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अपने ऑटोमेटिक पोल्ट्री फार्म से किसान ने बनाया 15 करोड़ का कारोबार, 50 लोगों को दे चुके हैं रोजगार 

अपने ऑटोमेटिक पोल्ट्री फार्म से किसान ने बनाया 15 करोड़ का कारोबार, 50 लोगों को दे चुके हैं रोजगार 

महाराष्‍ट्र के अमरावती में एक दौर ऐसा भी था जब यहां के किसान सिर्फ पांच रुपये की मजदूरी ही कमा पाते थे. लेकिन यहां के एक किसान ने इस परंपरा को अपनी नियति मानने से इनकार कर दिया. आज यह किसान न सिर्फ हर साल करोड़ों कमा रहा है बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गया है. हालांकि अपनी किस्‍मत को बदलने के लिए इस किसान को कड़ी मेहनत करनी पड़ी.

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महाराष्‍ट्र के रविंद्र मणिकर मेटकर बने किसानों के लिए प्रेरणा (प्रतीकात्‍मक फोटो) महाराष्‍ट्र के रविंद्र मणिकर मेटकर बने किसानों के लिए प्रेरणा (प्रतीकात्‍मक फोटो)

महाराष्‍ट्र के अमरावती में एक दौर ऐसा भी था जब यहां के किसान सिर्फ पांच रुपये की मजदूरी ही कमा पाते थे. लेकिन यहां के एक किसान ने इस परंपरा को अपनी नियति मानने से इनकार कर दिया. आज यह किसान न सिर्फ हर साल करोड़ों कमा रहा है बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गया है. हालांकि अपनी किस्‍मत को बदलने के लिए इस किसान को कड़ी मेहनत करनी पड़ी. हम बात कर रहे हैा रविंद्र मणिकर मेटकर की जिनके ऑटोमैटिक पोल्‍ट्री फार्म ने इस समय हंगामा मचाया हुआ है. करीब 20 करोड़ का यह पोल्‍ट्री फार्म आज रविंद्र को हर साल करोड़ों का टर्नओवर भी दे रहा है. एक रिपोर्ट की मानें तो इस पोल्‍ट्री फार्म में रविंद्र ने 50 लोगों को रोजगार दिया हुआ है. इसकी वजह से वह एक सफल किसान के तौर पर जाने जाते हैं. 

कृषि मंत्रालय के 'मोटिवेशनल' स्‍पीकर!  

रविंद्र मेटकर ने किसान के तौर पर अपनी आजीविका शुरू की और आज वह राज्य में एक ऐसे किसान के तौर पर जाने जाते हैं जिसके पोल्‍ट्री फार्म पर सबसे ज्‍यादा अंडों का उत्‍पादन होता है. उनके पोल्ट्री फार्म में हर दिन 2 लाख अंडे मिलते हैं. उन्होंने हाल ही में 50,000 मुर्गियों के लिए एक ऑटोमैटिक पोल्ट्री फार्म बनाया है जिसकी लागत करीब 18 करोड़ रुपये है. उनके पास 1.3 लाख मुर्गियों के लिए एक और पोल्ट्री फार्म है, जो महाराष्‍ट्र और उसके करीबी राज्यों को अंडे की सप्‍लाई करता है. उनकी सफलता की कहानी इतनी शानदार है कि कृषि मंत्रालय किसानों को मोटिवेट करने के लिए अब मेटकर को लेक्‍चर देने के लिए बुलाता है. 

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घर की स्थिति थी कमजोर 

रविंद्र मेटकर के पिता ग्रेड 4 कर्मचारी थे और घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी. अपने पिता का हाथ बंटाने और घर की इनकम में योगदान के मकसद से उन्‍होंने मुर्गी पालन का काम शुरू किया. इस काम में उनके पिता ने उनका साथ दिया और अपने प्रॉविडेंट फंड (पीएफ) खाते से 30000 रुपये निकाले. मेटकर के पास शुरुआत में एक छोटा सा टिन शेड और 100 मुर्गियां थीं. उस समय शेड की छत पर जाने के लिए लकड़ी की सीढ़ी के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं था.  मेटकर को महसूस होने लगा था कि मुर्गियों की संख्या बढ़ानी होगी और साथ ही साथ एक बड़ी जगह की जरूरत भी थी. 

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मां को मिली जमीन से सफलता 

बड़ी जगह खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. उनकी मां को अपने मायके से खेत विरासत में मिला था. इसे रविंद्र ने 1.25 लाख रुपए में बेचकर अपने गांव के पास जमीन खरीदी. उन्होंने मुर्गियां पालने के लिए बैंक से लोन भी लिया. देखते मुर्गियों की संख्या 100 से बढ़कर हजार तक पहुंच गई और हर साल इसमें इजाफा होने लगा. रविंद्र पहले बैंक से कर्ज लेते और फिर उसे चुकाते.  हाल ही में उन्‍होंने एक कर्ज लिया जिसकी मदद से  50000 मुर्गियों के लिए एक ऑटोमैटिक पोल्ट्री फार्म बनाया गया. मुर्गियों पर रोजाना चार रुपये खर्च होते हैं. लेकिन पोल्ट्री फार्म का सालाना टर्नओवर 15 करोड़ रुपये है.