Lumpy Disease Alert: पश्चिमी यूपी में फिर लम्पी का डर, पशुचिकित्सा अधिकारी ने कहा- पशुओं का खास ध्यान रखें

Lumpy Disease Alert: पश्चिमी यूपी में फिर लम्पी का डर, पशुचिकित्सा अधिकारी ने कहा- पशुओं का खास ध्यान रखें

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लम्पी बीमारी का खतरा एक बार फिर बढ़ गया है. पशुचिकित्सा अधिकारी ने चेतावनी जारी करते हुए सभी पशुपालकों को सतर्क रहने और अपने जानवरों का विशेष ध्यान रखने के लिए कहा है. उन्होंने पशुओं को इस संक्रमण से बचाने के लिए साफ-सफाई रखने और बीमारी के किसी भी लक्षण पर तुरंत ध्यान देने की सलाह दी है. यह सावधानी पशुओं को सुरक्षित रखने और बीमारी को बड़े पैमाने पर फैलने से रोकने के लिए बहुत ज़रूरी है.

जेपी स‍िंह
  • नई दिल्ली,
  • Sep 14, 2025,
  • Updated Sep 14, 2025, 2:32 PM IST

पशुओं में लगने वाली खतरनाक बीमारी लम्पी स्किन डिजीज अब पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपने पैर पसारने के बाद तेजी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ रही है. उप मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी, डॉ. हरिवंश सिंह गाजियाबाद ने पशुपालकों के लिए अलर्ट करते हुए कहा कि यह न केवल उत्तर प्रदेश के लिए, बल्कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य पड़ोसी राज्यों के लिए भी एक बड़ा खतरा है. पशुपालकों को इस समय बेहद सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि यह बीमारी पशुओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ उनकी आजीविका पर भी सीधा हमला करती है. भारत में लम्पी चर्म रोग का सबसे भयानक और विनाशकारी प्रकोप साल 2022 में देखा गया था, जिसने देश के पशुपालकों को बहुत भारी नुकसान पहुंचाया. सबसे पहले यह बीमारी 1929 में अफ्रीकन देश जाम्बिया में जानवरों में पाई गई थी. भारत में इसका पहला मामला 2019 में उड़ीसा में सामने आया था.

कैसे फैलता है लंपी रोग?

लम्पी एक छुआछूत की बीमारी है जो एक पशु से दूसरे में बहुत तेज़ी से फैलती है. यह बीमारी मुख्य रूप से मच्छर, मक्खी और किलनी जैसे खून चूसने वाले कीड़ों के काटने से फैलती है. जब कोई बीमार पशु के संपर्क में स्वस्थ पशु आता है या उसकी लार से दूषित चारा-पानी खा-पी लेता है, तो वह भी संक्रमित हो जाता है. इस बीमारी की शुरुआत में पशु को तेज बुखार आता है.

  • संक्रमण की शुरुआत में पशु को 104 से 106 डिग्री फारेनहाइट तक तेज बुखार आता है.
  • पशु सुस्त हो जाता है और खाना-पीना कम कर देता है.
  • बुखार के 2-3 दिन बाद, पशु के शरीर पर, खासकर सिर, गर्दन, पीठ और थनों के आसपास, 0.5 से 5 सेंटीमीटर आकार की सख्त और गोल गांठें उभरने लगती हैं.
  • पशु की आंख और नाक से पानी बहता है और मुंह से ज्यादा लार टपकती है. 
  • कुछ समय बाद ये गांठें फूटकर गहरे घाव बन जाती हैं, जिनमें कीड़े पड़ने का खतरा रहता है. 
  • कुछ पशुओं के पैरों में सूजन आ जाती है और दूध देने वाले जानवरों का दूध उत्पादन अचानक बहुत कम हो जाता है.

बचाव ही सबसे कारगर उपाय

डॉ सिंह के अनुसार, चूंकि लम्पी बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं है, इसलिए बचाव के उपायों पर ध्यान देना ही सबसे बड़ी समझदारी है. इसका सबसे प्रभावी तरीका टीकाकरण है, जिसके लिए पशुपालकों को अपने नजदीकी सरकारी पशु चिकित्सालय से संपर्क करना चाहिए. इसके साथ ही, पशुशाला और आसपास साफ-सफाई रखना, पानी जमा न होने देना और कीटनाशकों का छिड़काव करके मक्खी-मच्छरों को पनपने से रोकना बेहद ज़रूरी है. किसी भी पशु में बीमारी के लक्षण दिखते ही उसे तुरंत स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए और बाहर से लाए गए नए पशुओं को भी कम से कम 15-20 दिनों तक अलग रखकर उनकी सेहत पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए. डॉ हरिबंश सिंह ने बताया कि पशु संक्रमित हो जाता है तो घबराने के बजाय सूझबूझ से काम लेना जरूरी है. सबसे पहले तुरंत किसी योग्य सरकारी पशु चिकित्सक से संपर्क करें, जो लक्षणों के आधार पर बुखार, दर्द और किसी भी अन्य संक्रमण को रोकने के लिए सही दवाइयां दे सकें. 

घावों की देखभाल बेहद जरूरी 

पशु की अच्छी देखभाल के लिए इलाज के साथ-साथ उसके घावों की सफाई और खाने-पीने का खास ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है. पशु के घावों को इन्फेक्शन से बचाने के लिए, नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर ठंडा कर लें और उस पानी से घावों को धीरे-धीरे साफ करें. घाव सूखने पर उन पर एलोवेरा जेल या डॉक्टर की दी हुई कीड़े मारने वाली एंटीसेप्टिक क्रीम लगाएं. पशु को बीमारी से लड़ने की ताकत देने के लिए उसे पौष्टिक और आसानी से पचने वाला खाना दें. 

देसी नुस्खा से पशु की ताकत बढ़ाएं

इसके साथ ही, आप एक देसी मिश्रण भी तैयार कर सकते हैं, जिसके लिए 10 पान के पत्ते, 10-10 ग्राम काली मिर्च, नमक व हल्दी, 10 तुलसी के पत्ते, 10 तेजपत्ते, और एक-एक मुट्ठी नीम की पत्ती व बेलपत्र को पीसकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट में थोड़ा गुड़ मिलाकर पशु को दिन में तीन बार खिलाएं. यह उपाय बीमार पशु को जल्दी ठीक होने में मदद करता है और स्वस्थ पशुओं की भी बीमारी से रक्षा करता है. डॉ. हरिवंश सिंह ने सभी पशुपालकों से अपील की है कि वे सतर्क रहें, जानकारी को एक-दूसरे से साझा करें और किसी भी लक्षण के दिखने पर लापरवाही न बरतें. सही समय पर सही कदम उठाकर ही इस महामारी से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है.

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