हाल ही में नेफेड (NAFED) के चेयरमैन की नाशिक यात्रा किसानों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई थी. उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया था कि प्याज की खरीदी अच्छी कीमत पर की जाएगी और भ्रष्टाचार को खत्म किया जाएगा. लेकिन अब यह वादा सिर्फ एक दिखावा साबित हो रहा है. महाराष्ट्र के प्याज किसानों को प्याज की उत्पादन लागत 18-20 रुपये प्रति किलो पड़ रही है. इसके बावजूद, उन्हें बाजार में मुश्किल से 10 रुपये प्रति किलो की दर से भुगतान मिल रहा है. इसका मतलब है कि किसानों को अपनी लागत का भी आधा पैसा नहीं मिल रहा, जिससे उन्हें भारी नुकसान हो रहा है.
नेफेड और उसकी एजेंसियों ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दिया जा रहा है. लेकिन किसानों का कहना है कि यह दावा पूरी तरह से झूठा और खोखला है. नेफेड की एजेंसियों ने बाजार में पहले से जमा किया गया प्याज सस्ते में बेचा और साथ ही खराब गुणवत्ता का प्याज भी सप्लाई किया.
चेयरमैन ने वादा किया था कि खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाएगी और सहकारी संस्थाओं को जिम्मेदारी दी जाएगी. लेकिन सच्चाई यह है कि ये संस्थाएं न तो सही तरीके से काम कर रही हैं और न ही किसानों के हित में फैसले ले रही हैं.
नेफेड की एजेंसियों पर यह भी आरोप है कि पिछले सीजन में उन्होंने जानबूझकर खराब प्याज खरीदा और उसे बाजार में बेचा, जिससे 63% रिकवरी की जा सके. यह न केवल किसानों के साथ धोखा है बल्कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसा भी है.
किसान संगठनों की ओर से नेफेड से यह मांग की जा रही है कि वह कुछ जरूरी जानकारियां सार्वजनिक करें, जैसे:
किसानों को संदेह है कि कुछ सहकारी संस्थाएं व्यापारियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं. ये संस्थाएं किसानों को कम कीमत देती हैं और व्यापारियों को फायदा पहुंचाती हैं. इससे किसानों की स्थिति और भी खराब हो गई है.
अब जबकि खरीदी बंद हो चुकी है, किसान चाहते हैं कि नेफेड के चेयरमैन फिर से नाशिक आएं और अपने स्टोरेज सेंटर्स पर प्याज की गुणवत्ता और मात्रा की जांच करें. साथ ही किसानों ने यह भी अनुरोध किया है कि नेफेड के स्टोरेज सेंटर में 5 किसानों की टीम को भी निगरानी के लिए शामिल किया जाए. इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि केवल अच्छी गुणवत्ता का प्याज ही सप्लाई हो.
किसानों की मेहनत और उनके अधिकारों का सम्मान जरूरी है. नेफेड जैसे संगठनों को पारदर्शिता और ईमानदारी से काम करना चाहिए. खोखले वादों से किसानों का भला नहीं होगा. अगर वाकई में किसानों की आय दोगुनी करनी है, तो सबसे पहले उन्हें उनकी उपज का सही मूल्य देना होगा.