देशभर में रबी सीजन की शुरुआत होने वाली है और किसान इसकी तैयारियों में जुट गए हैं. चना इस सीजन की सबसे अहम फसल है जिसे सर्दियों की फसल भी कहा जाता है. आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में किसान इसकी बुआई करते हैं और वसंत ऋतु में, मार्च या अप्रैल के आसपास इसकी कटाई की जाती है.
ज्यादा फायदे के लिए अब किसान चने की ऐसी उन्नत किस्मों की ओर रुख कर रहे हैं जो पारंपरिक किस्मों की तुलना में न सिर्फ ज्यादा उत्पादन दें बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता और बाजार में बेहतर कीमत के कारण किसानों को लाखों का मुनाफा भी दिला सकें. देश में वैज्ञानिकों ने ऐसी कुछ खास किस्में विकसित की हैं जो पारंपरिक किस्मों की तुलना में बेहतर साबित हो रहीं हैं. आज हम आपको ऐसी ही तीन किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जो किसानों के लिए फायदेमंद रही हैं.
महाराष्ट्र के राहुरी स्थित फुले एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की तरफ से विकसित यह किस्म किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह केवल 90 से 105 दिनों में तैयार हो जाती है. इससे किसान समय की बचत कर दूसरी फसल की तैयारी भी कर सकते हैं. प्रति हेक्टेयर 40 से 50 क्विंटल तक उत्पादन देने वाली यह किस्म बाजार में 6,000 रुपये से 7,000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकती है. एक एकड़ में इससे किसान दो से 3 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा सकते हैं. इसकी दाने की गुणवत्ता और स्वाद भी बेहतर है, जिससे उपभोक्ता मांग बढ़ रही है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित पूसा मानव 20211 किस्म को हाल ही में किसानों के लिए जारी किया गया है. यह किस्म उकठा रोग और फ्यूजेरियम विल्ट जैसी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक है जिससे फसल की सुरक्षा सुनिश्चित होती है. बुवाई के 100 से 110 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म प्रति हेक्टेयर 45 क्विंटल तक उत्पादन देती है. इसके दाने बड़े, चमकदार और बाजार में आकर्षक माने जाते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, यह किस्म आने वाले वर्षों में चने की खेती की रीढ़ बन सकती है.
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा विकसित जे.जी-12 किस्म मध्यप्रदेश के किसानों की पहली पसंद बन चुकी है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता है उकठा रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता और स्थिर उत्पादन. यह किस्म 100 से 105 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. साथ ही किसानों को इससे प्रति हेक्टेयर 22 से 25 क्विंटल तक उत्पादन मिलता है. इसकी खेती में लागत कम आती है और बाजार में 5,500 से 6,500 रुपये प्रति क्विंटल तक इसकी कीमत मिलती है. छोटे और मध्यम किसान इस किस्म को अपनाकर अच्छा फायदा कमा रहे हैं.
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इन किस्मों के प्रयोग से चने की उत्पादकता में 30 से 40 प्रतिशत तक वृद्धि संभव है. साथ ही, जलवायु परिवर्तन के दौर में इन किस्मों की रोग प्रतिरोधक क्षमता किसानों को जोखिम से बचाती है. सरकार भी इन किस्मों को बढ़ावा देने के लिए बीज वितरण और प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है.
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