कश्मीर में मिलेट की खेती का पोस्टर बॉय बना ये किसान, सरकार से मिली बड़ी मदद 

कश्मीर में मिलेट की खेती का पोस्टर बॉय बना ये किसान, सरकार से मिली बड़ी मदद 

जम्‍मू कश्‍मीर का पुलवामा शहर दक्षिण कश्‍मीर का एक एतिहासिक शहर है लेकिन अब यह शहर बाजरा यानी मिलेट की खेती के लिए लोकप्रियता हासिल कर रहा है. पुलवामा जिले के एक और ऐतिहासिक शहर काकापोरा में इम्तियाज अहमद मीर नाम का एक यंगस्‍टर और शिक्षित किसान बाजरा खेती करके कश्‍मीर के बाकी किसानों को प्रेरणा दे रहा है.

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कश्मीर में मिलेट की खेती का पोस्टर बॉय बना ये किसान, सरकार से मिली बड़ी मदद दक्षिण कश्‍मीर के किसान ने बाजरा की खेती में हासिल की सफलता

जम्‍मू कश्‍मीर का पुलवामा शहर दक्षिण कश्‍मीर का एक एतिहासिक शहर है लेकिन अब यह शहर बाजरा यानी मिलेट की खेती के लिए लोकप्रियता हासिल कर रहा है. पुलवामा जिले के एक और ऐतिहासिक शहर काकापोरा में इम्तियाज अहमद मीर नाम का एक यंगस्‍टर और शिक्षित किसान बाजरा खेती करके कश्‍मीर के बाकी किसानों को प्रेरणा दे रहा है. मीर ने इस दिशा में सफलता तब हासिल की जब उन्‍हें खेती के बारे में ज्‍यादा जानकारी नहीं थी. साथ ही वह इस फसल को लेकर अन‍िश्चित थे. लेकिन अब उन्‍होंने इस खेती में सफलता हासिल करके अपनी सारी शंकाओं को दूर कर लिया है. 

कृषि वैज्ञानिकों ने दिखाया रास्‍ता 

राइजिंग कश्‍मीर के अनुसार मीर फसल के बारे में शुरुआती अनिश्चितता के बावजूद उनके समर्पण और कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन ने बाजरा की खेती में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है.  बाजरा की खेती क्षेत्र के कई किसानों के लिए अपरिचित है. बाजरा की खेती में मीर की यात्रा फसल के बारे में कोई पूर्व जानकारी के बिना शुरू हुई.  काकापोरा में कृषि विस्तार अधिकारी (एईओ) सैयद तौसीफ अहमद की गाइडेंस में, मीर की कोशिश ने न सिर्फ फल दिया है. बल्कि इस क्षेत्र में बाजरा की खेती के लिए एक बेंचमार्क भी स्थापित किया है. 

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मीर की सफलता ने खोला रास्‍ता 

काकापोरा में एग्रीकल्‍चर प्रोडक्‍शन और किसान कल्याण विभाग के उप-मंडल अधिकारी शकील अहमद डार के अनुसार, मीर का मिलेट टेस्‍ट सब डिविजन में किए गए कई परीक्षणों में सबसे आशाजनक है.  कश्मीर में बाजरे की खेती की दिशा में मीर की सफलता का महत्व और भी बढ़ जाता है.  पारंपरिक तौर पर चावल जैसी फसलों के लिए जाना जाने वाला यह क्षेत्र, विशेष तौर से इसके पहाड़ी क्षेत्रों में, प्रोसो बाजरा (पैनिकम मिलिएसियम) और फॉक्सटेल बाजरा (सेटेरिया इटालिका) जैसी बाजरे की किस्मों की खेती में गिरावट देख रहा है. 

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क्‍या है इस सफलता की अहमियत  

बाजरा की इन पारंपरिक किस्मों के गायब होने का खतरा था इसकी वजह से अधिकारियों ने समग्र कृषि विकास कार्यक्रम के तहत रिवाइवल प्रोजेक्‍ट शुरू किया था.  इस दिशा में मीर के बाजरे के टेस्‍ट की सफलता खासतौर पर उल्लेखनीय है. श्रीनगर-पुलवामा हाइवे के किनारे स्थित उनका खेत, एग्रीकल्‍चर साइंटिस्‍ट्स और बाकी लोगों के लिए एक सेंटर प्‍वाइंट बन गया है. मीर के अनुसार हर दिन, कई लोग बाजरे की फसल देखने के लिए इस साइट पर आते हैं. उन्होंने आगे बताया कि उन्होंने अपने टेस्‍ट के लिए बाजरा उगाने का विकल्प चुना है. 

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पानी की कमी का भी कोई असर नहीं 

मीर ने इस बात पर जोर दिया कि बाजरे को अपने शुरुआती चरणों में कम से कम पानी की जरूरत होती है. यह एक ऐसी जरूरत है जिसे नॉर्मल बारिश से पूरा किया जा सकता है. इससे यह सिंचाई चुनौतियों वाली भूमि के लिए आदर्श बन जाता है.  बाजरे की खेती शुरू करने की पहल समग्र कृषि विकास कार्यक्रम परियोजना 8 (HADP P8) का हिस्सा थी. इसके तहत AEO सैयद तौसीफ अहमद ने 23 किसानों को बाजरे की कई किस्मों के फ्री बीज डिस्‍ट्रीब्‍यूट किए. बीजों के साथ-साथ किसानों को उपकरण, वर्मीकम्पोस्ट, पोषक तत्व और मार्गदर्शन जैसे इनपुट भी मिले. 


 
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