Fodder Silage Use पशुओं को हरा चारा ताजा खिलाया जा रहा है या फिर पहले से बना हुआ साइलेज, दोनों ही तरह से चारे में जरूरत से ज्यादा नमी का होना खतरनाक माना जाता है. क्योंकि चारे में मौजूद मामूली सी नमी के चलते पशुओं को बड़ी बीमारी होने का खतरा रहता है. नमी के चलते पशुओं के शरीर में माइकोटॉक्सिन नाम की बीमारी को पनपने लगती है. खासतौर पर मॉनसून के मौसम में बरसात में और बाढ़ के हालात में चारे में नमी की मात्रा तेजी से बढ़ने लगती है. ऐसे में अगर पशुपालक जरा सी भी लापरवाही करते हैं तो ज्यादा नमी वाला ये चारा उनके पशुओं को बीमार कर सकता है.
फोडर एक्सपर्ट का कहना है कि पशुओं का हरा-सूखा चारा हो या मिनरल मिक्चर सभी को बारिश और पानी से बचाते हुए अच्छी तरह से सुरक्षित रखना चाहिए. चारे में फफूंद रोकने के लिए चारा को एंटी-फफूंद से उपचारित करना चाहिए. चारा गोदाम में पानी का रिसाव नहीं होना चाहिए. बरसात के मौसम में, चारा ब्लॉक पशुओं के लिए बेहतर विकल्प है.
गडवासु के फीड एंड फोडर एक्सपर्ट डॉ. आरएस ग्रेवाल ने जानकारी देने हुए बताया कि पशुओं को खिलाने के लिए साइलेज में क्वालिटी का होना बहुत जरूरी है. अगर साइलेज में एक सीमा से ज्यादा फंगस या एफ्लाटॉक्सिन पाया जाता है तो ऐसे साइलेज का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए. डॉ. ग्रेवाल ने साइलेज निर्माण के दौरान इसकी गुणवत्ता में सुधार के लिए एडिटिव्स के इस्तेमाल करने के फायदों पर भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि इसका उपयोग भैंस, गाय, बकरी और भेड़ आदि सहित सभी जुगाली करने वालों के लिए किया जा सकता है. वहीं एक अन्य एक्सपर्ट का कहना है कि फफूंद वाला चारा पशुओं में प्रजनन संबंधी परेशानी भी बढ़ा देता है.
साइलेज एक्सपर्ट फिरोज खान, संस्थापक कॉर्नेक्स्ट ने किसान तक को बताया कि साइलेज बाढ़ और बरसात के दिनों में बहुत काम आता है. साइलेज के ही चलते पूरे साल हर मौसम में हरा चारा उपल्बध रहता है. ऐसा भी नहीं है कि साइलेज बनाने से हरे चारे की पौष्टिकता कम हो जाती है. हरा चारा हो या फिर बॉयोमास किसी से भी साइलेज तैयार करने पर उसकी पौष्टिकता में कोई कमी नहीं आती है. फिर चाहें चारे के हिसाब से उसे एक महीने रखा जाए या फिर 12 महीने. साइलेज की मदद से हम पशुओं की फीड-फोडर से जुड़ी बहुत सारी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. लेकिन ये भी जरूरी है कि वक्त-वक्त पर हम साइलेज में फफूंद की जांच करते रहें.
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