Colostrum: नवजात पशुओं के लिए क्यों जरूरी है खीस, कैसे कर सकते हैं स्टोर, जानें तरीका

Colostrum: नवजात पशुओं के लिए क्यों जरूरी है खीस, कैसे कर सकते हैं स्टोर, जानें तरीका

खीस में खासतौर पर आईजीजी, आईजीएम और आईजीए प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) मौजूद होते हैं. सामान्य दूध की तुलना में खीस में चार से पांच गुना ज्यादा प्रोटीन और 10-15 गुना ज्यादा विटामिन-ए होता है. एनिमल एक्सपर्ट खीस को एंटीबॉडी बताते हैं.

नासि‍र हुसैन
  • NEW DELHI,
  • Mar 24, 2025,
  • Updated Mar 24, 2025, 11:43 AM IST

पशुओं के बच्चा पैदा होते ही बच्चे को पहला दूध जिसे खीस (कोलोस्ट्रम) कहा जाता है पिलाना बहुत जरूरी होता है. एनिमल एक्सपर्ट खीस को एंटीबॉडी बताते हैं. अगर बच्चे को सही तरीके से खीस पिलाया जाए तो वो आगे चलकर हेल्दी और तंदरुस्त बनता है. बीमारियां भी उसे जल्दी अपनी चपेट में नहीं लेती है. इसके चलते मृत्युदर भी कम हो जाती है. और वैसे भी पशुपालन और डेयरी कारोबार की सफलता में बछड़ा प्रबंधन को अहम कारक माना जाता है. बच्चा देने के बाद पशु का जो पहला दूध आता है वो गाढ़ा और पीला होता है. 

इसी को खीस कहा जाता है. ये सामान्य दूध से अलग होता है, क्योंकि दूध की तुलना में खीस में चार से पांच गुना ज्यादा प्रोटीन और 10-15 गुना ज्यादा विटामिन-ए होता है. एनिमल एक्सपर्ट के मुताबिक खीस में कई तरह के एंटीबॉडी वृद्धि कारकों और जरूरी पोषक तत्वों के साथ ट्रिप्सिन जैसे अवरोधक भी होते हैं. ये अवरोधक कारक खीस में मौजूद एंटीबॉडी को नवजात पशु की आंत में होने वाले पाचन को रोकते हैं.

नवजात बछड़ों के लिए ऐसे फायदेमंद है खीस 

एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि पशुओं में गर्भावस्था के दौरान अपरा (प्लेसेंटा) की मदद से भूर्ण में एंटीबॉडी का ट्रांसफर नहीं होता है. इस वजह से नवजात पशु का जन्म सीमित रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ होता है. लेकिन खीस नवजात पशु को निष्क्रिय प्रतिरक्षा तब तक प्रदान करता है जब तक की प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित नहीं हो जाती है. या फिर संक्रमण और टीकाकरण की प्रतिक्रिया में सक्रीय रूप से एंटीबाडी का उत्पादन करने में सक्षम नहीं हो जाती है. खीस में खासतौर पर आईजीजी, आईजीएम और आईजीए प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) मौजूद होते हैं. आईजीजी, खीस (कोलोस्ट्रम) की सबसे प्रमुख प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) ब्लड सर्कुलेशन के साथ-साथ शरीर के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले बीमारियों के कारणों की पहचान करने और उन्हें नष्ट का कार्य करती है. 

वहीं आईजीएम ब्लड में प्रवेश करने वाले जीवाणु की पहचान कर उन्हें खत्म कर देती है. जबकि आईजीए शरीर के विभिन्न अंगों जैसे आंत की आंतरिक सतह की झिल्ली से बंधन करती है और बीमारियों के कारण को बीमारी पैदा करने से रोकती है. इतना ही नहीं खीस से नवजात पशु में सेप्टीसिमिया, दस्त, सांस संबंधित बीमारी और संक्रामक रोगों के कारण होने वाली मौत की संभावना कम हो जाती है. खीस में पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, इसलिए ये ऊर्जा, प्रोटीन, खनिज लवणों का अच्छा स्रोत है.

खीस को ऐसे कर सकते हैं स्टोर

  • हमेशा अच्छी क्वालिटी का खीस ही स्टोर करना चाहिए.
  • खीस को प्लास्टिक के बर्तन में चार डिग्री सेल्सियस पर फ्रीज में एक सप्ताह तक स्टोर कर सकते हैं.
  • अगर डीप फ्रीज है तो खीस को करीब एक साल तक के लिए स्टोर किया जा सकता है. 
  • फ्रीज से खीस को निकालकर 50 डिग्री तापमान पर ही पिघलाएं. 
  • 50 डिग्री से ज्यादा तापमान होने पर खीस में मौजूद एंटीबाडी (इम्युनोग्लोबुलिन) खत्म हो जाते हैं.
  • अलग अलग पशुओं के खीस को एक साथ स्टोर नहीं करना चाहिए.

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