सड़क से लेकर संसद तक फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की लीगल गारंटी को लेकर संग्राम जारी है. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कांग्रेस की सत्ता आने पर किसानों की यह मांग पूरा करने का आश्वासन दिया है तो सरकार ने यह कहकर कांग्रेस को किसान विरोधी करार दिया है कि सत्ता में रहते हुए कांग्रेस ने न तो स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू की और न तो फसलों का सही दाम दिया. दोनों पक्षों के अपने तर्क और अपनी सियासत है. लेकिन सच तो यह है कि किसानों को फसलों के सही दाम के लिए अब भी संघर्ष करना पड़ रहा है. इसलिए एमएसपी की लीगल गारंटी को लेकर आंदोलन जारी है. सवाल यह उठता है कि सरकार आखिर किसानों की यह मांग मान क्यों नहीं रही है, क्या उसके पास पैसे की कमी है या वो व्यापारियों के हितों को किसानों से ऊपर रख रही है?
इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह जान लेना बहुत जरूरी है कि आखिर सरकार एमएसपी पर अभी कितना पैसा खर्च करती है. कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि हर साल इस काम पर लगभग 2.55 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, जिसमें ज्यादातर हिस्सा धान और गेहूं पर खर्च होता है. उसमें भी अधिकांश पैसा चार-पांच सूबों पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, आंध प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ तक ही सिमट जाता है. दूसरी ओर, आपको हैरानी होगी कि पांच किलो मुफ्त अनाज पर सालाना खर्च भी लगभग उतना ही आ रहा है जितना कि एमएसपी पर खर्च हो रहा है.
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अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग ऐसा भी है जो कहता है कि अगर किसानों को एमएसपी की गारंटी मिली तो देश का अधिकांश बजट इसी काम में खर्च हो जाएगा और इकोनॉमी बर्बाद हो जाएगी. हालांकि, कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का मानना है कि किसानों की आय तभी बढ़ेगी जब उनकी फसलों का उचित दाम मिलेगा. एमएसपी की लीगल गारंटी देने के लिए सरकार को मुश्किल से 1.5 लाख करोड़ रुपये ही और खर्च करने पड़ेंगे.
शर्मा कहते हैं कि सरकार जब कारपोरेट्स को लाखों करोड़ रुपये की मदद दे सकती है तो किसानों को क्यों नहीं. वो भी तब जब किसान खैरात में पैसा नहीं मांग रहे हैं बल्कि अपनी फसल देकर उसकी सही कीमत मांग रहे हैं. उस फसल को सरकार आगे या तो बेचती है या फिर कल्याणकारी योजनाओं को चलाने के काम में लाती है.
शर्मा का कहना है कि किसानों की आय बढ़ाने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा फसलों का उचित दाम न मिलना ही है. किसानों को दाम की गारंटी मिले तो खेती की स्थिति बदल जाएगी. आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2016-17 के बीच भारतीय किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम न मिलने की वजह से लगभग 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. किसानों को उनके हक का यह पैसा मिलता तो वह स्विस बैंक में नहीं जाता. वह बाजार में खर्च होता और यह अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर डोज का काम करता.
कुछ लोग ऐसी धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि किसानों को एमएसपी की लीगल गारंटी मिली तो सभी फसलों की खरीद सरकार को ही खर्च करनी पड़ेगी. लेकिन, यह बात सच नहीं है. किसान संगठनों ने कभी यह नहीं कहा कि सभी फसलें सरकार ही खरीदे. किसान यह मांग कर रहे हैं कि सरकार जो दाम खुद तय करती है, कैबिनेट में पास करके उसे घोषित करती है उसे मिलने की गारंटी भी दे. गारंटी तब मिल पाएगी जब किसानों के हाथ में कोई लीगल अधिकार होगा. कोई भी व्यापारी उससे कम दाम न दे.
साथ ही किसान यह मांग कर रहे हैं कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसलों की संपूर्ण लागत पर (C2) पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर एमएसपी तय की जाए. सी-2+50% का फार्मूला लागू होने के बाद धान की एमएसपी 3012 रुपये क्विंटल हो जाएगी, जिसे अभी सरकार ने 2300 रुपये क्विंटल तय किया हुआ है. यह भी सवाल उठता है कि जब बीजेपी की ही सरकार छत्तीसगढ़ में 3100 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर धान की खरीद कर सकती है तो बाकी राज्यों में क्यों नहीं?
शेतकरी संगठन के नेता और पूर्व सांसद राजू शेट्टी का कहना है कि सरकार ने चीनी मिलों को घाटा न होने देने के लिए चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य (Minimum Selling Price) तय किया हुआ है. उससे कम कीमत पर मिल से चीनी नहीं बिकती. जब चीनी मिलों को घाटे से बचाने के लिए ऐसा फैसला हो सकता है तो किसानों के लिए क्यों नहीं. अभी चीनी की एमएसपी 31 रुपये है. इस व्यवस्था की शुरुआत 2018 में की गई थी. अब इसे बढ़ाकर 42 रुपये प्रति किलो करने की मांग हो रही है. शेट्टी का कहना है कि इसी तरह की व्यवस्था किसानों के लिए भी करनी होगी. किसानों के लिए ऐसी व्यवस्था लागू करने से परहेज क्यों?
दरअसल, अभी एमएसपी की व्यवस्था सिर्फ सरकार पर लागू है. सरकार जो भी फसल खरीदती है उसका सही दाम देती है. लेकिन प्राइवेट सेक्टर इस कानून से आजाद है. इसलिए प्राइवेट सेक्टर किसानों का सबसे ज्यादा शोषण करता है. अधिकांश बार वो किसानों को फसलों का सही दाम नहीं देता है. अगर एमएसपी की लीगल गारंटी मिल जाएगी तो किसानों को उससे कम दाम कोई भी नहीं देगा.
जहां तक महंगाई कम करने की बात है तो क्या इस काम का बोझ किसानों के कंधों पर ही डालना चाहिए, जबकि सरकार खुद मानती है कि भारत के किसानों की रोजाना की शुद्ध औसत आय सिर्फ 27 रुपये है. किसान संगठनों का कहना है कि अगर सरकार वाकई महंगाई कम करने के लिए गंभीर है तो किसानों से एमएसपी पर खरीद करके मुफ्त में लोगों को बांट दे.
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