आलू की खुदाई कहीं चल रही है तो कहीं अब पूरी होने वाली है. आलू खुदाई के दौरान कई बार कुछ ऐसी खबरें आती हैं जो बहुत परेशानी करने वाली होती हैं. कई बार ऐसा होता है कि सही दाम न मिलने की वजह से या फिर पैदावार ज्यादा होने की वजह से किसानों को अपना आलू फेंकना पड़ता है. हर साल कहीं न कहीं ऐसा जरूर होता है कि किसान कोल्ड स्टोरेज में रखा अपना आलू नहीं उठा पाते हैं. क्योंकि उस वक्त आलू के दाम इतने गिर चुके होते हैं कि कोल्ड स्टोरेज का भाड़ा ज्यादा हो जाता है. लेकिन अब न तो पैदावार ज्यादा होने पर या फिर दाम कम होने पर भी आलू फेंकना नहीं पड़ेगा.
और ये सब मुमकिन होगा केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा की एक खास रिसर्च के चलते. क्योंकि अब इस रिसर्च के बाद से बकरियों के साथ ही दूसरे बड़े पशुओं के लिए आलू का स्वादिष्टा चारा बनाया जा सकता है. इसमे पराली को भी शामिल किया जाएगा. वो भी कम लागत पर. सीआईआरजी के डायरेक्टर मनीष कुमार चेटली की मानें तो संस्थान में बकरे और बकरियों के चारे को लेकर लगातार काम चल रहा है.
सीआईआरजी के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. रविन्द्र कुमार की मानें तो पराली और आलू को बराबर मात्रा में लेकर साइलेज बैग में भर दें. 60 दिनों के लिए इस बैग को उठाकर कहीं अलग रख दें. इसके बाद पराली और आलू में एन-एरोबिक कंडीशन के चलते फॉर्मेंटेशन होगा. जिसके बाद यह बकरी ही नहीं गाय-भैंस के लिए भी खाने लायक हो जाएगा. सबसे बड़ी बात यह है कि इसे बकरियों को खिलाने के लिए एक लम्बे वक्त तक चलाया जा सकता है. हमारे संस्थान में हुई रिसर्च के तहत इसे जब बकरियों को खिलाया गया तो सामने आया कि इस चारे को खाने के बाद बकरियों का वजन 40 ग्राम रोजाना के हिसाब से बढ़ता है.
रविन्द्र कुमार ने बात करते हुए साइलेज की लागत के बारे में बताया कि 50 किलो साइलेज तैयार करने में ज्यादा से ज्यादा 450 रुपये से लेकर 500 रुपये तक का खर्च आता है. हालांकि बहुत सारी जगहों पर तो पराली किसान फ्री में भी दे देते हैं. जबकि साइलेज बनाने के लिए आलू हमे वो चाहिए जो बाजार में बिकने लायक नहीं होता है या फिर इस तरह का होता है कि एक से दो रुपये किलो तक भी आसानी से मिल जाता है.
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