भारत पशुपाल और दूध उत्पादन में तेजी से आगे बढ़ रहा है. एक ओर जहां देश में गाय-भैंस पालने का काफी चलन है. वहीं भेड़-बकरी पालन से भी बड़ी संख्या में लोग जीवनयापन कर रहे हैं. भेड़ पालन भी कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इससे दूध, मांस और ऊन जैसे जरूरी उत्पाद मिलते हैं. लेकिन, भेड़ की बीमारियां कई बार पशुपालकों की चिंता बढ़ाती हैं, क्योंकि सही जानकारी न होने के कारण बीमारियों कई बार ठीक नहीं हो पाती हैं.
भेड़ में भी एक ऐसी ही बीमारी पशुपालक की चिंता बढ़ाती है. इस बीमारी का नाम है खुरपका. ऐसे में आज आईसीएआर से जुड़े वैज्ञानिकों- ब्रूस बरेटो, रिंकु शर्मा, गोरख मल, अजेयता रियालच और राजवीर सिंह पवैया के अनुसार इस बीमारी की रोकथाम और बचाव के तरीके जानिए. इन्हें अपनाकर पशुपालक अपने पशुओं की बेहतर देखभाल कर सकते हैं.
खुरपका, डाइचेलोबैक्टर नोडोसस और फ्यूसोबैक्टीरियम नेक्रोफोरम के कारण होने वाला एक संक्रामक जीवाणु रोग है. यह मुख्य रूप से भेड़ों को प्रभावित करता है. यह रोग भेड़ों के लिए दर्द, लंगड़ापन और कम गतिशीलता का कारण बनता है. यह रोग भेड़ों की चरने, प्रजनन, ऊन और मांस उत्पादन में योगदान करने की क्षमता पर भी असर डालता है.
इस बीमारी के चलते पशुपालकों को उपचार लागत में बढ़ोतरी और उत्पादकता में कमी के कारण गंभीर आर्थिक असर का सामना करना पड़ता है. यह रोग भारत के कई क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैला हुआ है, जिनमें जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और दक्षिण भारत शामिल हैं. रोकथाम के उपायों में संगरोध, खुर काटने वाले उपकरणों का परिशोधन और प्रभावित भेड़ों को अलग करना शामिल है.
भेड़ के पैर धोना, एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारक दवाइयों की मदद से इसका इलाज किया जाता है. हालांकि, बचाव ज्यादा जरूरी है. वर्तमान में इस रोग को लेकर शोध चल रहा है. शोध का उद्देश्य रोग के बेहतर नियंत्रण के लिए एक प्रभावी टीका तैयार करना है, ताकि समय रहते इसकी रोकथाम की जा सके.