किसान तक में खबर प्रकाशित होने के बाद जैसलमेर में तरड़िया बीमारी से मर रही भेड़ों का इलाज शुरू हो गया है. रविवार को दोपहर बाद पशुपालन विभाग की सात सदस्यीय टीम सांवता गांव में पहुंची. वहां बीमार भेड़ों को दवाइयां दीं और स्वस्थ भेड़ों को वैक्सीन भी लगाई. साथ ही टीम ने एक भेड़ का पोस्टमार्टम किया. मृत भेड़ से सैंपल लेकर लैब पहुंचाए. भेड़ों के मरने की असली वजह इस सैंपल की रिपोर्ट से ही पता चलेगी. पशुपालन विभाग की टीम में दो वेटनरी डॉक्टर, चार एलएसए और एक लैब एक्सपर्ट शामिल थे.
बता दें कि शनिवार को किसान तक ने “जैसलमेर के सांवता गांव में 2 महीने में हुई 300 भेड़-बकरियों की मौत, नहीं मिला इलाज, पशुपालक परेशान” शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी. खबर प्रकाशित होते ही विभाग की सात सदस्यों की टीम गांव में पहुंची.
फतेहगढ़ पशुपालन विभाग के नोडल अधिकारी डॉ. देवेन्द्र बताया कि मौके पर टीम ने 14 पशुओं का इलाज किया. एक भेड़ का पोस्टमार्टम किया.
किसान तक में खबर प्रकाशित होने के बाद जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर के पशुपालन विभाग सक्रिय हुआ. रविवार को दोपहर में विभाग की टीम पहुंची. ग्रामीणों का कहना है कि जब तक गांव में डॉक्टर पहुंचे तब तक भेड़ चरने के लिए जंगल में चली गईं. इसीलिए अधिकतर भेड़ों का इलाज ही नहीं हो पाया.
क्योंकि बीमार भेड़ भी स्वस्थ भेड़ों के साथ चरने चली गई थीं. यही वजह थी कि टीम सिर्फ 14 भेड़ों का ही इलाज कर पाई. ये वे भेड़ थीं जो चलने-फिरने में असमर्थ थीं. ग्रामीण सुमेर सिंह ने बताया कि इलाज के दौरान ही एक और भेड़ की मौत हो गई.
ग्रामीणों ने किसान तक को धन्यवाद दिया है. सुमेर सिंह कहते हैं, “किसान तक में खबर छपने का ही असर है कि गांव में पशुपालन विभाग से टीम पहुंची. इससे पहले हम कई बार फतेहगढ़ नोडल अधिकारी तक समस्या भेज चुके थे, लेकिन दवाइयां नहीं होने की बात कहकर वे इलाज को टालते रहे.”
देखें वीडियो- जैसलमेर में दो महीने में 300 भेड़-बकरियों की गई जान, जानिए क्या है वजह?
सुमेर कहते हैं, अगर विभाग की टीम सुबह पहुंचती तो ज्यादा भेड़ों का इलाज हो सकता था. हालांकि हमने उन्हें कहा है कि अगली बार आने की सूचना अगर पहले मिल जाएगी तो वे भेड़ों को चरने के लिए नहीं छोड़ेगे. इससे अधिक से अधिक भेड़ों का इलाज हो पाएगा और जो स्वस्थ हैं उन्हें वैक्सीन लग पाएगी.