Green Fodder for Winter पशु दुधारू हो तो फिर उसके लिए बैलेंस डाइट जरूरी हो जाती है. एनिमल एक्सपर्ट केन्द्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान (सीआईआरबी), हिसार के रिटायर्ड प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. सज्जन सिंह ने किसान तक को बताया कि गाय-भैंस दूध देने वाली हो या बच्चा, या फिर उसकी ग्रोथ का टाइम हो, उन्हें दिनभर की खुराक में कर्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और दूसरे मिनरल्स की जरूरत होती है. क्योंकि पशुओं को अगर बैलेंस डाइट खिलाई जाती है तो उससे पशु का उत्पादन बढ़ता है. इस डाइट में हरे चारे का भी अहम रोल है. खासतौर पर दूध देने और मीट के लिए पाले जाने वाले पशुओं के लिए बैलेंस डाइट बहुत जरूरी है.
ऐसा नहीं है कि पशु हैं तो कुछ भी खाने को दे दो. जिस तरह से इंसानों की डाइट में कर्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और दूसरे मिनरल्स की जरूरत होती है, ठीक उसी तरह से ग्रोथ और उत्पादन के लिए पशुओं को भी उतनी ही जरूरत होती है. एनिमल न्यूट्रीशन एक्सपर्ट की मानें तो पशु को अगर बैलेंस डाइट मिलती है तो उसके दूध की क्वालिटी सुधरने के साथ ही उत्पादन भी बढ़ता है. लेकिन कई बार देखा गया है कि पशुपालक मौसम के हिसाब से होने वाले चारे को ही ज्यादा खिलाते हैं.
दूध देने वाले और मीट के लिए पाले जाने वाले पशुओं को दिनभर की खुराक दिए जाने के दौरान इस बात की जानकारी होना जरूरी है कि हम उसे जो चारा खिला रहे है उसमे जरूरी पोषक तत्व हैं या नहीं. या फिर कौन-कौनसा चारा खिलाने से उन पोषक तत्वों की कमी पूरी होगी. ऐसा करने से ही उत्पादन बढ़ने के साथ ही दूध-मीट की लागत कम होती है.
चारा एक्सपर्ट डॉ. वाईके वर्मा ने किसान तक को बताया कि हरे चारे की एक फसल कम से कम ऐसी होनी चाहिए जो एक बार लगाने के बाद कई साल तक उपज दे. जैसे नेपियर घास को बहुवर्षिय चारा कहा जाता है. बहुवर्षिय चारा वो होता है जो एक बार लगाने के बाद लम्बे वक्त तक उपज देता है. नेपियर घास भी उसी में से एक है. एक बार नेपियर घास लगाने के बाद करीब पांच साल तक हरा चारा लिया जा सकता है. लेकिन ऐसा भी नहीं किया जा सकता है कि पशुओं को सिर्फ नेपियर घास ही खिलाते रहें.
अगर आप पशु को नेपियर घास दे रहे हैं तो उसके साथ उसे दलहनी चारा भी खिलाएं. इसके लिए सितम्बर में नेपियर घास के साथ लोबिया लगाया जा सकता है. हर मौसम में आप नेपियर के साथ सीजन के हिसाब से दूसरा हरा चारा लगा सकते हैं. ऐसा करने से पशु को नेपियर घास से कर्बोहाइड्रेड है तो लोबिया से प्रोटीन और दूसरे मिनरल्स मिलते हैं. और इसी तरह की खुराक से भेड़-बकरी में मीट की ग्रोथ होती है तो गाय-भैंस में दूध का उत्पादन बढ़ता है.
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