जुलाई, अगस्त, सितम्बर अक्टूबर वो महीने हैं जब पशु भरपूर दूध देते हैं. जुलाई से ही खासतौर पर भैंस की ब्यात (बच्चा देना) शुरू हो जाती है. यही वो वक्त होता है जब बच्चा देने के बाद भैंस का दूध उत्पादन पीक पर होता है. किसी भी भैंस की दूध क्षमता भी बच्चा देने के बाद मिलने वाले दूध से ही आंकी जाती है. और अगर पशु हाट पर नजर दौड़ाएं तो भैंसों की खरीद-फरोख्त भी मॉनसून के दौरान ही ज्यादा होती है.
इसीलिए पशु विशेषज्ञ भी सलाह देते हैं कि मॉनसून के दौरान पशुओं को किसी भी तरह की परेशानी न होने पाए. पशु बीमार न पड़े. पशु को खुराक भी पूरी मिलती रहे. अगर इस दौरान पशु को जरा सी भी कोई परेशानी होती है तो उसका सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है.
एनीमल एक्सपर्ट डॉ. ज्ञानेन्द्र कुमार का कहना है कि भैंस की ब्यात जुलाई में शुरू होती है तो गाय की ब्यात फरवरी से मई तक रहती है. इस दौरान गाय खूब दूध देती है. यही वजह है कि पोष्टिाक चारा हो या साफ और ताजा पानी हर मामले में पशुओं का खास ख्याल रखा जाता है. कई तरह की बीमारियों से भी पशुओं को बचाया जाता है.
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हरियाणा के पशु अस्पताल में तैनात डॉ. जयदीप यादव ने किसान तक को बताया कि बरसात के मौसम में ही पशुओं को कई तरह की बीमारी होती हैं. दूषित चारा खाने से, दूषित पानी पीने से भी पशु बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. खुरपका-मुंहपका, थनेला समेत और तमाम बीमारियां भी इस मौसम में पशुओं को अपने चपेट में ले लेती हैं.
लेकिन समय-समय पर पशुओं को लगने वाले टीके हम अपने पशुओं को लगवाते रहेंगे तो पशु बीमारी की चपेट में नहीं आएंगे. दूध के संबंध में हकीकत तो ये है कि जब हमारा पशु कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होगा तो उसका दूध उत्पादन घटेगा ही घटेगा. और टीकाकरण से पशु बीमारी से बचकर स्वस्थ रहता है. और हम अच्छी तरह से जानते हैं कि जब पशु पूरी तरह ठीक होता है तो वो दूध भी खूब देता है. फिर वो चाहें भेड़-बकरी हो या फिर गाय-भैंस.
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हरियाणा के पशुपालन विभाग में डिप्टी डायरेक्टर डॉ. पुनीता गहलावत ने किसान तक को बताया कि बरसात के मौसम में होने वाले हरे चारे में पानी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. अगर पशु इस चारे को ज्यादा खा लेता है तो उसे डायरिया होने की संभावना रहती है. इसी तरह से इस मौसम में ही कई जगह खुले में बारिश का पानी जमा हो जाता है. ये पानी पूरी तरह से दुषित होता है. और जब पशु इसे पीता है तो वो बीमार हो जाता है.
इसलिए पशु को घर पर ही बाल्टी या किसी टंकी की मदद से पानी पिलाएं. साथ ही पशु को बाहर हरा चारा चरने के लिए ना भेजें. अगर पशु बाहर जा रहा है तो उसे घर पर सूखा चारा, दाना और मिनरल्स जरूर दें.