Nuakhai Juhar: ओडिशा में खुशी-खुशी मनाया गया नयी फसल कटने का त्योहार, जानें क्या है इसका महत्व

Nuakhai Juhar: ओडिशा में खुशी-खुशी मनाया गया नयी फसल कटने का त्योहार, जानें क्या है इसका महत्व

स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार देवी समलेश्वरी को नबन्ना अर्पित करने के बाद यहां पर स्थानीय लोग जुहार करते हैं. जुहार का मतलब मिलना-जुलना होता है. यह एक ऐसी बेहतरीन परंपरा है जिसमें आपसी भेदभाव मिटाकर लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और बुजुर्गों का सम्मान करते हैं.

नुआखाई का अनुष्ठान                                         फोटोः किसान तकनुआखाई का अनुष्ठान फोटोः किसान तक
पवन कुमार
  • Ranchi,
  • Sep 21, 2023,
  • Updated Sep 21, 2023, 3:27 PM IST

नुआखाई ओडिशा का पारंपरिक त्योहार है, यह सदियों पुराना त्योहार यहां कि कृषि और संस्कृति से जुड़ा हुआ है. खास कर पूरे पश्चिमी ओडिशा में इसे पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है. नुआखाई का अर्थ होना है नया खाना. यह कृषि से इसलिए जुड़ा हुआ है क्योंकि परंपरा के अनुसार इसी दिन खेत में उगाए गए नए धान के चावल खाए जाते हैं, जिसे नबन्ना कहा जाता है. चावल को बनाने के बाद सबसे पहले इसे संबलपुर में पूजनीय समलेश्वरी को अर्पित किया जाता है. समलेश्वरी माता को नबन्ना अर्पित करनेसे पहले औपचारिक रुप से उनका स्नान कराया जाता है. उसके बाद उन्हें नए कपड़े पहनाएं जाते हैं. इस दौरान पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है. किसानों के लिए यह त्योहार काफी मह्तव रखता है क्योंकि इसी दिन किसान खरीफ सीजन की नई फसल को पहली बार खाते है. 

स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार देवी समलेश्वरी को नबन्ना अर्पित करने के बाद यहां पर स्थानीय लोग जुहार करते हैं. जुहार का मतलब मिलना-जुलना होता है. यह एक ऐसी बेहतरीन परंपरा है जिसमें आपसी भेदभाव मिटाकर लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और बुजुर्गों का सम्मान करते हैं. इसलिए यह भी कहा जाता है कि नुआखाई सिर्फ एक त्योहार नहीं है बल्कि पश्चिमी ओडिशा में समुदायों को एकजुट रखने का एक बेहद मजबूत माध्यम है. यही कराण है कि गांव घर से दूर रहने वाले और काम  करने वाले सभी लोग इस त्योहार में शामिल होने के लिए अपने अपने गांव आते हैं. 

मौसम की पहली चावल का जश्न

गौरतलब है कि पश्चिमि ओडिशा आदिवासी बहुल इलाका है और यहां की अधिकांश आबादी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है. यही कारण है कि मौसम की पहली चावल की फसल का जश्न मनाने के लिए परिवार एक साथ आते हैं. यही वजह है कि यह त्योहार गहरा कृषि और सांसकृतिक महत्व रखता है. नुआखाई फसल ना सिर्फ नई फसल को उगाने और खाने की खुशी का त्योहार है बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक सबंधो को भी मजबूत करने की एक मजबूत परंपरा है. यह त्योहार गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है.  पश्चिमी ओडिशा में यह त्योहार 12वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है. 

किसान की महत्वपूर्ण भमिका का सबक देता है नुआखाई

यह एक ऐसा त्योहार है जिसकी तैयारियां दो सप्ताह पहले शुरू हो जाती है. इस त्योहार में नौ अनुष्ठान शामिल होते हैं. सबसे पहले दिन बेहराना मनाया जाता है इसके बाद सबसे आखिर में नुआखाई मनाया जाता फिर अंतिम दिन जुहार मनाया जाता है. नुआखाई त्योहार न केवल क्षेत्र की कृषि विरासत का जश्न मनाता है, बल्कि युवा पीढ़ी को खेती के महत्व और देश के विकास में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में मूल्यवान सबक भी देता है.


 
 

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