिस्तान (TDAP) ने अभी आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में अपनी बासमती के जीआई टैग के लिए अप्लाई किया है. उसका आवेदन इन दोनों देशों के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑफिस में अभी जांच के स्तर पर ही लंबित है. दूसरी ओर, भारत का स्टेटस पाकिस्तान से बहुत मजबूत है.
भारत पहले से ही आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को बासमती चावल एक्सपोर्ट करता है. दोनों देशों में हमने जीआई टैग के लिए आवेदन किया है, जहां उसकी अदालत में लड़ाई चल रही है. भारत के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के पास पहले से ही न्यूजीलैंड में बासमती बेचने के लिए लोगो मार्क रजिस्टर्ड है. वहां के ट्रेड मार्क में हमारा बासमती लोगो 28 अगस्त 2028 तक वैलिड है. जबकि पाकिस्तान के पास ऐसा कोई रजिस्ट्रेशन भी नहीं है. न्यूजीलैंड की कोर्ट में भारतीय बासमती के जीआई टैग के मामले पर इसी महीने सुनवाई है.
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जहां तक आस्ट्रेलिया की बात है तो वहां भी हमारे बासमती के जीआई टैग का आवेदन काफी समय से पड़ा हुआ है. इस मामले की सुनवाई अप्रैल 2025 में ऑस्ट्रेलिया के फेडरल कोर्ट में निर्धारित की गई है. उधर, आस्ट्रेलिया के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑफिस में पाकिस्तान के ट्रेड डेवलपमेंट अथॉरिटी और आस्ट्रेलिया की राइस ग्रोवर्स लिमिटेड भारतीय आवेदन के विरोध में खड़े हैं. लेकिन भारत मजबूती से अपनी बासमती के जीआई टैग की पैरोकारी कर रहा है. ऐसे में पाकिस्तान का दावा बेबुनियाद है. दरअसल, भारत जहां-जहां पर जीआई टैग के लिए अप्लाई कर रहा है उन देशों में पाकिस्तान हमारे खिलाफ खड़ा हो रहा है. हालांकि, पाकिस्तान के विरोध के बावजूद पूरी दुनिया में बासमती का बादशाह तो भारत ही है.
यूरोपीय यूनियन (EU) में भी बासमती का जीआई टैग लेने पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान ही सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ा है. जबकि एक कड़वी सच्चाई यह है कि पाकिस्तान ने पूसा बासमती-1121 और 1509 सहित कई किस्मों को चुराकर अपने यहां खेती की हुई है. यानी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसे हालात हैं. पाकिस्तान के विरोध की वजह से ही अब तक यूरोपीय यूनियन में भारत के बासमती चावल का जीआई टैग अटका हुआ है.
भारत ने जुलाई 2018 में जीआई टैग के लिए यूरोपीय यूनियन में अप्लाई किया था. ईयू ने प्रस्ताव दिया था कि भारत और पाकिस्तान दोनों संयुक्त रूप से बासमती चावल के जीआई टैग की मांग करें. लेकिन भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल उत्पादक है. हम सालाना करीब 48 हजार करोड़ रुपये का बासमती चावल एक्सपोर्ट करते हैं.
कुछ बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि ईयू में जीआई टैग मिलने के बाद 4 लाख मीट्रिक टन से अधिक बासमती चावल का एक्सपोर्ट बढ़ाने में मदद मिल सकती है. दरअसल, यह टैग एक तरह का गुणवत्ता का पैमाना भी होता है और इसे मिलने के बाद वस्तुओं को देश-विदेश में आसानी से बड़ा मार्केट मिल जाता है. जीआई टैग मिलने से प्रोडक्ट का मूल्य और उससे जुड़े लोगों की अहमियत बढ़ जाती है. फेक प्रोडक्ट को रोकने में मदद मिलती है. इसलिए अब भारत तमाम देशों में बासमती का जीआई टैग लेने की कोशिश कर रहा है ताकि, हमारा एक्सपोर्ट बढ़े और उसका किसानों को फायदा मिले.
दुनिया में दो ही देश बासमती चावल का उत्पादन करते हैं, जिसमें भारत पहले और पाकिस्तान दूसरे नंबर पर है. पाकिस्तान पुरानी दुश्मनी की वजह से कृषि कारोबार में भी पंगे डालते रहता है. हालांकि, पाकिस्तान की तमाम कोशिशों के बावजूद भारतीय बासमती की विश्वसनीयता सबसे ज्यादा है. यहां तक कि तमाम मुस्लिम देशों में भी भारतीय बासमती को ही सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है.
भारतीय बासमती के सबसे बड़े आयातक सऊदी अरब और इराक हैं. साल 2023-24 में भारत ने सऊदी अरब को 10,98,039 मीट्रिक टन बासमती बेचकर 10391.1 करोड़ रुपये कमाए. इसी साल इराक को 8,24,779 मीट्रिक टन चावल बेचकर हमने 7349.5 करोड़ रुपये कमाए. यह बात पाकिस्तान को बहुत अखरती है.
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