Goat Farming: बकरियों के बच्चों की मृत्यु दर कम करने के लिए अभी से प्लान करें ये टिप्स, जानें डिटेल

Goat Farming: बकरियों के बच्चों की मृत्यु दर कम करने के लिए अभी से प्लान करें ये टिप्स, जानें डिटेल

सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट के मुताबिक अब यह कोई जरूरी नहीं है कि बकरी को गर्भवती कराने के लिए उसकी मीटिंग बकरे के साथ कराई जाए. आर्टिफिशल इंसेमीनेशन तकनीक से भी बकरी गर्भवती हो सकती है. बस ख्याल इस बात का रखना है कि हमे बकरी को मौसम के हिसाब से गर्भवती कराना है. जिससे उसके बच्चों को ज्यादा गर्मी और सर्दी के मौसम का सामना नहीं करना पड़े. 

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Goat Farming: बकरियों के बच्चों की मृत्यु दर कम करने के लिए अभी से प्लान करें ये टिप्स, जानें डिटेलसीआईआरजी में बरबरी बकरियां. फोटो क्रेडिट-किसान तक

बकरी पालन को किसानों का एटीएम भी कहा जाता है. जब जरूरत हो तो दूध निकालकर बेच लो और जब ज्यादा रुपयों की जरूरत हो तो बकरा बेच दो. ये कम लागत में 100 फीसद मुनाफा देने वाला कारोबार है. लेकिन ये तब है जब बकरी के बच्चों की मृत्यु दर को पूरी तरह से रोक दिया जाए. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के सीनियर साइंटिस्ट का कहना है कि बकरी पालन में जरा सी भी चूक बड़ा नुकसान करा सकती है. साइंटिस्ट का कहना है कि बकरी पालन में सबसे ज्या‍दा नुकसान बच्चों में मृत्यु दर से होता है.

बच्चों की मृत्यु् दर को काम कर लिया जाए तो फिर बकरी पालन में कोई नुकसान ही नहीं है. इसे कम करने के लिए कोई लम्बा-चौड़ा बजट भी नहीं बनाना है. अगर सीआईआरजी के दिए गए चार्ट का ही पालन कर लिया जाए तो मृत्यु दर को कम किया जा सकता है.

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मौसम के हिसाब से तय करें कब पैदा कराना है बकरी से बच्चा 

सीआईआरजी के साइंटिस्ट डॉ. एमके सिंह ने किसान तक को बताया कि छोटे बच्चों के लिए मौसम सबसे बड़ा दुश्मन होता है. ज्यादा गर्मी और कड़ाके की ठंड नुकसान पहुंचाती हैं. इसलिए मौसम को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि बकरियों से बच्चा कब पैदा कराएं. जैसे नॉर्थ इंडिया में बकरियों के बच्चों में सबसे ज्यादा मृत्यु दर देखी गई है. क्योंकि यहां गर्मी और सर्दी के मौसम में बड़ा उलटफेर होता है. यहां गर्मी और सर्दी दोनों ही ज्यादा पड़ती है.

इसलिए कोशिश ये करें कि साल में दो मौके ऐसे होते हैं जब बकरियों को गाभिन कराया जा सकता है. जैसे 15 अप्रैल से 30 जून तक बकरी को गाभिन करा लें. वहीं इसके अलावा बात करें तो अक्टूबर और नवंबर में भी बकरी को गाभिन करा सकते हैं. ऐसा करने से जो बकरी अप्रैल से जून तक गाभिन हुई है वो अक्टूरर-नवंबर में बच्चा दे देगी. वहीं अक्टूबर-नवंबर में गाभिन होने वाली बकरी फरवरी-मार्च में बच्चा देगी.

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मृत्यु दर कम करने को यह तरीके भी अपना सकते हैं

डॉ. एमके सिंह ने बकरी के बच्चों की मृत्यु् दर कम करने के लिए जो दूसरे तरीके बताए हैं उसमे एक तो ये है कि जैसे ही बच्चा पैदा हो उसे फौरन ही मां का दूध पिलाएं. फिर चाहें बकरी ने बच्चा देने के बाद जैर गिराई हो या नहीं. बच्चे का वजन एक किलो होने पर उसे 100 से 125 ग्राम तक दूध पिलाएं. दूध दिनभर में तीन से चार बार में पिलाएं. मौसम से बचाने के उपाय भी अपनाएं. जब बच्चा 18 से 20 दिन का हो जाए तो से पत्तियों की कोपल देना शुरू कर दें. एक महीने का होने पर पिसा हुआ दाना खिलाएं. जब बकरी का बच्चा तीन महीने का हो जाए तो उसका टीकाकरण शुरू करा दें.

गर्भकाल में ये तरीका अपनाने से कम होगी मृत्यु दर 

साइंटिस्ट  के मुताबिक और इस सब के बीच इस बात का भी खास ख्याल रखें कि जब बकरी बच्चा देने वाली हो तो उससे डेढ़ महीने पहले से बकरी को भरपूर मात्रा में हरा, सूखा चारा और दाना खाने को दें. इससे होगा यह कि पेट में पल रहे बच्चे तक भी अच्छी खुराक पहुंचेगी और वो स्वस्थ होगा. साथ ही जब बच्चा पैदा होगा तो उसके बाद बकरी दूध भी अच्छा और ज्यादा देगी. 

 

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