Lamb Disease भेड़ के बच्चों को इन दो बीमारियों से बचाया तो हर साल होगा मोटा मुनाफा, पढ़ें डिटेल 

Lamb Disease भेड़ के बच्चों को इन दो बीमारियों से बचाया तो हर साल होगा मोटा मुनाफा, पढ़ें डिटेल 

Sheep Lamb Disease हगलू और चिकड़ बीमारी बीमारी का अटैक ज्यादातर मेमनों पर देखा जाता है. या ये कह लें कि मेमनों की इम्यूनिटी उतनी ज्यादा स्ट्रांग नहीं होती है जितनी बड़ी भेड़ की होती है. एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि अगर मेमनों के मामले में कुछ एहतियात बरती जाए तो इस बीमारी के असर को कंट्रोल किया जा सकता है. 

भेंड पालनभेंड पालन
नासि‍र हुसैन
  • NEW DELHI,
  • Jun 25, 2025,
  • Updated Jun 25, 2025, 10:07 AM IST

Sheep Lamb Disease ये बात सही है कि भेड़-बकरी पालन दूध और ऊन से ज्यादा मीट के लिए किया जाता है. लेकिन मीट उत्पादन में भी फायदा तभी होगा जब हर साल ज्यादा से ज्यादा भेड़-बकरी के बच्चे बड़े होंगे. और ये तब होगा जब भेड़-बकरी के बच्चे हेल्दी और बीमारियों से बचे रहेंगे. अगर भेड़ की बात करें तो वो हर साल छह से सात बच्चे देती है. साल में दो बार बच्चे देने वाली भेड़ एक बार तीन से चार बच्चे तक देती है. लेकिन ये भी सच है कि कुछ खास बीमारियां भेड़ के बच्चों की बड़ी दुश्मन होती हैं. 

खासतौर पर हगलू और चिकड़ बीमारी. शीप एक्सपर्ट की मानें तो बीते कुछ वक्त से भेड़ के मीट की डिमांड बहुत बढ़ी है. बड़े स्तर पर भेड़ पालन करने के बाद भी कुछ राज्य अपनी मीट की डिमांड को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. यही वजह है कि अगर पशुपालक भेड़ के बच्चों में बीमारियों की रोकथाम कर लेते हैं तो हर साल मोटा मुनाफा कमा सकते हैं. 

हगलू और चिकड़ बीमारी के बचाव 

एन्टीरोटोक्सीमिया-

गददी भेड़ पालक एन्टीरोटोक्सीमिया बीमारी को हगलू नाम से जानते हैं. यह मुख्यता जीवाणुओं द्वारा फैलता है. यह जीवाणु ज्यादातर भेड़ के पेट के अन्दर होता है. इस बीमारी में भेड़ में तेज पेट दर्द होता है. अधिकतर छोटे बच्चों में यह रोग ज्यादा होता है. जानवर धीरे-धीरे कमज़ोर हो जाता है. कई बार उसे चक्कर आते हैं. मुंह से झाग निकलता है और दस्त के साथ खून भी आता है.

एन्टीरोटोक्सीमिया से बचाव-

इस बीमारी से बचाव हेतू भेड़ पालक को प्राथमिक उपचार हेतू नमक व चीनी का घोल पिलाना चाहिए. क्योंकि यह दस्त के कारण जानवर के शरीर में हुई पानी की कमी को पूरा करता है. इसके साथ-साथ पेट के कीड़ों की दवाई अपने झुंड को पिलानी चाहिए. घास चरने की जगह समय-समय पर बदलनी चाहिए. दस्त और बुखार को कम करने के लिए पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार इलाज करवाना चाहिए. बचाव हेतू भेड़ पालक को वर्ष में एक बार टीकाकरण करवाना चाहिए.

फुट रोट-

गददी भेड़ पालक फुट रोट बीमारी को चिकड़ नामक रोग से जानते हैं. यह रोग जीवाणुओं द्वारा होता है. इस रोग में भेड़ के खुरों की बीच की चमड़ी पक जाती है. वह लंगडी हो जाती है. भेड़ों को तेज़ बुखार हो जाता है. इस रोग के जीवाणु मिटटी द्वारा एक जानवर से दूसरे में चले जाते है. यह एक छूत का रोग है, जो एक जानवर से पूरे झुंड में फैला जाता है.

फुट रोट से बचाव-

इस रोग से ग्रस्त भेड़ को अपने झुंड में ना लाऐं. जिस रास्ते से इस बीमारी वाला अन्य झुंड गुज़रा हो उस रास्ते से एक सप्ताह तक अपने झुंड को न ले जाऐं. बीमार भेड़ के खुरों की सफाई रखें. उनके खुरों को नीले थोथे (कापर सल्फेट) के घोल से धोऐं और एन्टीवायोटिक मलहम लगाएं. चिकित्सक की सलाह अनुसार चार-पांच दिनों तक एन्टीवायोटिक इन्जेक्शन लगाऐं.

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