Doon Basmati: उत्तराखंड में देहरादून बासमती के रकबे में गिरावट, 5 साल में 62 फीसदी घटी खेती

Doon Basmati: उत्तराखंड में देहरादून बासमती के रकबे में गिरावट, 5 साल में 62 फीसदी घटी खेती

देहरादूनी बासमती अपने विशिष्ट और मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है, जिसने इसे भारत में पाई जाने वाली लगभग 30 बासमती किस्मों के बीच लाकर खड़ा कर दिया है. देहरादूनी बासमती चावल अपनी गैर-चिपचिपी विशेषताओं के लिए लंबे समय से जाना जाता है.

उत्तराखंड में देहरादून बासमती के रकबे में गिरावटउत्तराखंड में देहरादून बासमती के रकबे में गिरावट
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 24, 2024,
  • Updated Jan 24, 2024, 1:02 PM IST

अपने अनोखे स्वाद और सुगंध के लिए प्रसिद्ध देहरादूनी बासमती चावल की खेती में 2018 और 2022 के बीच केवल पांच वर्षों की अवधि में दून घाटी में 62 फीसदी की भारी गिरावट देखी गई है. उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड की हाल ही में आई रिपोर्ट से पता चला है कि 2018 में देहरादूनी बासमती की खेती 680 किसानों द्वारा 410.1 हेक्टेयर में की गई थी, जो 2022 में 517 किसानों से घटकर 157.8 हेक्टेयर रह गई है. वहीं अध्ययन में कहा गया है कि बासमती की अन्य किस्में, 420.3 हेक्टेयर में उगाई गई हैं.

साथ ही अध्ययन के अनुसार खेती को प्रभावित करने वाली वजहों में गर्मी के तापमान में वृद्धि, मिट्टी की खराब उर्वरता, खेत में खाद का कम उपयोग, सिंचाई के लिए पानी की कमी, बारिश के पैटर्न में बदलाव और रासायनिक उर्वरकों का व्यापक उपयोग शामिल हैं.

घटता हुआ रकबा, खतरे की घंटी

देहरादूनी बासमती अपने विशिष्ट और मीठे स्वाद के लिए जाना जाती है, जिसने इसे भारत में पाई जाने वाली लगभग 30 बासमती किस्मों के बीच लाकर खड़ा कर दिया है. देहरादूनी बासमती चावल अपनी गैर-चिपचिपी विशेषताओं के लिए लंबे समय से जाना जाता है. वहीं इसकी खेती करने वाले किसानों ने कहा कि अब ये चावल खतरे में है. इसका घटता हुआ रकबा किसानों के लिए चिंता का विषय है.

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गिरावट का सिलसिला 1997 से जारी

एक किसान ने दुख जताते हुए 'Times Of India' से कहा कि मुख्य क्षेत्र जहां चावल की खेती की जाती है, वह जगह अब कंक्रीट और जंगल में तब्दील हो गया है. वहीं एक अनुभवी किसान जसवंत नेगी जो कि चावल मिल मालिक भी हैं, ने कहा कि कई क्षेत्रों में बढ़ते हुए विकास से देहरादूनी बासमती का रकबा खत्म होते जा रहा है. यदि इसपर ध्यान दिया जाए तो अभी भी शेष क्षेत्रों में इसे बचा सकते हैं. वहीं देहरादूनी बासमती चावल की खेती में गिरावट का सिलसिला 1997 से चला आ रहा है.

रकबा बढ़ाने के लिए रूपरेखा तैयार 

उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष धनंजय मोहन ने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से कहा कि अध्ययन के माध्यम से हमने अनाज के खेती योग्य क्षेत्र में गिरावट के लिए जिम्मेदार फैक्टर की पहचान की है. वहीं किसानों के बीच देहरादूनी बासमती को बढ़ावा देने के लिए एक रूपरेखा भी बनाई गई है. इस बीच कुछ लोग दून और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में बासमती, खास तौर पर जैविक बासमती की खेती को जिंदा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसकी खेती शुरू करने के लिए दून के बाहरी इलाके में विकास नगर में कुछ एकड़ जमीन चिन्हित की गई है.

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