देश में हर रोज पशुपालकों से 16 करोड़ टन गोबर खरीदा जाएगा. इस गोबर को पशुपालकों को नकद भुगतान भी किया जाएगा. हाल ही में नई दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड (NDDB) ने 15 राज्यों की 26 मिल्क कोऑपरेटिव के साथ एक बड़ा समझौता किया है. समझौते का मकसद गोबर को धन बनाना है. एनडीडीबी की इस पहल से जहां पशुपालकों की इनकम बढ़ाने में मदद मिलेगी वहीं पर्यावरण में भी सुधार आएगा. इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्री एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह भी मिल्क कोऑपरेटिव के साथ ये बात साझा कर चुके हैं कि आज पशुपालकों से ज्यादा से ज्यादा गोबर खरीदने की जरूरत है.
एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक इस गोबर का इस्तेमाल बायो गैस के लिए किया जाएगा. इसके लिए मिल्क कोऑपरेटिव को तकनीकी, वित्तीय और कार्यान्वयन सहायता दी जाएगी. इसी के चलते एनडीडीबी और नाबार्ड के बीच भी समझौता हुआ है. डेयरी एक्सपर्ट का कहना है कि आज जब हम श्वेत क्रांति 2.0 की ओर बढ़ रहे हैं. ये डेयरी सेक्टर ही है जो किसानों और पशुपालकों की इनकम को बढ़ाने का काम करेगा और रोजगार भी देगा.
बायो गैस प्लांट पर समझौता करते हुए बताया गया कि इस एक योजना से तीन बड़े फायदे होंगे. छोटे पशुपालक से लेकर बड़े डेयरी प्लांट तक को इससे फायदा होगा. पशुपालकों से गोबर खरीदकर कुशल खाद प्रबंधन बन जाएगा, ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा जिससे पर्यावरण को सुधारने का मौका भी मिलेगा. नेशनल वर्कशॉप के मौके पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने और छोटे डेयरी किसानों के लिए वित्तीय व्यवहार तय करने के लिए रणनीतियों पर चर्चा हुई. इस मौके पर डेयरी क्षेत्र में स्थिरता के उद्देश्य से व्यापक दिशानिर्देश जारी किए गए. साथ ही एनडीडीबी के लघु पैमाने पर बायोगैस, बड़े पैमाने पर बायोगैस, संपीड़ित बायोगैस परियोजनाओं और स्थायी डेयरी के वित्तपोषण के लिए एनडीडीबी सस्टेन प्लस परियोजना के तहत वित्तपोषण पहल की शुरुआत की गई.
एनडीडीबी ने एक हजार करोड़ रुपये के आवंटन के साथ एक नई वित्तपोषण योजना शुरू की है. इसका मकसद छोटे बायोगैस, बड़े पैमाने के बायोगैस संयंत्रों और संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी) परियोजनाओं के लिए ऋण सहायता के माध्यम से वित्तीय सहायता दी जाएगी. जिससे अगले 10 साल में विभिन्न खाद प्रबंधन मॉडलों को बढ़ाने में मदद मिलेगी.
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