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क्लाइमेंट चेंज का आम पर असर! पेड़ में लगे बौर में नहीं आ रहे फल

क्लाइमेंट चेंज का आम पर असर! पेड़ में लगे बौर में नहीं आ रहे फल

जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि पर भी विपरीत असर पड़ रहा है. फरवरी महीने में ही तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. अब ज्यादा तापमान और पछुआ हवाओं के प्रकोप से आम की फसल भी प्रभावित हो रही है. लखनऊ की फल पट्टी मलिहाबाद और काकोरी में आम के पेड़ों पर बौर तो जनवरी महीने में ही आ गए, लेकिन महीना भर बीत जाने के बाद भी फल नहीं आ रहे हैं.

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आम के बौर में नहीं आ रहे फल आम के बौर में नहीं आ रहे फल

जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि पर भी विपरीत असर पड़ रहा है. फरवरी महीने में ही तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. अब ज्यादा तापमान और पछुआ हवाओं के प्रकोप से आम की फसल भी प्रभावित हो रही है. लखनऊ की फल पट्टी मलिहाबाद और काकोरी में आम के पेड़ों पर बौर तो जनवरी महीने में ही आ गए, लेकिन महीना भर बीत जाने के बाद भी फल नहीं आ रहे हैं, जिसके चलते किसानों की परेशान‍ियां बढ़ गई हैं. आम की फसल पर इस लदे बौर को देखकर किसान बहुत खुश थे, लेकिन इस बार अगर फल नहीं आएंगे तो उन्हें बड़ा नुकसान होगा. हालांकि इस बार बागवान इस बात को लेकर खुश थे क्योंकि आम की फसल पर लगने वाले कीटो का प्रकोप कम है.

मार्च में आने लगते हैं बौर में फल 

आम के पेड़ों में सामान्य रूप से जनवरी से फरवरी महीने में बौर आने लगते हैं, जिन पेड़ों पर सूर्य की रोशनी सबसे ज्यादा पड़ती है. उनमें बहुत पहले बौर आते हैं, जहां रोशनी कम पड़ती है. वहां देर से बौर आते हैं. पेड़ों में बौर आने के बाद मार्च महीने में मटर के दानों के आकार के आम के फल लगने लगते हैं, लेकिन इस बार लखनऊ की फल पट्टी मलीहाबाद और काकोरी में ऐसा नहीं हो सका है जिसको लेकर किसान इन दिनों काफी परेशान है.

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक टी दामोदरन ने किसान तक को बताया कि आम के पेड़ में बढ़ाने के बाद फल ना बनने के पीछे दो प्रमुख कारण होते हैं. पहला गर्मी का तेजी से बढ़ना और दूसरा जरूरत से ज्यादा कीटनाशक का छिड़काव. जिसके चलते परागण करने वाले कीटो, मक्खियों की संख्या बहुत कम हो जाती है, जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि बौर में फल नहीं लगते हैं. लखनऊ के आम की बागवान गिरजा शंकर मौर्य कहते हैं कि इस बार आम की फसल में कीट कम लगे हैं. इसी वजह से पौधों में परागण नहीं हो सका है. हालांकि यह समस्या दशहरी आम के पेड़ों में ज्यादा है जबकि चौसा आम के बौर में फल लगने लगे हैं.

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पछुआ हवाओं का असर

उत्तर प्रदेश में कुल 15 फल पट्टी हैंं, जो 13 जिलों में फैली हुई है. लखनऊ की फल पट्टी मलिहाबाद और काकोरी में आम का उत्पादन करने वाले किसान इस बार जलवायु परिवर्तन के चलते ज्यादा परेशान हैं.  बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र सिंह का कहना है कि चौसा वाले पेड़ में बौर में फल आ रहे हैं, लेकिन दशहरी आम के पेड़ों की हालत चिंताजनक है. हर बार मार्च महीने में पुरवाई हवा चलती थी, जिसके कारण परागण करने वाले कीट के लिए मौसम अनुकूल होता था, लेकिन इस बार फरवरी महीने से ही ज्यादा तापमान के चलते पछुआ हवाएं चल रही हैं जिसके चलते बौर को नुकसान हो रहा है.

क्या करें किसान

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक टी दामोदरम ने किसानों को सलाह दी है कि बाग हल्की सिंचाई करते रहें जिससे कि वहां नमी बनी रहेगी. सुबह के समय सिंचाई करना ज्यादा लाभदायक है. बागों में नमी बनी रहेगी तो तापमान का असर कम होगा जिसके कारण फल आने की उम्मीद बढ़ जाएगी. वही कीटनाशक का छिड़काव काम करें.