Lumpy Disease: एक बार फिर लौटी लंपी बीमारी, इस जिले के आधा दर्जन ब्लॉकों में गायों और बछड़ों की मौत

Lumpy Disease: एक बार फिर लौटी लंपी बीमारी, इस जिले के आधा दर्जन ब्लॉकों में गायों और बछड़ों की मौत

लंपी स्किन डिजीज प्रभावित इलाकों में विशेष कैंप के जरिए इलाज मुहैया करा रहा है. मुजफ्फरपुर में लंपी बीमारी के प्रकोप ने आधा दर्जन प्रखंडों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. जिसके कारण कई गायों और बछड़ों की मौत हो चुकी है.

एक बार फिर बढ़ रहा लंपी रोग का खतरा एक बार फिर बढ़ रहा लंपी रोग का खतरा
मणि भूषण शर्मा
  • Muzaffarpur,
  • Aug 20, 2025,
  • Updated Aug 20, 2025, 9:52 AM IST

मुजफ्फरपुर जिले के कई प्रखंडों में गायों और बछड़ों में लंपी स्किन डिजीज तेजी से फैल रही है. लंपी स्किन डिजीज के कारण कई गायों और बछड़ों की मौत हो चुकी है. जिसके बाद पशुपालन पदाधिकारी ने सरकारी स्तर पर इस बीमारी के टीकाकरण और रोकथाम की बात कही है. पशुपालन विभाग ने मोबाइल मेडिकल सर्विस वाहन शुरू किया है जो लंपी स्किन डिजीज प्रभावित इलाकों में विशेष कैंप के जरिए इलाज मुहैया करा रहा है. मुजफ्फरपुर में लंपी बीमारी के प्रकोप ने आधा दर्जन प्रखंडों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. जिसके कारण कई गायों और बछड़ों की मौत हो चुकी है. जिले के कुढ़नी, मड़वन, कांटी, सकरा, मुशहरी और मुरौल प्रखंड सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके हैं. मड़वन प्रखंड की लगभग सभी 14 पंचायतों में इस बीमारी ने पशुपालकों की परेशानी बढ़ा दी है.

जिले में गायों की कुल संख्या

जिले के पशुपालन विभाग में इस समय लगभग 4 लाख गायें हैं, जिनमें से लगभग 3 लाख का टीकाकरण हो चुका है. साथ ही, मोबाइल मेडिकल वाहन (मोबाइल मेडिकल यूनिट) भेजे जा रहे हैं और एक टीम प्रभावित क्षेत्र में अभियान चलाने की तैयारी कर रही है.

लंपी बीमारी से दूध उत्पादन में गिरावट

जुलाई 2025 में यह बीमारी तीन प्रखंडों - मुशहरी, सकरा और कुढ़नी - में तेज़ी से फैली थी. यह बीमारी कई दुधारू गायों को प्रभावित कर रही थी, जिससे दूध उत्पादन में गिरावट आई थी. सरकारी टीकाकरण के अभाव में किसान निजी उपचार पर निर्भर थे. स्थानीय पशुपालकों ने बताया कि गायों का दूध उत्पादन लगभग आधा हो गया है. ज़िला पशुपालन विभाग ने पशु चिकित्सकों को प्रभावित मवेशियों का इलाज और स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण करने के निर्देश जारी किए थे.

लंपी से पशुओं को बचाने का उपाय

यह एक बीमारी है, जैसे इंसानों को चिकनपॉक्स होता है. हम इसका इलाज नहीं करते और एलोपैथिक दवाइयां नहीं लेते. वैसे ही, अगर मवेशियों का टीकाकरण नहीं हुआ है और उन्हें गांठें हो जाती हैं, तो मवेशियों को ज़्यादा से ज़्यादा आयुर्वेदिक दवा देनी चाहिए. अगर घाव हो, तो घाव का इलाज करें. घाव पर नीम और कपूर का लेप लगाएं. अगर बुखार हो, तो उसका इलाज करें. मवेशियों को पौष्टिक आहार देना ज़रूरी है. उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत रखें. इससे मवेशियों को गांठों से लड़ने में मदद मिलती है. अगर मवेशी पहले से बीमार है, तो उसे टीका न लगाएं. बीमारी के दौरान टीका लगाने से बीमारी नहीं रुकती और ज़्यादा फैलती है.

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