हमारा देश बहुतावादी और विविधताओं से भरा है. यह विविधता भाषा, संस्कृति, पहनावे में स्पष्ट रूप से दिखती है, लेकिन कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो इसी विविधता से जुड़ी हुई हैं, लेकिन हम उन्हें साफ तरीके से नहीं देख पाते. अलग-अलग क्षेत्रों में संस्कृति बदलने से खेती की परंपराएं और नाम भी बदले हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है बारानी खेती. यह पश्चिमी राजस्थान की पारंपरिक खेती है. इसमें किसान सालभर में एक ही फसल ली जाती है.
फसल काटने के बाद खेत को अगले साल के लिए खाली छोड़ दिया जाता है.
पश्चिमी राजस्थान के लोगों खासकर किसानों के लिए बारानी खेती एक परंपरा है. चूंकि जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर जिलों में पानी की बेहद कमी है. इसीलिए यहां के लोगों ने शुष्क मौसम में ही खेती करने के तरीके इजाद किए. इन्हीं तरीकों में से एक तरीका है बारानी खेती का. एक साल में एक ही फसल लेने के कारण इसका नाम बारानी पड़ा.
फसल काटने के बाद किसान खेतों में कोई दूसरी फसल नहीं उगाते. फिर अगले साल बारिश की सीजन में ही फसल बुवाई होती है. रेगिस्तानी जलवायु और शुष्क मौसम होने के कारण पश्चिमी राजस्थान के लोगों ने कम पानी में होने वाली फसलों को चुना. बारानी खेती में बाजरा मुख्य फसल है. इस खेती में गर्मी और सर्दी की फसलें अलग-अलग होती हैं.
अमिताभ बलोच किसान तक को बताते हैं, “राजस्थान के बाकी हिस्सों में बाजरा पैदा होता है, लेकिन जैसलमेर, बाड़मेर में बाजरी होती है. इसका दाना बाजरे से काफी छोटा होता है और स्वाद में मीठी होती है. जबकि बाजरे का दाना बड़ा और हल्का कड़वापन लिए होता है. इसीलिए इसकी सेल्फ लाइफ ज्यादा नहीं होती. जबकि बाजरी और इसके आटे की सेल्फ लाइफ बाजरे की तुलना में अधिक होती है. वहीं, बाजरी की तुलना में बाजरे को पानी की जरूरत ज्यादा होती है.”
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बलोच कहते हैं कि बारानी खेती में मुख्यत बाजरी की खेती ही की जाती है. क्योंकि पश्चिमी राजस्थान में बारिश काफी कम होती है इसीलिए यहां कम पानी की जरूरत वाली फसल की जाती है. इसमें बाजरी सबसे किफायती फसल होती है.
जैसलमेर के रहने वाले अमिताभ बलोच और पार्थ जगाणी बारानी खेती की फसल बाजरी से कई तरह के प्रोडक्ट भी बना रहे हैं. वे बताते हैं कि हम बारानी बेकर्स नाम से प्रोडक्ट बना रहे हैं. इनमें बाजरी के बिस्किट, नमकीन शामिल हैं. आने वाले समय में हम कुरकुरे, कई तरह की नमकीन और जोड़ने जा रहे हैं.
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बिस्किट जीरा, अजवाइन और तिल फ्लेवर के हैं. बलोच जोड़ते हैं कि हम अपने किसी भी प्रोडक्ट में चीनी का इस्तेमाल नहीं करते. सिर्फ गुड़ का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही सभी प्रोडक्ट पूरी तरह ऑर्गेनिक हैं. हालांकि मिलेट्स की स्थानीय बाजार में अभी उतनी पहुंच नहीं है. साथ ही लोगों में मिलेट्स खासकर बाजरे को लेकर कई गलत धारणाएं भी हैं. जिस तरह अभी मिलेट्स को बढ़ावा मिल रहा है, उम्मीद है जल्द ही मिलेट्स बाजारों में मिलने लगेंगे.
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