Cage Culture Fish Farming केज कल्चर तकनीक नई है लेकिन अपनाए न जाने की वजह से 10-11 साल पुरानी हो गई है. अब जब मछली पालकों ने केज कल्चर से मछली पालन शुरू किया तो एक छोटी सी जगह में चार से पांच टन तक मछली उत्पादन होने लगा. केन्द्रीय मत्स्य पालन मंत्रालय से जुड़े अफसरों की मानें तो केज कल्चर का मकसद उन वाटर बॉडीज (जलाशय) का इस्तेमाल करना है जहां पानी तो बहुत है, लेकिन वहां मछली पालन नहीं हो रहा था. इसके तहत पानी में जाल से एक पिंजरा बनाया जाता है. मछलियां इस पिंजरे में ही रहती हैं. इसी पिंजरे में मछलियों को खाने के लिए फीड दिया जाता है.
तालाब के मुकाबले केज में मछली पालन करना सस्ता पड़ता है. इसके फायदों को देखते हुए मछली पालक अब बड़ी तेजी से इसे अपना रहे हैं. केन्द्र और राज्य सरकार भी केज में मछली पालन को बढ़ावा दे रही हैं. इसकी एक वजह देशभर के राज्यों में 35 लाख हेक्टेयर जलाशय ऐसे हैं जहां केज तकनीक की मदद से मछली पालन किया जा सकता है.
केज कल्चर तकनीक की मदद से मछली पालन करने के लिए केन्द्र सरकार प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत केज बनाने के लिए 40 से 60 फीसद तक की सब्सिमडी दे रही है. इतना ही नहीं केन्द्र और राज्य सरकार मिलकर मछली का बीज खरीदने, उन्हें खिलाने के लिए फीड खरीदने तक पर मछली पालकों को सब्सि डी दी जा रही है. यहां तक की केज की मरम्मत के लिए भी मदद दी जा रही है.
केन्द्रीय मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश के 21 राज्यों में केज तकनीक की मदद से मछली पालन किया जा रहा है. इसके लिए केन्द्र सरकार की ओर से 1629 करोड़ रुपये की सब्सि डी दी गई है. 21 राज्यों में 55118 केज बनाए गए हैं. जिन राज्यों में सबसे ज्यादा केज का इस्तेमाल किया जा रहा है उसमे महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड है.
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