हिमाचल प्रदेश की ठंडी वादियों में बसी एक छोटी सी जगह है- स्पीति घाटी. ऊंचे पहाड़ों से घिरी इस घाटी में बर्फ से ढकी सड़कें, शांत जीवन और मेहनती लोग बसते हैं. यहीं की रहने वाली हैं येशे डोल्मा, जिनकी कहानी सिर्फ खेती की नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, बदलाव और प्रेरणा की कहानी है. येशे डोल्मा शुरू से ही पढ़ाई में तेज थीं. उन्होंने स्नातक की डिग्री ली और एक बेहतर करियर बनाने का सपना देखा. खेती से उनका कोई खास लगाव नहीं था. उनका परिवार तो कृषि से जुड़ा था, लेकिन येशे का मन किताबों में ही लगता था.
उनके पति, जो कि काजा के सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं, हमेशा उनका साथ देते रहे. एक शिक्षित परिवार, जिसमें 6 सदस्य थे और कुल 25 बीघा की सिंचित जमीन. लेकिन येशे डोल्मा उस जमीन को लेकर कभी गंभीर नहीं हुईं... जब तक कि एक दिन उन्होंने कुछ नया नहीं जाना.
वर्ष 2019 में, येशे डोल्मा की मुलाकात एटीएमए (ATMA) के कुछ अधिकारियों से हुई. उन्होंने येशे को एक ऐसी खेती के बारे में बताया जो न सिर्फ रसायन-मुक्त थी, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभदायक – सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती (SPNF).
येशे को बात तो अच्छी लगी, लेकिन भरोसा नहीं हुआ कि बिना रासायनिक खाद और कीटनाशकों के भी खेती हो सकती है. फिर भी उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला लिया. उन्होंने SPNF का प्रशिक्षण लिया और खुद अपनी आंखों से देखने के लिए हरियाणा में आचार्य देवव्रत फार्म का दौरा किया. जो उन्होंने वहां देखा, उसने उनकी सोच बदल दी. अब वे पढ़ाई के साथ-साथ खेती में भी संभावनाएं देखने लगीं.
येशे डोल्मा ने अपने परिवार की 25 बीघा जमीन में से सिर्फ 2.5 बीघा पर खेती की शुरुआत की- लेकिन एक नई सोच और पूरी ईमानदारी के साथ. उनके पास एक पहाड़ी गाय थी, जिसका गोबर और मूत्र अब जैविक खाद बनाने में काम आता था.
उन्होंने खुद जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत जैसी चीजें बनाईं. कीटनाशकों की जगह अग्निस्त्र, ब्रह्मास्त्र, दशपर्णी अर्क जैसे घरेलू उपायों को अपनाया. धीरे-धीरे, उनका खेत हरा-भरा हो गया.
आज, येशे डोल्मा अपने खेतों में गोभी, फूलगोभी, ब्रोकोली, मटर, गाजर, मूली, फ्रेंच बीन्स, सलाद और शलजम जैसी 9 अलग-अलग फसलें एक ही सीजन में उगाती हैं.
पहले जहां खेती की लागत 50,000 रुपये तक पहुंच जाती थी, अब प्राकृतिक खेती की वजह से लागत न के बराबर है. उनकी सालाना आय भी 1.40 लाख रुपये से बढ़कर 2.0 लाख हो गई है.
वे अपनी फसलें काजा की स्थानीय मंडी- "अपनी मंडी" के ज़रिए बेचती हैं. यही नहीं, वे कुछ फसलों के बीज खुद तैयार करती हैं और उन्हें आसपास के किसानों को देती हैं.
येशे डोल्मा की सफलता अकेले की नहीं थी. उन्हें PK3Y योजना, एटीएमए स्टाफ, और व्हाट्सएप ग्रुपों के माध्यम से निरंतर मार्गदर्शन मिलता रहा. उन्होंने कई ट्रेनिंग प्रोग्राम और एक्सपोजर विजिट में हिस्सा लिया. हर बार कुछ नया सीखा और उसे अपनी जमीन पर आजमाया.
उनकी मेहनत को पहचान भी मिली. 2020 में, उन्हें स्पीति घाटी की सर्वश्रेष्ठ प्रगतिशील किसान के रूप में यूएचएफ नौनी, सोलन द्वारा सम्मानित किया गया. फिर 2021 में महिला दिवस के मौके पर सीडीपीओ काजा ने उन्हें "सर्वश्रेष्ठ प्रगतिशील महिला किसान" का पुरस्कार दिया.
आज येशे डोल्मा न सिर्फ अपने खेतों में सफल हैं, बल्कि अपने जैसे कई किसानों के लिए प्रेरणा भी हैं. वे दिखाती हैं कि खेती केवल पुरुषों का काम नहीं है और यह भी कि पढ़ी-लिखी महिलाएं भी खेती में कमाल कर सकती हैं – वो भी बिना रसायनों के. उनकी कहानी बताती है कि अगर सोच बदली जाए और दिल से मेहनत की जाए, तो कोई भी बदलाव संभव है.
ये भी पढ़ें:
Yara India की वैज्ञानिक खेती ने दिलाया गन्ना किसानों को असली मुनाफा, बदल दी गन्ना खेती की तस्वीर
Success Story: गढ़चिरौली की धरती में मोती उगाकर दोगुना मुनाफा कमा रहा युवा किसान
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today