Onion Price: क‍िसानों की नाराजगी से प्याज उत्पादन में भारी ग‍िरावट, अब कीमत चुकाएंगे कंज्यूमर...ज‍िम्मेदार कौन?

Onion Price: क‍िसानों की नाराजगी से प्याज उत्पादन में भारी ग‍िरावट, अब कीमत चुकाएंगे कंज्यूमर...ज‍िम्मेदार कौन?

बाजार में सरकारी हस्तक्षेप की पॉल‍िसी क‍िसानों और कंज्यूमर, क‍िसी के भी ह‍ित में नहीं है. वह दोनों को परेशान कर रही है. महाराष्ट्र के क‍िसान नेता कह रहे हैं क‍ि वो उन पार्ट‍ियों के सांसदों-व‍िधायकों को कभी माफ नहीं करेंगे ज‍िनकी वजह से उनका लाखों रुपये का नुकसान हुआ है. अब सरकार आंकड़ेबाजी का खेल खेल रही है क‍ि ड‍िमांड से ज्यादा उत्पादन है, लेक‍िन क्या इससे देश की जनता को राहत म‍िलेगी?   

Advertisement
Onion Price: क‍िसानों की नाराजगी से प्याज उत्पादन में भारी ग‍िरावट, अब कीमत चुकाएंगे कंज्यूमर...ज‍िम्मेदार कौन? महाराष्ट्र की राजनीत‍ि में प्याज का दाम है बड़ा मुद्दा.

प्याज एक बार फ‍िर चर्चा में आ गया है, क्योंक‍ि इसके सबसे बड़े उत्पादक महाराष्ट्र में व‍िधानसभा चुनाव स‍िर पर आ गए हैं. बृहस्पत‍िवार को संसद पर‍िसर में महाराष्ट्र में बीजेपी व‍िरोधी पार्ट‍ियों के सांसदों ने प्याज की माला पहनकर प्रदर्शन क‍िया. इसके बाद यह कहना गलत नहीं होगा क‍ि इस साल होने वाले व‍िधानसभा चुनाव में प्याज का दाम बड़ा मुद्दा होगा. क‍िसान कह रहे हैं क‍ि सरकारी हस्तक्षेप की वजह से उन्हें काफी वक्त तक औने-पौने दाम पर प्याज बेचना पड़ा, जबक‍ि सरकार कह रही है क‍ि क‍िसानों को इस बार प‍िछले वर्ष से अच्छा दाम म‍िल रहा है. इस बीच पता चला है क‍ि प‍िछले एक वर्ष में ही देश में प्याज का उत्पादन 59.96 लाख टन कम हो गया है. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तम‍िलनाडु और तेलंगाना जैसे प्रमुख प्याज उत्पादक सूबों में उत्पादन घट गया है. इसका सीधा असर बाजार पर पड़ना तय है. दाम में तेजी कायम रह सकती है. लेक‍िन, व‍िधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार अभी एक्सपोर्ट बैन जैसा कोई कदम उठाने से डर रही है, क्योंक‍ि क‍िसान बदला लेने के ल‍िए तैयार बैठे हुए हैं. 

क‍िसान कह रहे हैं क‍ि प्याज का उत्पादन कम होने के ल‍िए केंद्र सरकार ज‍िम्मेदार है. अहमदनगर के क‍िसान बाजीराव गागरे का कहना है क‍ि केंद्र सरकार ने अगर जान बूझकर दो-तीन साल से दाम न ग‍िराया होता तो क‍िसान प्याज की खेती कम न करते. प्याज की खेती कम नहीं होती तो आज उत्पादन कम नहीं होता. प‍िछले दो साल से प्याज की खेती का एर‍िया स‍िकुड़ रहा है. केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं क‍ि 2021-22 से  2023-24 के बीच देश में प्याज की खेती का दायरा 4,04,000 हेक्टेयर कम हो गया है. वजह एक ही है कम दाम. 

इसे भी पढ़ें: Pulses Crisis: भारत में क्यों बढ़ रहा दालों का संकट, कैसे आत्मन‍िर्भर भारत के नारे के बीच 'आयात न‍िर्भर' बना देश 

प्याज की क‍ितनी हुई बुवाई.

प्याज की खेती क्यों घटी? 

महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत द‍िघोले का कहना है क‍ि जब प्याज क‍िसानों को सही दाम म‍िलना शुरू होता है तो सरकार कंज्यूमर को खुश करने के ल‍िए उसका दाम ग‍िरा देती है. उसे क‍िसानों का ध्यान नहीं रहता. दाम ग‍िराने के ल‍िए सरकार एक्सपोर्ट बैन करने, इंपोर्ट करने, न‍िर्यात शुल्क बढ़ाने, न्यूनतम न‍िर्यात मूल्य लगाने और स्टॉक ल‍िम‍िट लगाने जैसे कई हथ‍ियारों का इस्तेमाल करती है.प्याज पर बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप ने क‍िसानों को काफी न‍िराश कर द‍िया है. आख‍िर वो कब तक घाटे में खेती करेंगे. इसल‍िए वो खेती कम कर रहे हैं. प्याज की जगह दूसरी फसलों की ओर श‍िफ्ट हो रहे हैं. 

उत्पादन, खपत और दाम  

बहरहाल, उत्पादन कम होने की वजह से बाजार पर दाम बढ़ने का दबाव है. महाराष्ट्र की अध‍िकांश मंड‍ियों में प्याज का दाम इस समय 2500 से 4500 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल के बीच है. इसकी वजह से र‍िटेल में प्याज 50 रुपये प्रत‍ि क‍िलो तक के दाम पर म‍िल रहा है. लेक‍िन, सरकार ऐसा द‍िखाने की कोश‍िश कर रही है क‍ि सबकुछ ठीक है. इसल‍िए आंकड़ेबाजी के जर‍िए उसने यह बताने की कोश‍िश की है क‍ि 242.12 लाख मीट्र‍िक टन उत्पादन में भी जनता को च‍िंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंक‍ि भारत में प्याज की सालाना खपत स‍िर्फ 193.61 लाख टन ही है. हालांक‍ि सरकार को यह भी ध्यान रखना चाह‍िए क‍ि वजन घटने, अंकुरण और सड़ने से 30 प्रतिशत प्याज का नुकसान हो जाता है. ऐसा प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय की र‍िपोर्ट में दावा क‍िया गया है. 

प्याज का राज्यवार उत्पादन.

कहां-कितना गिरा प्‍याज उत्‍पादन

देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक सूबा महाराष्ट्र है. बाजार में सरकारी हस्तक्षेप से यहां के क‍िसान सबसे ज्यादा परेशान रहे हैं. क‍िसानों को कहना है क‍ि अगर दाम कम होने पर सरकार क‍िसानों के घाटे की भरपाई नहीं करती है तो उसे दाम बढ़ने पर घटाने का भी कोई हक नहीं है. सरकार को कंज्यूमर के आंसू तो द‍िखाई देते हैं लेक‍िन क‍िसानों की पीड़ा वह समझने के ल‍िए राजी नहीं है. 

लोकसभा चुनाव के दौरान स‍ियासी नुकसान से बचने के ल‍िए मजबूरी में सरकार ने प्याज पर लगे एक्सपोर्ट बैन को हटाया, लेक‍िन उस पर 550 डॉलर प्रत‍ि टन के न्यूनतम न‍िर्यात मूल्य और 40 फीसदी न‍िर्यात शुल्क की शर्त थोप रखी है. इससे क‍िसानों को पर्याप्त फायदा नहीं म‍िला है. 

द‍िघोले का कहना है क‍ि प्याज उत्पादक क‍िसान उन पार्ट‍ियों के सांसदों-व‍िधायकों को कभी माफ नहीं करेंगे ज‍िनकी वजह से उनका लाखों रुपये का नुकसान हुआ है. चुनाव में सूद सह‍ित नुकसान की वसूली होगी. प्याज पर केंद्र सरकार के फैसलों की वजह से महाराष्ट्र के क‍िसानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, इसल‍िए उसने खेती घटा दी है. खेती घटने से उत्पादन घट गया है. 

साल 2021-22 के दौरान राज्य में 136.69 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था, जो 2023-24 में घटकर स‍िर्फ 86.02 लाख टन रह गया है. मध्य प्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक है. यहां 2021-22 में 47.41 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था जो  2023-24 में घटकर स‍िर्फ 41.66 लाख टन रह गया. 

क‍िस राज्य में क‍ितनी होती है खपत 

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार देश में सालाना 193.61 लाख मीट्र‍िक टन प्याज की खपत होती है. ज‍िसमें सबसे अध‍िक 27.64 लाख टन प्याज उत्तर प्रदेश में खाया जाता है. हालांक‍ि उत्तर प्रदेश में स‍िर्फ 5 से 6 लाख मीट्रिक टन ही प्याज पैदा होता है. यानी यहां के लोग महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों के प्याज पर न‍िर्भर रहते हैं. देश में प्याज की दूसरी सबसे बड़ी खपत ब‍िहार में होती है. यहां पर सालाना 20.88 लाख टन की खपत है, जबक‍ि यहां उत्पादन 14 लाख टन के आसपास ही है. पंजाब को भी अपनी खपत के ल‍िए दूसरे सूबों के प्याज पर न‍िर्भर रहना पड़ता है. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात अपनी सालाना खपत से बहुत ज्यादा प्याज का उत्पादन करते हैं. 

क‍िस राज्य में सबसे ज्यादा होती है प्याज की खपत.

सरकारी हस्तक्षेप के साइड इफेक्ट   

क‍िसान नेता अन‍िल घनवत का कहना है क‍ि मार्केट इंटरवेंशन यानी बाजार में सरकारी हस्तक्षेप की पॉल‍िसी न तो क‍िसानों के ह‍ित में है और न तो कंज्यूमर के ह‍ित में. इसल‍िए सरकार बाजार में हस्तक्षेप का काम बंद करे. प्याज का उत्पादन सरकार की वजह से ग‍िरा. क्योंक‍ि सरकार के हस्तक्षेप के कारण लगातार दो-तीन साल तक क‍िसानों को दाम नहीं म‍िला तो उन्होंने खेती घटा दी. अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो वो खेती नहीं घटाते और उत्पादन नहीं घटता. उत्पादन नहीं घटता तो प्याज के दाम में बहुत तेजी नहीं आती. 

अगर सरकार क‍िसानों को सही दाम नहीं लेने देगी तो लांग टर्म में उसकी कीमत महंगाई के रूप में उपभोक्ता चुकाएंगे. जैसा क‍ि लहसुन के मामले में हुआ. 2022 के अंत‍िम कुछ महीनों और 2023 की शुरुआत में क‍िसान स‍िर्फ 10 रुपये क‍िलो तक के दाम पर लहसुन बेचने के ल‍िए मजबूर थे. बाद में उन्होंने खेती कम कर दी, ज‍िससे उत्पादन घट गया और अब उपभोक्ताओं को 400 से 500 रुपये क‍िलो के भाव पर लहसुन खरीदना पड़ रहा है. 

इसे भी पढ़ें: कृष‍ि न‍िर्यात का 'ब‍िग बॉस' बना बासमती चावल, पाक‍िस्तान के विरोध के बावजूद जलवा कायम

POST A COMMENT