बकरियों में हो सकता है TPR का संक्रमण, बचाव के लिए ये उपाय करें किसान

बकरियों में हो सकता है TPR का संक्रमण, बचाव के लिए ये उपाय करें किसान

इस समय बकरियों में टीपीआर रोग के संक्रमण की संभावना सबसे अधिक रहती है. इस रोग से संक्रमित होने पर अक्सर सही इलाज के अभाव में बकरियों की मौत हो जाती है. टीपीआर रोग से संक्रमित बकरी के लक्षण की बात करें तो इस रोग से ग्रसित जानवरों को तेज बुखार आया है साथ ही मुंह में छाले पड़ जाते हैं.

बकरी पालन सलाह (सांकेतिक तस्वीर)बकरी पालन सलाह (सांकेतिक तस्वीर)
पवन कुमार
  • Ranchi,
  • Apr 02, 2024,
  • Updated Apr 02, 2024, 7:22 PM IST

मौसम में परिवर्तन हो रहा है और इस बदलाव के समय पेड़ पौधों के साथ-साथ मवेशियों को भी खास ध्यान देना पड़ता है, ताकि उन्हें किसी भी प्रकार की बीमारियों से बचाया जा सके. झारखंड में गर्मियां शुरू हो चुकी हैं. साथ ही रुक-रुक कर बारिश भी हो रही है. ऐसे में पशुओं के बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है. खास कर उन बकरी, गाय, भैंस के बीमार होने का खरता बढ़ जाता है जो बाहर खुले में चरने के लिए जाती हैं. इस दौरान वे संक्रमित पशुओं के संपर्क में भी आती हैं और बीमार पड़ जाती हैं. इसलिए इस मौसम में पशुओं का ध्यान रखने के संबंधित सलाह किसानों के लिए जारी की जाती है. रांची मौसम विज्ञान केंद्र की तरफ से भी किसानों के लिए सलाह जारी की गई है. 

पशुपालकों के लिए जारी सलाह में कहा गया है कि इस समय बकरियों में टीपीआर रोग के संक्रमण की संभावना सबसे अधिक रहती है. इस रोग से संक्रमित होने पर अक्सर सही इलाज के अभाव में बकरियों की मौत हो जाती है. टीपीआर रोग से संक्रमित बकरी के लक्षण की बात करें तो इस रोग से ग्रसित जानवरों के को तेज बुखार आता है. साथ ही मुंह में छाले पड़ जाते हैं. संक्रमित बकरी के आंख और नाक से पानी निकलता है. पशुओं में दस्त और निमोनिया के लक्षण दिखाई देते हैं. यह एक संचारी रोग होता है औ इस रोग के संक्रमण से एक ही बार में पशुपाकों को भारी नुकसान होता है.

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टीपीआर से बचाव के तरीके

अगर सही समय पर इस रोग के निदान के लिए दवाई नहीं दी गई और सही इलाज नहीं किया गया तो संक्रमित पशु की मौत हो जाती है. इस रोग से बचाव के लिए प्रत्येक बकरी को टीपीआर का टीका लगवाना चाहिए. एक मिलीलीटर का यह टीका बकरियों की चमड़ी पर लगाया जाता है. जिस बकरी की उम्र तीन महीने से कम है या फिर जो बकरी गाभिन है, उन्हें इस टीके से टीकाकरण नहीं किया जाना चाहिए. इस रोग से बचाव के लिए जानवरों को धूप में जाने से बचाना चाहिए और उन्हें पीने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी देना चाहिए. 

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मछलीपालकों के लिए सलाह

इसके अलावा मछलीपालन कर रहे किसानों के लिए जारी सलाह में कहा गया है कि मछलियों के लिए प्राकृतिक भोजन का समुचित उपाय करने के लिए मवेशी के गोबर और बुझे हुए चूने का इस्तेमाल करना चाहिए. गोबर की खाद को तालाब के किनारे एक जगह पर डाल देना चाहिए. इसके साथ ही मछलियों की अधिक बढ़वार के लिए ऊपरी आहार भी देना चाहिए. इसके लिए चावल का कुंदा और सरसों की खली दोनों को पांच-पांच किलोग्राम की मात्रा में मिलाकर प्रति दिन प्रति एकड़ की दर से तालाब में मछलियों को देना चाहिए. साथ ही तालाब में ऑक्सीजन की मात्रा बनाए रखने के लिए पानी पर हलचल बनाए रखें. इसके लिए पानी पर डंडे से मारें और तालाब में पानी की पर्याप्त मात्रा रखें. 

 

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