Future Milk: ये हैं बाजार के फ्यूचर मिल्क, देशभर के साइंटिस्ट कर रहे चर्चा, पढ़ें डिटेल

Future Milk: ये हैं बाजार के फ्यूचर मिल्क, देशभर के साइंटिस्ट कर रहे चर्चा, पढ़ें डिटेल

Future Milk Demand बदलते खानपान ने गाय-भैंस का दूध पीने वालों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है. किसी को भैंस का दूध पीने से परेशानी हो रही है तो कोई गाय का दूध पीकर परेशान है. लेकिन बाजार में ऐसे भी दूध हैं जो दवाई का काम करते हैं. लेकिन ज्यादातर लोग इन्हें लेकर जागरुक नहीं हैं. कई बीमारियों में इलाज के लिए पहचान बनाने वाला बकरी का दूध एक बड़ा उदाहरण है. 

Best Milk in diabetesBest Milk in diabetes
नासि‍र हुसैन
  • New Delhi,
  • Aug 13, 2025,
  • Updated Aug 13, 2025, 12:51 PM IST

देशभर के एनिमल साइंटिस्ट इन दिनों फ्यूचर मिल्क पर चर्चा कर रहे हैं. हाल ही में नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI), करनाल में इस विषय पर एक बड़ी बैठक हुई थी. बैठक में भेड़-बकरी, ऊंट और याक आदि से जुड़े देशभर के साइंटिस्ट इसमे शामिल हुए थे. उनका कहना है कि फ्यूचर मिल्क जहां लोगों को दूध पीने में राहत देगा और उन पशुओं को भी बचाएगा जिनकी संख्या तेजी से घट रही है. ऐसे पशुओं को दूध उत्पादन और खपत बढ़ाकर बचाने की कोशि‍श की जाएगी. राजस्थान में ऊंट इसका एक बड़ा उदाहरण है. फ्यूचर मिल्क में नॉन बोवाइन पशु शामिल हैं. ये वो हैं जो गाय-भैंस की कैटेगिरी में नहीं आते हैं. 

फ्यूचर मिल्क की क्यों हो रही है चर्चा? 

  • नॉन बोवाइन के मुकाबले गाय-भैंस के दूध में कम मेडिशनल वैल्यू होती है. 
  • नॉन बोवाइन के मुकाबले गाय-भैंस पालन में लागत ज्यादा आती है. 
  • बकरी, भेड़, ऊंटनी, गधी और याक के दूध में मेडिशनल वैल्यू ज्यादा होती है. 
  • भारत में नॉन बोवाइन की संख्या बढ़ रही है इसलिए दूध इस्तेमाल करने पर जोर है. 
  • नॉन बोवाइन का दूध और दूध से बने प्रोडक्ट इंसानी खानपान में जरूरी है. 
  • गधी के दूध को फूड में शामिल करने के लिए NDRI ने FSSAI को लैटर भी लिखा है.   
  • बेशक संख्या कम है, लेकिन फ्यूचर मिल्क में याक भी शामिल है. 
  • जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में याक पालन किया जा रहा है. 
  • याक के दूध से बने पनीर की देश से ज्यादा विदेशों में डिमांड है. 
  • आज राजस्थान से ज्यादा भेड़ों की संख्या दक्षि‍ण भारत के राज्यों में है. 
  • जम्मू-कश्मीर में भी भेड़ पालन बढ़ा है. 
  • भेड़ और बकरी दो ऐसे पशु हैं जो दोहरा फायदा कराते हैं. 
  • इनके मीट की डिमांड भी बहुत है. जबकि भेड़ तो ऊन भी देती है. 
  • इनके मीट की डिमांड भी बहुत है. जबकि भेड़ तो ऊन भी देती है. 
  • देश के कुछ प्राचीन पशुओं को बचाने की कोशि‍श की जा रही है. 
  • ऐसे पशुओं को बचाने के लिए एक मात्र रास्ता दूध है. 
  • दूध की डिमांड बढ़ जाए तो पशुपालक उन्हें पालने में भी दिलचस्पी दिखाएंगे. 
     

फ्यूचर मिल्क के बारे में क्या कहते हैं एक्सपर्ट? 

जरूरत है फ्यूचर मिल्क पर और रिसर्च हो

NDRI के डायरेक्टर डॉ. धीर सिंह का कहना है कि आज मानव स्वास्थ्य के लिए लिपिड, लैक्टोज, इम्युनोग्लोबुलिन, विभिन्न पेप्टाइड्स, न्यूक्लियोटाइड्स, ओलिगोसेकेराइड और मेटाबोलाइट्स आज की भागम भाग वाली जिंदगी और खानपान में ये बहुत फायदेमंद साबित हो सकते हैं. और इनकीद पूर्ति नॉन बोवाइन पशुओं के दूध से हो सकती है. बस जरूरत इतनी है कि हम दूध में इनकी तलाश करें. 

एक नहीं कई बीमारियों में फायदेमंद है ऊंटनी का दूध 

राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान (NIANP), बैंगलोर के डायरेक्टर डॉ. साहु का कहना है कि ऊंटनी के दूध के गुण आंत को तो हेल्दी बनाने के साथ उससे जुड़ी बीमारियों को भी दूर करते हैं. ऑटिज्म और डॉयबिटिज में फायदेमंद है. संक्रामण वाली बीमारियों के खिलाफ इम्यूनिटी मजबूत होती है. इम्यूनिटी बढ़ाने में लैक्टोफेरिन, इम्युनोग्लोबुलिन, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-वायरल गुण का अहम रोल है. 

बाजार में बढ़ रही है नॉन बोवाइन मिल्क की डिमांड 

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), मथुरा के डॉयरेक्टर डॉ. मनीष चेटली का कहना है कि बकरी के दूध को "दवाई" माना जाता है. बकरी का दूध इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गतिविधि, मलेरिया और डेंगू के दौरान पैरासाइटिमिया इंडेक्स को कम करता है. बकरी के दूध में मौजूद प्रोटीन हाई ब्लड प्रेशर और हॉर्ट की बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं. बकरी का दूध खासतौर से बच्चों के लिए जरूरी अमीनो एसिड को एक्टिव बनाता है. इसके दूध में प्रोटीन ज्यादा होता है. जबकि लैक्टोज की मात्रा गाय के दूध के मुकाबले 30-40 फीसद तक कम होती है. आज नॉन बोवाइन मिल्क गाय के मुकाबले 10.4 फीसद की दर से बढ़ रहा है, जबकि गाय का दूध 3.84 फीसद की दर से बढ़ रहा है.

फ्यूचर मिल्क पर है बड़ी कंपनियों की नजर 

फ्यूचर मिल्क के बारे में इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और अमूल के पूर्व एमडी डॉ. आरएस सोढ़ी का कहना है कि डेयरी के कई बड़े प्लेयर की बकरी के दूध पर नजर है. बाजार भी अच्छा है. डिमांड भी है. बड़े बकरी फार्म की संख्या़ अभी कम है. लेकिन इस तरफ कोशिश शुरू हो गई हैं. कई लोगों ने बड़े बकरी फार्म की शुरुआत कर दी है. गुजरात में ही दो से तीन बड़े बकरी फार्म पर काम चल रहा है. अगर बड़े बकरी फार्म खुलने लगे तो फिर बड़ी कंपनियां भी आ जाएंगी. 

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