Blue Tongue Disease: भेड़-बकरियों को अभी हुई तो सर्दियों तक परेशान करेगी ये बड़ी बीमारी, पढ़ें डिटेल 

Blue Tongue Disease: भेड़-बकरियों को अभी हुई तो सर्दियों तक परेशान करेगी ये बड़ी बीमारी, पढ़ें डिटेल 

Blue Tongue Disease in Goat नीली जीभ बीमारी फैलाने वाला मच्छर एक साल या उससे कम उम्र वाली भेड़-बकरियों पर अटैक करता है. टीकाकरण से नीली जीभ बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है. इसके लिए तीन महीने की उम्र पर और साल में एक बार भेड़-बकरी का टीकाकरण जरूर कराएं. वहीं शेड में मच्छर-मक्खी भगाने वाली दवाई का इस्तेमाल करके फैलने से रोका जा सकता है. 

नासि‍र हुसैन
  • New Delhi,
  • Aug 13, 2025,
  • Updated Aug 13, 2025, 9:59 AM IST

Blue Tongue Disease in Goat बरसात से लेकर सर्दियों तक होने वाली नीली जीभ (ब्ल्यू टंग) बेशक कम होती है, लेकिन लम्बे वक्त तक परेशान करती है. गोट एक्सपर्ट डॉ. इब्ने अली ने किसान तक को बताया कि अगर बरसात में ये बीमारी हो जाए तो फिर सर्दियों तक परेशान करती है. इस बीमारी का असर भेड़-बकरी के दूध समेत प्रजनन पर भी पड़ता है. बकरों की ग्रोथ भी रुक जाती है. नीली जीभ बीमारी संक्रमण के चलते होती है. इस बीमारी के फैलने की बड़ी वजह मच्छरों की एक खास प्रजाति है. इसलिए पशुपालकों को चाहिए कि बरसात और सर्दियों के दिनों में भेड़-बकरियों का खास ख्याल रखें.  

नीली जीभ बीमारी की पहचान के लक्षण क्या हैं?

  • बुखार और निमोनिया का होना. 
  • उदास रहना और खरा ना खाना. 
  • नाक और मुंह की श्लेष्मा झिल्ली का लाल होना और सूजन आना.
  • नाक और मुंह से लगातार लार टपकना. 
  • होठों, मसूड़ों, मुख म्यूकोसा और जीभ पर सूजन आना. 
  • भेड़-बकरी की जीभ का नीला पड़ना.
  • गर्दन का एक ओर झुकना (टेढ़ी गर्दन).
  • पैरों में लंगड़ापन आने के चलते ठीक से ना चलना. 
  •  बॉडी पॉर्टस की कोरोनरी बैंड का लाल होना और सूजन आना. 
  • कंजंक्टिवल श्लेष्मा झिल्ली पर जमाव और पलकों का उलझना.
  • बदबूदार दस्त का करना. 
  • सांस लेने में परेशानी होना और खर्राटे लेना. 

नीली जीभ बीमारी हो तो इलाज कैसे करें?  

  • बीमार पशुओं को अलग रखा जाना चाहिए.
  • बीमारी से प्रभावित पशुओं को सूरज की रोशनी से दूर रखें. 
  • पीडि़त पशु को पूरा आराम करने दें. 
  • पीडि़त पशुओं को चावल, रागी और कंबू से बना दलिया खिलाना चाहिए.
  • छालों वाली जगह पर ग्लिसरीन या एनिमल फैट लगाएं.
  • घरेलू उपचार के साथ पास के पशु चिकित्सक से सलाह लेते रहें. 
  • पीडि़त पशुओं को चराने के लिए ना ले जाएं. 
  • एक लीटर पानी में घोले गए पोटेशियम परमैंगनेट से दिन में दो-तीन बार पशुओं का मुंह धोएं.
  • पीडि़त पशु के टीकाकरण के लिए पशु चिकित्सक से सलाह लें. 

नीली जीभ बीमारी किस वजह से होती है?

  • भेड़-बकरी के मेमनों को जब सही मात्रा में कोलोस्ट्रम पीने को नहीं मिलता है. 
  • खासतौर पर बरसात और अक्टूबर, नवम्बर और दिसम्बर के महीनों में शेड में गंदगी होने से. 
  • ये आर्थ्रोपोडा जनित ऑर्बी वायरस के कारण होता है, जो मच्छर की खास प्रजाति है. 
  • क्यूलिकोइड्स वंश का काटने वाला कीड़ा पशु का रक्त चूसते समय वायरस फैलता है. 
  • मच्छर और अन्य बाह्य परजीवी जैसे शीप केड, मेलोफैगस ओविनस भी इस बीमारी को फैलाते हैं.
  • गर्मियों का खत्म होने वाला वक्त और सर्दी की शुरुआत का वक्त इन्हें पनपने का मौका देता है.  
  • वीर्य और प्लेसेंटा के रास्ते ये तेजी से फैलता है इसलिए सफाई का खास ख्याल रखें. 

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