जिमीकंद, जिसे आम भाषा में सूरन कहा जाता है, एक ऐसी सब्जी है जिसे “शाकाहारी मटन” भी कहा जाता है. इसका स्वाद और पोषण इतना भरपूर होता है कि शहरों से लेकर गांवों तक, हर जगह यह सब्जी बहुत लोकप्रिय है. यह न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट है, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद है.
हिंदू धर्म में सूरन का विशेष महत्व है. दीपावली के दिन इसे खाने की परंपरा है, जिसे शुभ और लाभकारी माना जाता है. साथ ही सूरन में मौजूद विटामिन C, B-6, B-1, फोलिक एसिड, फाइबर, मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन और फॉस्फोरस शरीर को संपूर्ण पोषण देते हैं. यह पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है और शरीर को ऊर्जा देता है.
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, सूरन की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल है. यह फसल बंजर और कम उपजाऊ भूमि में भी आसानी से उगाई जा सकती है. ऐसे में सीमित संसाधनों वाले किसान भी इसे अपनाकर अच्छी आमदनी कर सकते हैं.
सूरन की बुवाई का सही समय मार्च से मई के बीच होता है, खासतौर पर उन इलाकों में जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो. जहां पानी की कमी है, वहां इसे जून के आखिरी सप्ताह से अगस्त तक लगाया जा सकता है. सूरन की खेती के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है.
सूरन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसके लिए ऐसे खेत का चयन करना चाहिए जहां पानी की निकासी की बेहतर व्यवस्था हो. यह वर्षा आधारित फसल भी मानी जाती है, यानी वर्षा पर भी इसकी उपज निर्भर होती है.
आज बाजार में खुजली रहित और उन्नत किस्मों की मांग है. कृषि अधिकारी शिव शंकर वर्मा के अनुसार, सूरन की टॉप 5 किस्में हैं:
इन किस्मों से प्रति एकड़ 20 से 25 टन तक उपज ली जा सकती है.
एक हेक्टेयर खेत में सूरन की खेती से 40 से 50 टन तक पैदावार हो सकती है. बाजार में इसकी कीमत 5 से 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक होती है. यानी कुल मिलाकर किसान को एक हेक्टेयर से 12 लाख रुपए तक की आय हो सकती है, जबकि लागत लगभग 3 लाख रुपए आती है.
सूरन न केवल एक स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट सब्जी है, बल्कि यह किसानों के लिए कमाल की आय का स्रोत भी बन सकता है. कम लागत, कम पानी और बंजर भूमि में भी खेती संभव- ये सब कारण इसे एक उत्तम फसल बनाते हैं. यदि आप किसान हैं और कोई कम जोखिम वाली लाभदायक खेती अपनाना चाहते हैं, तो सूरन की खेती एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है.