Success Story: पुश्तैनी खेती की चाहत के जुनून ने बना दिया दो इंजीनियर भाइयों को सफल किसान

Success Story: पुश्तैनी खेती की चाहत के जुनून ने बना दिया दो इंजीनियर भाइयों को सफल किसान

हुनर और मेहनत के दम पर दो इंजीनियर भाई वैज्ञानिक तकनीक से खेती करके अपने जमीन पर सोना उगा रहे हैंउन्होंने अपनी जमीन पर हरियाली बिखेर कर विपरीत परिस्थितियों में खेती को लाभ का धंधा बनाकर कृषि के क्षेत्र में नई मिसाल पेश की है. ये दोनों भाई नौकरी छोड़ कर 10 एकड़ में समेकित खेती कर लाखों की कमाई कर रहे हैं.

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Success Story: पुश्तैनी खेती की चाहत के जुनून ने बना दिया दो इंजीनियर भाइयों को सफल किसानइंजीनियर की नौकरी छोड़ बिहार में शुरू की खेती-किसानी

हुनर और मेहनत के दम पर दो इंजीनियर भाई वैज्ञानिक तकनीक से खेती करके अपने जमीन पर सोना उगा रहे हैं. उन्होंने अपनी जमीन पर हरियाली बिखेर कर विपरीत परिस्थितियों में खेती को लाभ का धंधा बनाकर कृषि के क्षेत्र में एक नई मिसाल पेश की है. जिला मुजफ्फरपुर बोचहां प्रखंड के कर्मपुर गांव के रहने वाले दो भाई आयुष कुमार मैकेनिकल इंजीनियरिंग और कुशल इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन पढ़ाई करने के बाद में दिल्ली में अच्छी सैलरी पर नौकरी कर रहे थे.लेकिन अब वह नौकरी छोड़ 10 एकड़ में समेकित खेती कर लाखों की कमाई कर रहे हैं.

दोनों भाइयों का कहना है इंसान के मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो वह नामुमकिन को भी मुमकिन बना सकता है. दोनों भाई मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर की नौकरी छोड़ युवा बेरोज़गारों को ज़मीन से जुड़ी एक बेहतरीन मिसाल दे रहे हैं. आयुष ने किसान तक से बातचीत करते हुए बताते हैं कि कोरोना के समय घरवालों के दबाव देने पर दोनों भाई घर वापस चले आए. पुस्तैनी करीब 40 एकड़ जमीन में ही घरवालों ने खेती में कुछ अलग व नया करने का सुझाव दिया.

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दो इंजीनियर भाई कैसे बने किसान?

आप सोच रहे होंगे कि दोनो भाइयों ने क्या तकनीक अपनाई. दरअसल, इन भाइयों ने सबसे पहले मशरूम की खेती शुरू की. वे तीन साल से 10 एकड़ जमीन में समेकित कृषि प्रणाली से खेती कर रहे हैं.,साथ ही एक एकड़ में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. जिससे उनकी अच्छी कमाई हो रही हैं,इसके अलावा उनके  पर लगे लीची बागान की भी वैज्ञानिक तरीके से देख कर क्वालिटी वाला फल उत्पादन ले रहे हैं.आयुष ने  कमाई के बारे बताते हुए कहा कि इस काम में काफी अच्छी कमाई हो रही है. खेती इस कमाई का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि हम नौकरी में इसका 10 प्रतिशत ही कमा रहे थे.

लीची की खेती से करते हैं साल के 6 लाख से अधिक की कमाई
लीची की खेती से करते हैं साल के 6 लाख से अधिक की कमाई

लीची की बागवानी में इंजीनियर सोच

आयुष कुमार ने बताया  कि उनके पास करीब 12 एकड़ में शाही लीची के 1100 पेड़ हैं. उत्पादन तक सीमित ना रहकर, उन्होंने लीची के बागों को बिजनेस का रूप दिया है. इसके तहत  200 पेड़ के लीची का जूस, रसगुल्ला और किशमिश बनाते हैं, जिससे करीब एक लाख 10 हजार रुपए की कमाई हो जाती है. इसमें से लागत काटकर 40 हजार तक शुद्ध कमाई हो जाती है. साथ ही शेष लीची पेड़ के फल को बेच देते हैंजिससे करीब 5 लाख रुपए तक की शुद्ध कमाई हो जाती है. उन्होंने बताया कि लीची के अलग-अलग प्रोडक्ट बनाने के लिए वे राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी मुजफ्फरपुर से प्रशिक्षण भी ले चुके हैं.

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ए़कल फसल तकनीक छोड़, समेकित एप्रोच

कुशल कुमार ने बताया,हमने पहला काम खेती में यह किया किअपनी खेती को नए तरीकों के साथ अपनाने की कोशिश की. हम दोनों भाई 10 एकड़ में समेकित कृषि प्रणाली के तहत खेती करते हैं.' उन्होंने समेकित कृषि प्राणली में तकनीकों सहारे फसल से अधिक उपज लेने वाली  विधि अपनाई. यहां आकर उसने अपनी खेती में नयापन लाने की कोशिश किया है.

समेकित कृषि प्रणाली की मदद से ये भाई एक एकड़ तालाब में मत्स्य पालन, एक एकड़ में मशरूम, 3 एकड़ में फल और 4 एकड़ में सब्जी की खेती करते हैं. साथ ही बकरी पालन औऱ देसी मुर्गी पालन का कार्य करते हैं. वहीं एक एकड़ में प्राकृतिक खेती करते हैं.

कुशल बताते हैं कि इन सभी से करीब 20 लाख की कमाई हो जाती है. लेकिन इसे और बेहतर करने के लिए कमाई का अधिकांश हिस्सा अभी इसी में लगाया जा रहा है. कौशल के सपनों को भी पंख लग गए हैं. उसका मुनाफा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है.कौशल ने दावा किया है कि वो अगले 2025 तक इसी जमीन से अपनी 30 लाख की आमदनी कर लेंगे. जो बहुत जल्द ही पूरा हो जाएगा. फल की खेती में केले के 1200 पेड़, पपीते के 200 पेड़ लगाए हुए है. वहीं  उनकी मोटे अनाज की खेती से भी कमाई हो जाती है.

 समेकित कृषि प्रणाली के तहत करते हैं बकरी पालन
Image क्रेडिट किसान : समेकित कृषि प्रणाली के तहत करते हैं बकरी पालन

कौशल कुमार और आयुश ने एक लक्ष्य चुना, इसपर लगातार काम किया और आज अपनी इसी लगन से वो ना सिर्फ लाखों में कमाई कर रहे हैं. बल्कि इस यूनिट में 8-9 लोगों को परमानेंट रोजगार भी दे रहे हैं. उनका कहना है कि जो लोग खेती को घाटे को सौदा कहते हैं, जरा वे इस के खेत में आकर अवश्य देख लें. आयुश ने कहा कई  साल से किसानों की आय में कोई विशेष बदलाव नहीं आया हैं, क्योंकि फसल  उत्पादन में हर साल बढ़ोतरी हो रही है. लेकिन किसानों की आमदनी में कोई बदलाव नहीं आया है.अब सरकार को इसके बारे में सोचने की जरूरत है. 

बिहार की अर्थव्यवस्था का मजबूत कड़ी कृषि है यहां के किसानों का लाइफ लाइन खेती है. समय के साथ बिहार की कृषि व्यवस्था में काफी बदलाव हो रहे हैं. साथ ही युवा भी अब खेती में बेहतर संभावना देख रहे हैं.इन युवाओं से सीखकर खेती मे कुछ नया कर सकते हैं.

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