आम इंसान हो या खास, सभी की दिन की शुरुआत दूध से ही होती है. फिर वो चाय की शक्ल में हो या फिर दूध पीने से. कई धार्मिक आयोजनों में भी दूध और दूध से बने दही-घी का बड़ा महत्व है. लेकिन आजकल दूध पर सवाल होने लगे हैं. सबसे बड़ा सवाल होता है दूध के प्योर होने को लेकर. खासतौर से गर्मियों में ये सवाल उठता है कि जब इस मौसम में गाय-भैंस दूध देना कम कर देती हैं तो फिर डिमांड कैसे पूरी होती है.
वो भी तब जब गर्मियों में दही, छाछ और आइसक्रीम की डिमांड बढ़ जाती है. डेयरी एक्सपर्ट की मानें तो दूध में अब सिर्फ पानी की ही मिलावट नहीं होती है, पूरा दूध ही सिंथेटिक तरीके से बनाकर बाजार में बेचा जा रहा है. हैरान करने वाली बात ये है कि दूध तैयार करने में ऐसी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है जो शरीर के लिए खतरनाक हैं.
दूध की बूंद को चिकनी सतह पर गिराएं.
अगर बूंद धीरे बहे और सफेद निशान छोड़े तो शुद्ध दूध है.
मिलावटी दूध की बूंद बिना निशान छोड़े तेजी से बह जाएगी.
सिंथेटिक दूध स्वाद में कड़वा लगता है.
उंगलियों के बीच रगड़ने पर साबुन जैसा चिकनापन लगता है.
गर्म करने पर पीला पड़ जाता है.
डेयरी एक्सपर्ट की मानें तो मिलावट खोर सिंथेटिक दूध को तैयार करने में टाइटेनियम डाई ऑक्साइड, बी वैक्स (मधुमक्खी के छत्ते से निकलने वाला मोम) की मिलावट करते हैं. टाइटेनियम डाई ऑक्साइड ना खाने योग्यन सफेद रंग का पाउडर होता है. इसे पानी में मिलाने पर उसका रंग दूध जैसा दिखने लगता है. फिर दूध में मिठास लाने के लिए वी बैक्स मिलाया जाता है. दूध को तैयार करने के लिए मिलावटखोरों ने लैब भी बना ली हैं. केमिकल से तैयार दूध को इलेक्ट्रिक मथनी से फेटा जाता है, जिससे की सभी आइटम अच्छी तरह से मिल जाएं.
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