उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंंड इलाके में ग्रामीण महिलाओं ने सहकारिता का बेहतर उदाहरण पेश कर दूध के कारोबार का ऐसा सफल मॉडल पेश किया है, जो इस इलाके की पहचान को बदलने में भी अहम भूमिका निभा रहा है. महज 3 साल के भीतर 7 जिलों के 701 गांवों की 48 हजार महिलाओं ने अमूल की तर्ज पर यह कमाल कर दिखाया है. स्वयं सहायता समूह की इन महिलाओं की पहचान अब 'बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी' के नाम से बन चुकी है.
उप्र के ग्राम्य विकास विभाग ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) की राज्य में अब तक की उपलब्धियों के रिपोर्ट कार्ड में बलिनी समूह की कामयाबी की कहानी को भी शामिल किया है. एनआरएलएम के तहत सहायता प्राप्त इस कंपनी ने महज 3 साल के भीतर महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों का गांव-गांव में नेटवर्क मजबूत करके दूध के संग्रह की अटूट श्रृंखला बना दी है.
जनवरी 2019 में गठित बलिनी समूह का दायरा अब बुंदेलखंड के 2 जिलों से बढ़कर पूरे मंडल के सातों जिलों में पहुंच गया है. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के सहयोग से गठित इस कंपनी की संचालक महिलाओं ने बुंदेलखंड के 701 गांवों में 3600 स्वयं सहायता समूह बनाकर 48 हजार सक्रिय महिला सदस्यों को अपने नेटवर्क में शामिल कर लिया है. इन समूहों के माध्यम से कंपनी द्वारा 701 गांवों से प्रतिदिन 1.22 लीटर दूध एकत्र किया जाता है.
कंपनी की बैलेंस शीट के मुताबिक बलिनी ने किसानों को दूध की खरीद के एवज में 260 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. इसके साथ ही कंपनी ने 13.34 करोड़ रुपये का लाभ भी कमाया है. मुनाफे वाली इस कंपनी में अब 40,730 शेयर धारक हो चुके हैं.
गरीबी, अशिक्षा और पिछड़ेपन के लिए बदनाम रहे बुंदेलखंड इलाके की पहचान को बदल रही बलिनी समूह की कामयाबी की कहानी खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी विभिन्न मौकों पर सुना चुके हैं. इतना ही नहीं पिछले साल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस समूह की महिलाओं से संवाद कर इन्हें गुजरात में अमूल मॉडल से रूबरू होने के लिए आमंत्रित किया था. अब उप्र सरकार बुंदेलखंड में सफल हुए इस मॉडल को प्रदेश के दूसरे इलाकों में भी शुरू कर रही है. इसका अगला पड़ाव वाराणसी है. बलिनी की तर्ज पर काशी दुग्ध उत्पादक कंपनी का गठन किया जा चुका है. कंपनी के रूप में गठित यह समूह गाजीपुर, सोनभद्र, बलिया, मिर्जापुर एवं चंदौली जिलों में काम करेगा.
बलिनी समूह के सहायक प्रबंधक शशिकांत ने समूह के काम करने के तरीके के बारे में बताया कि ग्रामीण इलाकों में गठित महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से किसानों से दूध की खरीद की जाती है. इसके पहले समूह के पर्यवेक्षक किसी गांव में दूध की उपलब्धता के आधार पर तय करते हैं कि उस गांव में दूध का संग्रह केन्द्र खोला जाना है या नहीं. उन्होंने बताया कि जिस गांव में दूध की पर्याप्त आवक होती है, उस गांव में कंपनी का खरीद केन्द्र खोला जाता है. इस केन्द्र का संचालन पूरी तरह से महिलाओं के स्वयं सहायता समूह के हाथ में ही होता है. इस केन्द्र पर आसपास के गांवों के किसान दूध बेचने आते हैं.
हर संग्रह केन्द्र पर दूध में क्रीम की मात्रा नापने का यंत्र मौजूद होता है. डाटा प्रोसेसर युक्त मिल्क कलेक्शन यूनिट की मदद से ही दूध की गुणवत्ता के आधार पर कीमत तय होती है. जो किसान पानी मिला कर दूध लाते हैं, उन्हें दूध में मौजूद क्रीम की मात्रा के मुताबिक ही कीमत मिलती है. दूध की कीमत का भुगतान किसान के बैंक खाते में किया जाता है. यह भुगतान 10 दिन में एक बार होता है. कुल मिलाकर दूध विक्रेता किसान को महीने भर का भुगतान तीन किस्तों में हो जाता है.
यह प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन होने के कारण पारदर्शी है. किसान को दूध की बिक्री की पर्ची मिलती है, जिसमें दूध की मात्रा, मूल्य और क्रीम की मात्रा आदि जरूरी जानकारियां दर्ज होती हैं. सुबह और शाम, दो समय गांव से दूध एकत्र किया जाता है. इस दूध को ब्लॉक स्तर पर बने दूध संग्रह केन्द्रों पर भेजा जाता है. इन केन्द्रों पर दूध को पाश्चुराइजेशन प्रक्रिया से गुजार कर दिल्ली की मदर डेयरी जैसी बड़ी दूध कंपनियों को सप्लाई कर दिया जाता है.
शशिकांत ने बताया कि अब कंपनी की महिलाओं ने अपना कारोबार दूध से बढ़ाकर घी और पशु आहार बनाने तक बढ़ा दिया है. उन्होंने बताया कि गांव में ही पशुपालक किसानों को बाजार कीमत पर दूध की खरीद होने की सहूलियत मिलने लगी है. इससे पशुपालक किसानों में दूध का उत्पादन बढ़ाने की रुचि बढ़ी है. इस कारण किसान दुधारू पशुओं की संख्या तो बढ़ा ही रहे हैं, साथ ही बाजार से ऐसा पशु आहार खरीदने लगे जिससे दूध की मात्रा बढ़ने के दावे किए जाते हैं. बाजार में बिक रहे ऐसे चारे से किसानों को बचाने के लिए कंपनी ने समूह की महिलाओं के माध्यम से दुधारू पशुओं के लिए पोषक पशु आहार का भी उत्पाद करना प्रारंभ कर दिया है. इसके अलावा हाल ही में 'बलिनी घी' की बिक्री भी शुरू की है. गांव में बने बलिनी संग्रह केन्द्रों पर अब कंपनी ने पशु आहार और घी बेचना शुरू कर दिया है.
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